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जिस घटना ने फूलन को बैंडिट क्वीन बनाया, उसमें 39 साल बाद कल फैसला; जिस जमीन के लिए फूलन लड़ी, वह परिवार को आज तक नहीं मिली

बेहमई (कानपुर से 95 किमी दूर). 14 फरवरी 1981 को बेहमई कांड हुआ था। तब फूलन और उसके 35 साथियों ने 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस बहुचर्चित हत्याकांड के 39 साल बाद अदालत का फैसला 6 जनवरी को आने जा रहा है। यह ऐसा मामला है, जिसमें 35 आरोपियों में से सिर्फ 5 पर केस शुरू हुआ। इनमें श्याम बाबू, भीखा, विश्वनाथ, पोशा और राम सिंह शामिल थे। राम सिंह की 13 फरवरी 2019 को जेल में मौत हो गई। पोशा जेल में बंद है। तीन आरोपी जमानत पर हैं। इस केस में सिर्फ 6 गवाह बनाए गए थे। अब 2 जिंदा बचे हैं।

बेहमई कांड ने फूलन को बैंडिट क्वीन बनाया
फूलन के पिता की 40 बीघा जमीन पर चाचा ने कब्जा किया था। 11 साल की उम्र में फूलन ने चाचा से जमीन मांगी। इस पर चाचा ने फूलन पर डकैती का केस दर्ज करा दिया। फूलन को जेल हुई। वह जेल से छूटी तो डकैतों के संपर्क में आई। दूसरी गैंग के लोगों ने फूलन का गैंगरेप किया। इसका बदला लेने के लिए फूलन ने बेहमई के 20 लोगों को गोलियों से भून दिया था। इसी घटना के बाद फूलन देवी बैंडिट क्वीन कहलाने लगी।

बेहमई कांड से जुड़े 7 किरदार

1# मुकदमे का इकलौता वादी, जिसने 14 फरवरी 1981 का पूरा घटनाक्रम बताया
भास्कर की टीम जब बेहमई गांव पहुंची तो एक जगह अलाव जल रहा था। वहां गांव 6 से 7 बुजुर्ग मौजूद थे। वहीं, बेहमई कांड के इकलौते वादी ठाकुर राजाराम मुंह में बीड़ी लगाए लेटे हुए थे। ठाकुर राजाराम पिछले 38 साल से मुकदमे की पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुकदमे में आधे से ज्यादा आरोपी फरार हैं। फूलन को सांसद बनाया गया। क्या यह सब शासन और प्रशासन नहीं देख रहा था? अब 6 जनवरी को देखेंगे कि हमें क्या न्याय मिला? एक डकैत मान सिंह का तो मुकदमे में नाम ही नहीं डाला गया। वह तो अब भी फरार है।

ठाकुर राजाराम ने बताया कि 14 फरवरी 1981 को दोपहर दो से ढाई बजे के बीच का वक्त था। तब फूलन और उसके साथियों ने गांव को घेरना शुरू किया। पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय डाकुओं के ज्यादातर गैंग इसी गांव से गुजरा करते थे। लेकिन फूलन और उसके साथी घरों में लूटपाट करने लगे। गांव की ज्यादातर महिलाएं खेतों में काम करने गई थी। मर्द घर पर थे। कुछ दहशत में भाग निकले। फूलन ने हर घर से मर्दों को टीले के पास इकट्‌ठा करना शुरू किया। मैंने यह सब थोड़ी दूरी पर झाड़ियों में छुपकर देखा। फूलन ने पूछा कि लालाराम और श्रीराम (फूलन का आरोप था कि इन दोनों ने दुष्कर्म किया और सामूहिक दुष्कर्म की साजिश रची) को रसद कौन देता है और हमारी मुखबिरी कौन करता है? उस समय फूलन के साथ तकरीबन 35 से 40 लोग थे। टीले के पास गांव के 23 लोग और 3 मजदूर पकड़कर लाए गए थे। अचानक से उन लोगों ने गोलियां चला दीं। सब भरभराकर गिर पड़े। एक साथ 20 लोगों को गोली मार दी थी। तकरीबन शाम 4 से 4.30 बजे फूलन अपने साथियों के साथ वहां से निकल गई। इतनी गोलियां चली थीं कि कई किमी तक उसकी आवाज सुनाई दी थी। कई घंटों तक महिलाओं के रोने की आवाज आती रही। जानवर चिल्ला रहे थे। अजीब दहशत भरी शाम थी। तकरीबन 3 से 4 घंटे बाद पुलिस पहुंची थी। तब उसी दिन मैंने आगे बढ़कर मुकदमा दर्ज करवाया था।

