
लाइफस्टाइल डेस्क. डॉलर का जन्म जहां हुआ, वहां के ज्यादातर लोग ही इससे अंजान हैं। यह अपने ही शहर में अमान्य है। चेक रिपब्लिक के जैखीमोव शहर में 500 साल पहले 1520 में डॉलर का जन्म हुआ, लेकिन यह करंसी यहां मान्य नहीं है। शहर के रॉयल मिंट हाउस म्यूजियम में इसकी नींव पड़ी थी। दुनिया के 31 देशों ने या तो इसे अपनी आधिकारिक करंसी घोषित की या फिर अपनी मुद्रा का नाम बदलकर डॉलर किया। अमेरिकी डॉलर दुनियाभर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली करंसी है, जबकि चेक रिपब्लिक की मौजूदा करंसी कोरुनाहै।अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, दुनिया में डॉलर का 62% वित्त संग्रह है। यह आंकड़ा यूरो और येन जैसी करंसी के मुकाबले दोगुना है।
2700 लोगों की आबादी वाला शहर
जैखीमोव चेक रिपब्लिक का 2700 लोगों की आबादी वाला शहर है। डॉलर का जन्मस्थान और ऐतिहासिक महत्व के कारण यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी घोषित किया है। नॉन-प्रॉफिट डेवलपमेंट माउंटेन रीजन के डायरेक्टर माइकल अरबन कहते हैं, इस शहर में कहीं भी विज्ञापन के बोर्ड नहीं दिखाई देंगे। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग भी इस जगह को ठीक से नहीं जानते।

कभी यहां लोमड़ी-भालू नजर आते थे
सैकड़ों साल पहले जैखीमोव के पहाड़ों पर लोमड़ी और भालू टहलते नजर आते थे। इतिहासकार जेरोसजेव आक्हेक के मुताबिक, यह उस दौर की बात है जब यूरोप में बेशकीमती धातु की काफी कमी थी। यहां की कोई आधिकारिक मुद्रा भी नहीं थी। उस समय खनन के दौरान बड़ी मात्रा में चांदी मिली थी और बोहेमिया साम्राज्य का राज था। बोहेमिया साम्राज्य ने 9 जनवरी 1520 को इस चांदी से सिक्कों को तैयार करने आदेश जारी किया था। सिक्के के एक तरफ बोहेमिया साम्राज्य का चिह्नशेर बनाया गया था और दूसरी ओर संत जोकिम की तस्वीर थी।
पहली बार इतनी करंसी लोगों ने देखी
करंसी का नाम संत जोकिम के नाम पर जोकिम-थेलर रखा गया। बाद में नाम को छोटा करके थेलर्स रखा गया। सिक्कों के निर्माण, गिनती, रखरखाव की जिम्मेदारी साम्राज्य से जुड़े हिरोनायमस सेचीलिक के पास थी। हिरोनायमस ने इस मुद्रा को दूसरे देशों में फैलाने के लिए योजना बनाई। सिक्के का वजन 29.2 ग्राम रखा गया, जिसे पूरे सेंट्रल यूरोप में फैलाया गया ताकि पड़ोसी देशों के साम्राज्य इसे आसानी से अपना सकें। हिरोनायमस ने सिक्के इतनी संख्या में बनाए, जिसे दुनिया में पहले कभी नहीं देखा गया था।

छोटा सा कस्बा यूरोपी की सबसे बड़ी खदान में बदला
अगले दस सालों में 1050 लोगों की आबादी वाला छोटा कस्बा यूरोप की सबसे बड़ी खदान में बदल गया। यहां रहने वाले लोगों की संख्या 18 हजार हुई। एक हजार चांदी की खदाने बनीं, जिसमें 8 हजार मजदूर काम करते थे। 1533 तक चेक रिपब्लिक की राजधानी के बाद यह सबसे बड़ा शहर बन गया। 16वीं शताब्दी तक यहां की खदानों में 1 लाख 20 हजार सिक्के बनाए जा चुके थे। इससे पहले किसी भी देश की करंसी में इतने सिक्के नहीं तैयार किए गए थे।
देशों में इसे अपनी भाषा में नाम दिया
1566 तक इसे पूरे यूरोप में स्वीकार किया जाने लगा। रोमन साम्राज्य ने इसके आकार में थोड़ा बदलाव करके करंसी बनाई और नाम दिया रोस्टथेलर्स। अगले 300 सालों में दूसरे देशों थेलर के आधार पर अपनी करंसी जारी की। कुछ समय बाद दूसरे देशों को थेलर करंसी ने प्रेरित किया और उन्होंने अपनी भाषा में इसके नाम पर अपनी करंसी का नाम रखा। धीरे-धीरे डेनमार्क, नॉर्वे और स्वीडन ने अपनी करंसी को डेलर कहा। वहीं आइसलैंड में इसे नाम डेल्यूर नाम मिला। इटली ने इसे टेल्लिरो और पोलैंड ने टलर कहा। ग्रीस से इसे टेलिरो और हंगरी ने इसका नाम टॉलर रखा। वहीं, फ्रांस में नाम दिया गया जोकैंडेल। थेलर धीरे-धीरे अफ्रीका पहुंचा। इसे इथियोपिया, केन्या और तेन्जानिया में 1940 में इस्तेमाल किया जा रहा है।
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