नई दिल्ली. दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले अलका लांबा अपनी पुरानी पार्टी में लौट आईं। 2015 में वे आम आदमी पार्टी के टिकट पर चांदनी चौक सीट से पहली महिला विधायक बनी थीं। इस बार पार्टी बदली, सीट वही है। प्रचार में जुटीं अलका से दैनिक भास्कर ने बातचीत की। केजरीवाल से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा- अरविंद डरे हुए इंसान हैं। पार्टी में जो उन्हें चुनौती देता नजर आता है, उसे दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। भाजपा के बारे में लांबा ने कहा- उनकी पार्टी में सीएम फेस पर दंगल था। इसलिए मोदी को ही आगे कर दिया। यहां अलका से बातचीत के प्रमुख अंश।
आप पिछले साल तक ‘आप’ में थीं‘अच्छे बीते 5 साल-लगे रहो केजरीवाल’ में आपका कितना योगदान है?
लड़ने और धरना देने में बीते 5 साल, बस करो केजरीवाल। दिल्ली ने उन्हें काम के लिए चुना था। लेकिन वे कभी धरने में, कभी लड़ने में और कभी कोर्ट-कचहरी में नजर आते रहे। कभी छत्तीसगढ़ तो कभी मध्यप्रदेशप्रचार करने पहुंच गए। इन्हीं कामों में खुद को और पूरी सरकार को व्यस्त रखा। अब हर चीज मुफ्त बताने में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। अच्छे बीते 5 साल वाला नारा सिर्फ एक भद्दा मजाक है।
चांदनी चौक की गलियों में केजरीवाल की तारीफ सुनने मिली,विधायक अलका लांबा का जिक्र क्यों नहीं होता?
केजरीवाल सरकार ने यहां कौन से अच्छे काम कराए? जो भी काम हुए, वे विधायक के नाते मैंने कराए। सीवेज और पानी की लाइनें या फिर पक्की गलियां। जो कुछ बना, वो मैंने बनवाया। सरकार का काम तो ये था कि जामा मस्जिद गेट नम्बर-1 पर भूमाफियों से जमीन खाली करवाती। लेकिन वो नहीं करा पाई। जहां मोहल्ला क्लीनिक बनना था, वहां कूड़े का ढेर है। 12 स्कूल थे, अब 9 बचे। कोई काम नहीं हुआ। यहां की हवा में सांस लेना मुश्किल है। पानी की किल्लत और ट्रैफिक जाम से परेशानी अलग। इस सरकार ने कुछ नहीं किया। मैं अपने दम पर चांदनी चौक में जो कर सकती थी, किया। इसका श्रेय भी अब वे लेना चाहते हैं।
चांदनी चौक में कौन से काम बाकी रह गए, जो इस बार करना चाहेंगी?
यहां पिछले 5 साल में हमने विकास की पहली सीढ़ी पर कदम रखा। अभी बहुत कुछ करना बाकी है। अभी जहां हम खड़े हैं, यह वाल्मीकि कटरा है। यहां नगर निगम के कर्मचारी रहते हैं। इनको सैलरी और बुजुर्गों को पेंशन नहीं मिल रही। केन्द्र में भाजपा की सरकार, नगर निगम में भाजपा, उनके मेयर और उनके ही पार्षद। लेकिन इन लोगों के लिए कुछ नहीं किया। केजरीवाल ने कहा था, ठेकेदारी प्रथा को खत्म करेंगे। उल्टा हुआ। ये कम होने के बजाए बढ़ गई।
पहले ‘आप’ और अब कांग्रेस। अलग-अलग पार्टियों से प्रत्याशी बनना मुश्किल नहीं है?
मेरे लिए तो नहीं। मैं हमेशा से कांग्रेस में ही थी। पार्टी बदलना ही मकसद होता तो भाजपा में भी जा सकती थी। लेकिन नहीं गई। विचारधारा के चलते रामलीला मैदान गई, आप में शामिल हुई। हम केजरीवाल के लिए वाराणसी तक गए। वापस आकर देखा तो व्यवस्था परिवर्तन और स्वराज की बातें गायब हो चुकी थीं। समझौते होने लगे। सोनिया जी के कहने पर वापस कांग्रेस में आई। पार्टी तो वास्तव में 70 साल पार वाले सरदार जी (प्रह्लाद सिंह, आप प्रत्याशी) ने बदली। वो तो अब चल भी नहीं पाते। लेकिन, विधायक बनना है। पहले कांग्रेस विधायक थे तो केजरीवाल उन्हें भ्रष्ट बताते थे। अब उसी भ्रष्ट नेता को आप का प्रत्याशी बना दिया।
चुनाव प्रचार के दौरान आपको किसी ने टोका नहीं कि मैडम फिर पार्टी बदल ली?
