दिल्ली. 43 साल के प्रशांत किशोर पांडेय उर्फ पीके देश के सबसे बड़े चुनावी-राजनीतिज्ञ (पॉलिटिकल स्ट्रेटजिस्ट) हैं। बीते आठ सालों में देश में हुए लोकसभा और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले उनके बारे में चर्चा होती है कि वह किसके साथ हैं। लेकिन हालिया सुर्खियों की वजह कुछ और है। बिहार की सत्तारूढ़ पार्टी जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के उपाध्यक्ष पीके को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
16 सितंबर 2018 को ही उन्होंने जेडीयू का दामन थामा था। इससे पहले वह सलाहकार की भूमिका में थे। पार्टी जॉइन करने के साथ ही वह पार्टी में नंबर दो हो गए थे। सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर वह पार्टी के पक्ष से इतर बयान दे रहे थे।
यहां तक कि उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार को मूर्ख तक कह दिया था। फिलहाल पीके की चुनावी रणनीतिज्ञ कंपनी आई-पेक (इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार प्रबंधन का जिम्मा संभाल रही है।
बिहार के बक्सर से ताल्लुक रखने वाले प्रशांत की प्राथमिक शिक्षा बिहार के सरकारी स्कूल में हुई। उन्होंने बारहवीं के बाद तीन साल के लिए पढ़ाई छोड़ दी थी। पटना साइंस कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में ग्रैजुएशन (स्टैटिसटिक्स) में प्रवेश लिया, लेकिन बीमारी के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।
बाद में लखनऊ से ग्रैजुएशन और फिर पोस्ट ग्रैजुएशन पूरी की। ग्रैजुएशन के बाद दो साल खाली रहे। पीके ने पीजी के बाद यूएन के हैदराबाद ऑफिस में नौकरी शुरू की। यूएन के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए वह बिहार गए, यहां दो साल रहे। उनके काम को देखते हुए दिल्ली स्थित यूएन के इंडिया कंट्री ऑफिस में प्रमोशन मिला, फिर जिनेवा ट्रासंफर हो गया।
प्रशांत ने जिनेवा में रहते हुए फील्ड पोस्टिंग के लिए आग्रह किया और मध्य अफ्रीकी देश चाड में डिवीज़न हैड के तौर पर चार साल रहे। इस दौरान उन्होंने फ्रेंच भी सीखी। प्रशांत को कुछ समय पहले फोर्ब्स इंडिया ने देश के टॉप 20 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया है। प्रशांत के परिवार में पिता डॉ. श्रीकांत पांडे, पत्नी और दो बच्चे हैं। परिवार दिल्ली में रहता है।
नरेंद्र मोदी के साथ जींस-टीशर्ट में दिख रहे प्रशांत की यह तस्वीर 2013 की है। अब वह अक्सर नेताओं वाली पोशाक सफेद कुर्ते पायजामे में नज़र आते हैं। रंगों के मनोविज्ञान को भी पीके बखूबी समझते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार बिहार चुनावों में नीतीश के लिए उन्होंने सुर्ख लाल रंग कैंपेन में इस्तेमाल किया। इसका कारण वामपंथ वाली छवि बनाने से ग्रामीण वोटर्स को लुभाना था। पंजाब चुनावों में अमरिंदर सिंह के लिए गहरा नीला रंग इस्तेमाल किया। इसके पीछे आस्थावान सिख वोटर्स को लुभाना और अकाली दल को चुनौती देना था।
कब-कब किसकेसाथ जुड़े पीके
2014 लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की जीत की रणनीति बनाई।
2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी के लिए काम किया। महागठबंधन को जिताने में अहम भूमिका निभाई।
2017 में पंजाब विस चुनावों में कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत के सूत्रधार बने।
2017 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई। हालांकि यहां कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पाई।
2019 में आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनावों में वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी की जीत के पीछे रहे।
2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए इनकी कंपनी आई-पैक काम कर रही।
2011 में पहली बार मोदी के संपर्क में आए
प्रशांत के राजनीतिक रणनीतिज्ञ बनने के सफ़र की शुरुआत 2011 में हुई थी। चाड के बाद जिनेवा शिफ्ट होने से पहले उन्होंने कुपोषण पर एक रिसर्च पेपर लिखा था। इसमें देश के 4 विकसित राज्यों की तुलना थी। इसमें गुजरात में कुपोषण की समस्या के बारे में जि़क्र था। उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। नरेंद्र मोदी ने प्रशांत किशोर को बुलाकर उनसे बात की और भारत वापस आकर यहां काम करने का प्रस्ताव दिया। एक साल बाद प्रशांत भारत आए और नरेंद्र मोदी के साथ सलाहकार की भूमिका में काम शुरू किया। वह पहले उनके भाषण लिखने का काम करते थे। इसके बाद 2014 लोकसभा चुनावों में काम किया।
चाय पर चर्चा जैसे नारे गढ़े
प्रशांत किशोर ने सिटिजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) के माध्यम से 2014 लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग और चुनाव प्रबंधन किया। हालांकि यह नॉन प्रॉफिट संस्था थी। पीके ने चाय पर चर्चा जैसे नारे गढ़े। मोदी के 3डी होलोग्राम के साथ-साथ फेसबुक पर मोदी को सक्रिय होने के लिए कहा। 2019 में पीके ने कहा था कि वह अब किसी पार्टी के लिए चुनाव प्रबंधन या रणनीति बनाने का काम नहीं करेंगे। हालांकि उनकी कंपनी आई-पैक अभी भी यह काम कर रही है। प्रशांत आई-पैक के मेंटर हैं। वह अभी युवाओं को राजनीति से जोड़ने के लिए यूथ इन पॉलिटिक्स जैसे कार्यक्रम चला रहे हैं।
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