ठाकुर राजाराम फूलन के आरोपों को नकारते हुए कहते हैं कि अगर उसे सिर्फ ठाकुरों को ही मारना होता तो 20 लोगों में नजमुल हसन का नाम क्यों शामिल है? वह तो इस गांव का भी नहीं था। 20 लोगों में मरने वालों में सबसे ज्यादा उम्र के तुलसीराम 55 साल के थे, जबकि सबसे कम उम्र के दो लड़के 18-18 साल के थे। ठाकुर राजा राम के 25 साल के बेटे बनवारी सिंह की भी इस गोलीकांड में मौत हुई थी। गांव के ही ओमकार सिंह कहते हैं कि उस समय मेरी उम्र लगभग 15 साल की थी। 9वीं में पढ़ता था। जब मुझे भनक लगी तो मैं भाग खड़ा हुआ। जब लौटा तो हाहाकार मचा हुआ था। हर घर में एक लाश थी। एक परिवार में तो कोई दीपक जलाने वाला भी नहीं बचा था।

2# फूलन की मां ने कहा- कोई नहीं चाहता कि बेटा या बेटी डकैत बने
जालौन के कालपी से लगभग 10 किमी दूर यमुना किनारे बसा शेखपुरा गुढ़ा गांव। यहां फूलन की मां मुला देवी अकेले रहती है। घर के पीछे ही उनकी एक बेटी का परिवार रहता है। बगल में रिश्तेदारों के मकान हैं। मां कभी-कभार ग्वालियर भी अपने बेटे के पास भी जाती है। बेटा पुलिस में है। गांव में फूलन के चचेरे भाई इंद्रजीत उनकी मां का ख्याल रखते हैं। 70 के दशक में जब फूलन बागी बनी, तब उसका घर कच्चा था। सालों बाद मकान पक्का बन गया। रहन-सहन में भी बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है।

दैनिक भास्कर की टीम जब फूलन के घर पहुंची तो उनकी मां मुला देवी आंगन में एक छोटी-सी खटिया पर लेटकर गुनगुनी धूप का आनंद ले रही थीं। उन्हें जैसे ही पता चला कि हम मीडिया वाले हैं तो आगबबूला हो गईं। फूलन के चचेरे भाई इंद्रजीत बताते हैं कि बेटे ने उन्हें मीडिया से दूरी बनाकर रहने की हिदायत दे रखी है। काफी मानमनौवल के बाद फूलन की मां ने बातचीत शुरू की। उन्होंने कहा कि जिस जमीन के लिए बेटी डकैत बनी, वह जमीन इतने साल बीत जाने के बाद भी उनके परिवार को नहीं मिल सकी है। जबकि चाचा मैयाराम ने 40 बीघा जमीन पर कब्जा कर रखा है। मुकदमा एसडीएम कोर्ट में चल रहा है। मुला देवी कहती हैं कि मेरी बेटी बहुत अच्छी थी। वह कोई लड़ाई-झगड़े नहीं करती थी, लेकिन जब अति हो गई तो डकैत बन गई। कोई नहीं चाहता कि किसी की बेटी या बेटा डकैत बने। फूलन जब सांसद बनी तो गांव आई। यहां कंबल-स्वेटर बांटे। अगर जिंदा रहती तो हम लोगों के लिए भी कुछ करती। फूलन की मां इंदिरा गांधी से लेकर अखिलेश तक से मिल चुकी हैं। लेकिन नाउम्मीद हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक बार 50 हजार रुपए की मदद की थी।

अपने संघर्षों के बारे में बताते हुए वे कहती हैं कि जब फूलन डकैत बनी तो आएदिन पुलिस परेशान करती थी। जिस घर में रहती हूं, उसकी तीन बार कुर्की हो चुकी है। चचेरे भाई इंद्रजीत बताते हैं कि चाची के हालात जैसे पहले थे, वैसे ही अभी भी हैं। फूलन के भाई शिवनारायण की जिंदगी बदल गई। दरअसल, जब फूलन सरेंडर हुई तो उसकी शर्तों में भाई को नौकरी, जमीन और घर देने की बात शामिल थी। हालांकि, 39 साल बाद आने वाले बेहमई कांड के फैसले के बारे में परिवार को नहीं पता। फूलन की मां कहती हैं कि हम फूलन के साथ नहीं थे तो हमें कैसे पता होगा। इंद्रजीत का भी यही कहना है कि हम लोगों को इस बारे में जानकारी नही है।

