
नई दिल्ली (कांग्रेस कार्यालय से हेमंत अत्री). महाराष्ट्र और हरियाणा में साथ चुनाव के बावजूद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की एक राज्य में तत्काल गठबंधन सरकार बनाने और दूसरे में खामोशी की वजह पार्टी की दूरगामी सोच थी। पार्टी इसमें खुद को सफल मान रही है। पार्टी ने अपनी रणनीति के तहत शिवसेना को बेनकाब करने और पूरे घटनाक्रम पर सिर्फ निगाह रखने की रणनीति पर ही काम किया। शाह खुद पूरे घटनाक्रम पर लगातार निगाह जमाए हुए थे और उनके करीबी प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव मुंबई-दिल्ली आ जा रहे थे। शिवसेना के रुख को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने तय कर लिया था कि सत्ता को लेकर शिवसेना जैसी वैचारिक पार्टी की भूख कैसी है, इसे बेनकाब किया जाए।
इसके मुताबिक ही सरकार गठन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले तक भाजपा ने अपनी ओर से शिवसेना को मनाने की कोशिश का संदेश दिया। फिर 8 नवंबर को देंवेद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया। भाजपा की रणनीति राष्ट्रपति शासन की ओर जाने की थी, इसका जिक्र भास्कर ने 9 नवंबर की खबर में किया था। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद संवैधानिक अधिकारों के तहत पहले भाजपा और फिर शिवसेना, राकांपा को बुलाकर सरकार बनाने की संभावनाएं टटोली।
राकांपा ने राज्यपाल से समय मांग कर चूक की
भाजपा नेतृत्व को सोमवार की रात यह भनक लग चुकी थी कि तीनों दलों में सहमति बनने जा रही है। तीनों दल आपस में न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर बात करने के लिए समय चाह रहे थे। लेकिन यहां राकांपा ने एक चूक कर दी कि राज्यपाल से और समय मांग लिया। इसके बाद महज तीन घंटे के भीतर राज्यपाल की सिफारिश से लेकर कैबिनेट की बैठक और राष्ट्रपति के दस्तखत तक हो गए।
राकांपा को यह उम्मीद थी कि अगर राज्यपाल समय नहीं देते हैं तो भी उनके पास रात 8 बजे तक का समय होगा। लेकिन राज्यपाल ने उसी के आधार पर अपनी सिफारिश दिन में ही केंद्र सरकार को भेज दी। सूत्रों के मुताबिक़ राज्यपाल को दिन में ही चिट्ठी देकर राष्ट्रपति राज का मौक़ा देना भी भाजपा-राकांपा की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा था, वरना राकांपा शाम तक की मोहलत के ख़त्म होने का इंतज़ार कर सकती थी।
मोदी-शाह की बैठक में बनी महाराष्ट्र में सरकार की पटकथा
उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी से शरद पवार की 40 मिनट चली मुलाकात भी सरकार गठन के संकेत दे चुकी थी। मोदी-पवार की मुलाक़ात के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी। पूरी पटकथा इसी बैठक में बनी। लेकिन मोदी-शाह ने गोपनीयता बनाए रखी। राकांपा की ओर से अजित पवार भाजपा की ओर कदम बढ़ाएँगे ना कि शरद पवार। इसी फ़ॉर्मूले पर काम तेज किया गया। भाजपा चाहती थी कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों को बेनक़ाब किया जाए। इसलिए सत्ता के मुहाने पर लाकर शाह ने शह दी और शिवसेना-कांग्रेस मात खा गई।
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के वकत भी राकांपा से भाजपा नेतृत्व को गठबंधन करने का संकेत था, लेकिन बदले में शिवसेना को एनडीए से अलग करने की शर्त रखी गई थी। तब भाजपा ने मना कर दिया था। लेकिन शिवसेना के रुख़ से परेशान भाजपा को इस बार मौका मिला तो देर नहीं की।
नतीजों के बाद से भाजपा की रणनीति शिवसेना को पूरी तरह से इन छह रणनीतियों के आधार पर बेनकाब करने की थी:-
पहला:भाजपा ने यह संदेश दिया कि आखिरी वक्त उसने जनादेश का सम्मान करते हुए शिवसेना को मनाने की कोशिश की और शिवसेना की तरह किसी अन्य विरोधी विचार वाले दलों से समर्थन तक नहीं मांगा।
दूसरा:शिवसेना किस तरह से सत्ता को लेकर बेचैन है कि वह विपरीत विचारधारा के साथ जाने से भी परहेज नहीं कर रही और गठबंधन को मिले जनादेश का अपमान कर रही है।
तीसरा:भाजपा का मानना था कि अगर आने वाले समय में शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस सरकार बना भी लेती है तो शायद ज्यादा दिन नहीं चलेगी, लेकिन पूरे पांच साल भी चल गई तो अगले चुनाव में शिवसेना का राकांपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना असंभव होगा। ऐसे में शिवसेना बुरी तरह से घिर जाएगी।
चौथा:पवार से बातचीत से पहले भाजपा ने अपने संगठन को चुनाव के लिहाज से तैयार होने को कह दिया था। खास तौर से शिवसेना जिन सीटों पर जीती है, वहां और मजबूती से काम करने को कह दिया गया था।
पांचवां:महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार बना लेती तो पार्टी ने पूरे राज्य में पोलखोल अभियान और वोटर के साथ धोखा अभियान का खाका भी तैयार कर लिया था।
छठा:महाराष्ट्र में शिवसेना के आगे झुकने से उसे अन्य क्षेत्रीय दलों से गठबंधन में भी दबाव का सामना करना पड़ता, लिहाजा पार्टी आलाकमान ने फड़णवीस के सरकार बनाने के फॉर्मूले को किनारे करते हुए संयमित रुख अपनाया। 2014 में शिवसेना जब भाजपा को आंखे दिखा रही थी, तब राकांपा ने अल्पमत सरकार को विधानसभा के फ्लोर पर बचाने का एलान किया था। इस बार भी फड़णवीस उस दिशा में बढ़ने की सोच रहे थे, लेकिन शाह ने शुरुआत में साफ मना कर दिया था। लेकिन परदे के पीछे ऐसी पटकथा तैयार की गई कि ऐसा लगे मानो भाजपा ने कुछ नहीं किया। राकांपा अपनी वजह से आई और शिवसेना के अड़ियल रुख़ की वजह से भाजपा को सरकार बनानी पड़ी।
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from Dainik Bhaskar /national/news/bjp-continued-to-follow-the-shahneeti-to-expose-shiv-sena-the-script-made-in-modi-pawar-meeting-progressed-126118151.html
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