
नई दिल्ली.दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल और उत्तराखंड के मूल निवासियों की भूमिका अहम बनी हुई है। करीब 32 फीसदी मतदाता मूलरूप से पूर्वांचल के हैं। 30 सीटों पर ये प्रभावी हैं। इनमें से 15 सीटों पर ये निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही हाल उत्तराखंड के मूल निवासियों का भी है। वे भी करीब 30 सीटों पर जीत-हार तय कर सकते हैं। आम आदमी पार्टी ने 15 तो भाजपा ने 8 सीटों पर पूर्वांचल मूल के नेताओं को टिकट दिए। पूर्वांचल, उत्तराखंड के अलावा भास्कर ने दक्षिण भारत और गुजरात से आकर दिल्ली में बसे लोगों से चुनावी हवा का रुख जानने की कोशिश की।
शिक्षा और स्वास्थ्य पूर्वांचल के लोगों के लिए बड़े मुद्दे
विजय भारद्वाज यूपी से हैं। 40 साल से डाबरी मोड़ इलाके में रहते हैं। उनके मुताबिक, “स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य बड़ा मुद्दा है। इस पर अच्छा काम हुआ है। सरकारी स्कूल वक्त पर लगते हैं। पढ़ाई का स्तर बेहतर हुआ और यूनिफॉर्म भी मिलती है। बिजली-पानी की सुविधा सुधरी।” सुशीला देवी मूलत: बिहार के मधुबनी से हैं। 40 साल से दिल्ली में हैं। वे कहती हैं, “घर के दोनों तरफ सड़क बन गई। प्राइवेट स्कूल अब मनमानी फीस नहीं बढ़ा सकते। बस में महिलाओं की यात्रा मुफ्त है। हालांकि, महिला सुरक्षा चिंता का विषय है। बेटी के स्कूल आने-जाने पर 5 हजार खर्च होता था। अब ये बच जाता है। बिजली-पानी फ्री है।” मेरठ से दिल्ली आकर बसे संजय कुमार का अनुमान है कि आप करीब 40 सीटों पर जीतेगी।
20 लाख दक्षिण भारतीयों में बिजली-पानी अहम मुद्दा
दिल्ली में करीब 20 लाख दक्षिण भारतीय हैं। करोलबाग में रहने वाले वेंकटेशन का दावा करते हैं, “पांच साल में बिजली कटौती नहीं देखी। बिल में भी बहुत फर्क आया। पानी की दिक्कत नहीं रही। आरटीओ में दलाली बंद है। महिलाओं की डीटीसी बसों में यात्रा फ्री हो गई है। हम चाहते हैं कि देश में मोदी हों, लेकिन दिल्ली में केजरीवाल ही रहें।” के. नंदकुमार तमिलनाडु से दिल्ली आए और यहीं के होकर रह गए। सीनियर साइंटिस्ट हैं। उनके मुताबिक, “केजरीवाल की एजुकेशन पॉलिसी बेहतर है। गाइडलाइंस तय हैं। हेल्थ सेक्टर में हालात पहले से बेहतर हुए। हालांकि, मैं कभी मोहल्ला क्लीनिक नहीं गया।”
गुजरातियों की मिलीजुली राय, कहा- स्कूलों में काम हुआ, बाकी किसी योजना का फायदा नहीं मिला
दिल्ली में गुजरात के मूल निवासियों की तादाद तकरीबन 5 लाख है। राणाप्रताप बाग में रहने वाले उमेश माणेक सरकार के काम से नाखुश हैं। वे कहते हैं, “चार साल तक केजरीवाल आरोप लगाते रहे कि मोदी काम नहीं करने देते। चुनाव आए तो सब काम होने लगे, कैसे? एक सीमा तक पानी फ्री किया लेकिन बहुत गंदा आता है। स्कूल-हॉस्पिटल फ्री करने से बेहतर था कि कम शुल्क लेकर अच्छी क्वॉलिटी देते।” गुजरात के ही तेजस सोनी कहते हैं, “हमारे क्षेत्र की स्कूल बिल्डिंग नई हो गई है। इसके अलावा हमें केजरीवाल सरकार की किसी स्कीम का फायदा नहीं मिला। वे सिर्फ लोअर क्लास को फोकस कर रहे हैं। मुफ्त योजनाएं लोगों को बेरोजगार बना रही हैं।” साधना बेन कहती हैं कि केंद्र और राज्य में एक ही सरकार होना चाहिए। इससे बेहतर विकास हो सकेगा।
उत्तराखंड के लोगों ने भी कहा- स्कूलों में काम हुआ, लेकिन बेरोजगारी और प्रदूषण खत्म नहीं हुआ
करावल नगर, बुराड़ी, पटपड़गंज और पालम सहित करीब 30 सीटों पर उत्तराखंड के मूल निवासी प्रभावी हैं। दिल्ली सरकार ने गढ़वाली-कुमाऊंनी-जौनसारी भाषा अकादमी भी खोली है। आरके पुरम में रहने वाले गोविंद वल्लभ जोशी कहते हैं, “केजरीवाल ने साढ़े चार साल कुछ नहीं किया। चुनाव आया तो फ्री-फ्री करने लगे। जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। सब चुनावी घोषणाएं हैं।” प्रकाश सिंह गुसाईं के मुताबिक, “युवाओं को रोजगार नहीं मिला। ऑड-ईवन में एक्स्ट्रा बस चलाईं, लेकिन लोग बैठे ही नहीं। जनता का पैसा बर्बाद हुआ। स्कूलों में तो कुछ काम हुआ। जाम और पॉल्यूशन को खत्म करने में सरकार विफल रही।”
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