कोलम्बो. श्रीलंका के नवनियुक्त राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने कहा कि वह चाहते हैं कि श्रीलंका एक तटस्थ राष्ट्र बने और वह सभी देशों के साथ मिलकर काम करे। उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे किसी के हित को नुकसान पहुंचेगा। वह भारत और चीन के बीच चल रहे शक्ति-संघर्ष के बीच में नहीं आना चाहते हैं। 18 नवंबर को राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद गोतबाया राजपक्षे 29 नवंबर को अपने पहले आधिकारिक यात्रा पर भारत आने वाले हैं।
गोतबाया राजपक्षे को चीन समर्थित माना जाता है। उन्होंने कहा कि वह दो सुपरपॉवर देशों के बीच नहीं पड़ना चाहते हैं। हम भारत-चीन दोनों देशों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। हम बहुत छोटे देश हैं और दोनों देशों के बीच बिना संतुलन बनाए अपना अस्तित्व बरकरार नहीं रख सकते हैं। उन्होंने कहा, “हम भारत की चिंताओं को समझते हैं और हम ऐसी किसी भी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचता हो।”
हमने श्रीलंका में सभी देशों को निवेश के लिए आमंत्रित किया: गोतबाया
उन्होंने कहा, “हिंद महासागर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और यह वर्तमान की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्रीलंका एक महत्वपूर्ण रणनीतिक हिस्से में मौजूद है और सभी समुद्री रास्ते श्रीलंका के पूर्व से पश्चिम से होकर गुजरताहै। इसीलिए, इन रास्तों को मुक्त होना चाहिए और किसी भी देश को इन रास्तों पर नियंत्रण स्थापित नहीं करने देना चाहिए।” उन्होंने कहा कि महिंदा राजपक्षे के पूर्व कार्यकाल (2005-2015) के दौरान चीन के साथ पूरी तरह व्यावसायिक संबंध रहे थे। उन्होंने कहा, “मैंने भारत, सिंगापुर, जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी निवेश के लिए आमंत्रित किया है। सिर्फ चीन को आमंत्रित नहीं किया गया है।”
चीन को हंबनटोटा बंदरगाह 99 वर्षों की लीज पर देना गलती: गोतबाया
राजपक्षे ने कहा, “चीन को हंबनटोटा बंदरगाह को99 वर्षों की लीज पर दिया जाना पूर्ववर्ती सरकार की गलती थी। इस समझौते पर फिर से वार्ता की जा रही है। निवेश के लिए ऋण का छोटा हिस्सा देना अलग बात है लेकिन एक रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण आर्थिक बंदरगाह को पूरी तरह दे देना स्वीकार्य नहीं है। इसे हमें नियंत्रित करना चाहिए था।” चीन ने श्रीलंका द्वारा ऋण की भरपाई न किए जाने पर 2017 में हंबनटोटा बंदरगाह को अपने अधिकार में ले लिया था।
मोदी ने इसी साल किया था दौरा
प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए आतंकी हमले के बाद श्रीलंका का जून 2019 में दौरा किया था और एक आशावादी दृष्टिकोण के साथ श्रीलंका की हिम्मत बढ़ाई थी। हालांकि वे 2015 और 2017 में भी श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का 27 साल बाद किया गया दौरा था। मोदी की श्रीलंका यात्रा ने कई द्विपक्षीय समझौतों के लिए जमीन बनाई है और काफी हद तक आपसी विश्वास को बढ़ाया है। मगर अब यह कितना प्रासंगिक रहेगा, कहना कठिन है।
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