बीजिंग. चीन ने सूर्य की ऊर्जा यानी संलयन पर आधारित परमाणु रिएक्टर तैयार कर लिया है। रिएक्टर एचएल-2एम को सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू में बनाया गया है। बताया जा रहा है कि रिएक्टर 2020 में काम करना शुरू कर देगा। इसके जरिए चीन जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-कोयला-डीजल पर निर्भरता कम करना चाहता है।
सूर्य में परमाणु संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) ही होता है। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के दो परमाणु मिलकर हीलियम बनाते हैं। संलयन आधारित रिएक्टर बनाकर चीन स्पष्ट संदेश देना चाहता है कि प्रदूषणरहित ऊर्जा की सप्लाई कभी बाधित नहीं होगी।
महंगी है तकनीक
संलयन आधारित तकनीक पर रिएक्टर बनाना काफी महंगा है। कई वैज्ञानिक इसे जीवाश्म ईंधन का विकल्प बनाने पर अव्यावहारिक बताते हैं। बीजिंग की सिंघुआ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर गाओ झे के मुताबिक, ‘‘इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हमेंसभी समस्याओं को हल मिल जाएगा। लेकिन हम कुछ नहीं करेंगे तो समस्याएं कभी हल भी नहीं नहीं हो पाएंगी।’’
फ्रांस में बन रहा दुनिया का सबसे महंगा प्रोजेक्ट
चीन इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर) प्रोजेक्ट का सदस्य है। इसमें भारत, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और रूस भी सदस्य हैं। फिलहाल आईटीईआर का मुख्य मकसद फ्रांस का दुनिया का सबसे महंगा प्रोजेक्ट है। इसमें 15.5 बिलियन पाउंड (1.4 लाख करोड़ रुपए) का संलयन रिएक्टर बनाया जा है। इसमें अभी सीमित स्तर पर बिजली बनाई जा रही है। माना जा रहा है कि यह रिएक्टर 2025 तक काम करने लगेगा। 1960 के दशक में सोवियत संघ (अब रूस) ने टोकामेक नाम का संलयन रिएक्टर स्थापित करने की कोशिश की थी।
ब्रिटेन भी इस पर काम कर रहा
पिछले महीने ब्रिटेन ने ऐलान किया था कि 220 मिलियन पाउंड (करीब 2 हजार करोड़ रुपए) लागत वाला टोकामेक जैसा संलयन रिएक्टर बनाने का ऐलान किया है। ब्रिटिश एटॉमिक एनर्जी अथॉरिटी के सीईओ इयान चैपमैन के मुताबिक, ‘‘सभी को संलयन की ताकत के बारे में पता है। अगर आप विचारोंको बाजार की जरूरत के हिसाब से ढालने की ताकत रखते हैं तोजलवायु परिवर्तन पर भी यह बड़ा असर डालेगा।’’
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