मुंबई. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी सरकार से सवाल किया है कि जब देश में वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा बनाई जा सकती है तो राम मंदिर के लिए कानून क्यों नहीं बनाया जा सकता? यह बयान संघ के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की तरफ से आया। वे विश्व हिंदू परिषद और कुछ अन्य हिंदू संगठनों की तरफ से रखी गई एक सभा में संबोधित कर रहे थे।
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होसबले ने कहा, ‘‘अगर गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर सरदार पटेल की प्रतिमा बन सकती है तो भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए कोई कानून पारित क्यों नहीं हो सकता?’’ संघ के इस बयान से पहले अक्टूबर में विजयादशमी की रैली में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाया जाना चाहिए।
नरसिंह राव ने कहा था- मंदिर के अवशेष मिले तो जमीन भी देंगे
होसबले ने कहा, ‘‘पीवी नरसिंह राव ने बतौर तत्कालीन प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अगर पुरातात्विक सर्वेक्षण में मंदिर के अवशेष मिलते हैं तो अयोध्या की विवादित जमीन मंदिर निर्माण के लिए मुहैया करा दी जाएगी। उत्खनन में मंदिर के अवशेष भी मिले लेकिन अब कोर्ट का कहना है कि यह मुद्दा उनकी प्राथमिकता में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अलग पीठ का गठन किया है, लेकिन इस लंबित मुद्दे पर अब तक कोई फैसला नहीं दिया है।’’
हाईकोर्ट ने बराबर बांट दी थी जमीन
सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था। जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है, वह जमीन हिन्दू महासभा को दी गई। एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया, जिसमें सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल था। बाकी एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को सौंपा। 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दायर हैं।
इस विवाद में तीन मुख्य पक्षकार
1. निर्मोही अखाड़ा : 133 साल से जमीन पर हक मांग रहा है।
2. हिन्दू महासभा : 68 साल से मूर्ति पूजा की इजाजत मांग रही है।
3. सुन्नी वक्फ बोर्ड : 57 साल से विवादित ढांचे पर हक मांग रहा है।
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