बिल्कुल टोका। लोगों ने कहा- यहां से वहां और फिर वहां से यहां। मैंने उन्हें बताया कि पार्टी नहीं बदली थी, बस एक आंदोलन में शामिल हुई थी। लेकिन, जब लगा कि आंदोलन करने वाले अब समझौते करने लगे हैं तो वापस अपने घर (कांग्रेस में) आ गई।
हमने चांदनी चौक के लोगों से बातचीत की। वो कहते हैं- पार्टी बदलने वालों को वोट नहीं देंगे। उन्हें कैसे मनाएंगी?
ये बात सिर्फ भाजपा वाले कह सकते हैं। कांग्रेस और आप के कार्यकर्ता ये नहीं कहेंगे। क्योंकि दोनों के नेता बदली हुई पार्टी के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी तो उन्होंने (प्रह्लाद सिंह साहनी) बदली है। कांग्रेस का वर्षों पुराना साथ सिर्फ सत्ता के लालच में छोड़ दिया। मैं तो 18 साल की उम्र में जिस पार्टी से जुड़ी थी, वहां वापस आई हूं।
भाजपा के पास मोदी और ‘आप’ के पास केजरीवाल चेहरा हैं। कांग्रेस के पास कौन है?
प्रधानमंत्री मोदी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ नहीं ले रहे। उनके चेहरे पर चुनाव लड़ना दिल्ली की जनता को धोखा देना है। जब जीतते हैं तो किसी आरएसएस के मोहरे को मुख्यमंत्री बना देते हैं। आप के पास केजरीवाल का चेहरा है। वे दूसरा लाने भी नहीं देते। शिक्षा क्षेत्र में अच्छा काम हुआ तो मनीष सिसोदिया का चेहरा आगे क्यों नहीं किया? स्वास्थ्य में अगर बहुत अच्छा काम हुआ तो सत्येन्द्र जैन को चेहरा बना देते। केजरीवाल बहुत इनसिक्योर और डरे हुए आदमी हैं। उन्हें जिससे चुनौती मिलती है, उसे दूध से मक्खी की तरह निकालकरफेंक देते हैं। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, आशुतोष और कुमार विश्वास उदाहरण हैं। हमारा चेहरा शीला दीक्षित के काम हैं। 2 दशक बाद हम शीला जी के बिना लड़ रहे हैं। लेकिन, उनके 15 साल के कार्यकाल में किए गए काम के दम पर ही हम यह चुनाव जीतेंगे।
कुछ दिन पहले आपने कहा था कि यह चुनाव दिल्ली को नई शीला दीक्षित देगा। क्या अलका खुद को कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार मानती हैं?
बिल्कुल नहीं। मैं ये कह रही हूं कि कांग्रेस उठ रही है। 2015 में केजरीवाल एकतरफा जीते। 2 ही साल बाद नगर निगम चुनाव में उन्हें करारी हार मिली। कांग्रेस जीती तो नहीं, लेकिन वोट बैंक 2 साल में ही वापस मिल गया। तीनों नगर निगमों में केजरीवाल हार गए। लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में पीछे रही। केजरीवाल अपनी नई दिल्ली विधानसभा में भी भाजपा को नहीं पछाड़ पाए। कांग्रेस दूसरे नम्बर पर रही। कांग्रेस से 10 महिलाएं चुनावी मैदान में हैं। 60 भाई भी हैं। नया नेतृत्व इन्हीं में से मिलेगा।
भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कई चेहरे हैं। क्या कहेंगी?
उनके पास काफी चेहरे हैं। एक तरफ विजय गोयल तो दूसरी ओर मनोज तिवारी पैर खींच रहे हैं। हर्षवर्धन अलग सपने देख रहे हैं। मेयर भी लगे हुए हैं। शायद इसीलिए मोदी जी ने कहा होगा कि एक बार फिर मेरे चेहरे पर ही लड़ लीजिए। भाजपा हारी तो यह मोदी की हार होगी। उन्हें यह स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
कांग्रेस के कोई 3 ऐसे चेहरे, जो मुख्यमंत्री उम्मीदवार हो सकते हैं?
मैं नहीं बताऊंगी। 3 नहीं 30 चेहरे हैं। चुनाव के बाद जनता बताएगी कि ये हैं वो 30 चेहरे। इनमें से ही कोई मुख्यमंत्री बनेगा। सरकार बनाने के लिए 36 सीटें चाहिए। मुझे पूरा भरोसा है कि कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलेगा।
चांदनी चौक सीट : एक नजर
यहां त्रिकोणीय मुकाबला मान सकते हैं। कांग्रेस से अलका लांबा मैदान में हैं। वो पिछला चुनाव यहीं से लेकिन आप के टिकट पर जीती थीं। आप ने कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रह्लाद सिंह साहनी को मैदान में उतारा है। वो 17 साल कांग्रेस के टिकट पर इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। भाजपा ने पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे सुमन कुमार गुप्ता को टिकट दिया है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2ta4iO0
0 Comments:
Post a Comment