3# बेहमई कांड के पीड़ितों ने कहा- ऐसे इंसाफ का क्या मतलब?
बेहमई गांव के आखिरी छोर पर श्रीदेवी रहती हैं। उनकी उम्र लगभग 65 साल है। उनके एक पैर में परेशानी है, फिर खेत से लेकर घर तक सारा काम खुद करती हैं। उनके परिवार के लोगों को फूलन और उसके साथियों ने गोलियों से भून दिया था। भास्कर से बातचीत में वे कहती हैं, ''अब इतने साल बाद अगर केस का फैसला आ रहा है तो इससे क्या फायदा मिलेगा? घर में ससुर, जेठ और पति को सरेआम फूलन और उसके साथियों ने गोलियों से भून दिया था। तब मेरी 6 साल की बेटी, 4 साल की बेटी, ढाई साल की बेटी और गोद में भी बिटिया थी। उस समय मेरी उम्र 24 साल रही होगी। जब मैंने परिवार के पुरुषों की लाशें देखीं तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। अकेले ही पूरा परिवार चलाना था। मायके वालों और गांव वालों ने साथ दिया तो जिंदगी पटरी पर लौटी। अब 4 बेटियों की शादी हो चुकी है।''

4# वह चश्मदीद, जिसके सीने पर गोली लगी, लेकिन जान बच गई
बेहमई कांड में 26 लोगों को लाइन में खड़ा कर गोली मारी गई थी। 6 लोग गोली लगने के बाद भी किसी तरह जिंदा बच गए। घायल हुए लोगों में रघुवीर, देव प्रयाग, कृष्णा स्वरूप और गुरुमुख सिंह की मौत हो चुकी है। वकील सिंह और जंतर सिंह जीवित हैं। 70 वर्षीय वकील सिंह की मानसिक हालत बहुत खराब है। उस हादसे से सदमे में आए वकील सिंह अब लोगों के बीच उठते-बैठते तो हैं लेकिन किसी की बात वगैरह समझ नहीं पाते। सुनाई भी नहीं देता।

31 दिसंबर 2019 को सरकारी नौकरी से रिटायर हुए जंतर सिंह बेहमई से करीब 30 किमी दूर पुखरायां में परिवार के साथ रहते हैं। बेहमई कांड के 3-4 साल बाद जंतर सिंह को तहसील में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मिल गई थी। वे अपने परिवार के साथ वहीं शिफ्ट हो गए। अपने घाव दिखाते हुए जंतर कहते हैं कि जब फूलन का गैंग गोलियां बरसा रहा था, तब हम लोग बीच में थे और जमीन पर गिरकर झूठमूठ मरने का बहाना कर रहे थे। गोलीबारी के बाद डकैतों ने एक-एक को चेक किया और गोलियां मारी थी। मुझे भी सीने पर रखकर गोली दागी थी, जो पीछे से चीरती हुई निकल गई थी। तकरीबन 3 साल तक कानपुर से लखनऊ तक इलाज चला। किस्मत थी, जो बच गया। काफी समय तक उस कांड को यादकर रोंगटे खड़े हो जाते थे। अब डर नहीं लगता। जंतर कहते हैं कि केस की हर सुनवाई पर मैं कोर्ट गया हूं। अब इतनी देर हो गई है कि इस फैसले का बहुत असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि ज्यादातर आरोपी मर चुके हैं। जो बचे हैं, वे भी मरने की कगार पर हैं।

5# आरोपी जमानत पर बाहर, अब मजदूरी कर रहा
बेहमई से करीब 30 किमी दूर महेशपुर गांव है। इसी गांव में फूलन का पहला ससुराल है। यहां बेहमई कांड का एक आरोपी विश्वनाथ भी रहता है। गांव की गलियों से होते हुए जब हम विश्वनाथ के घर पहुंचे तो उसने बताया कि वह बेहमई कांड में जबरदस्ती आरोपी बनाया गया है। तकरीबन 55 साल की उम्र के विश्वनाथ का कहना है कि गांव में दो विश्वनाथ थे। जब बेहमई कांड हुआ, तब मैं 10वीं में पढ़ रहा था। उस दौरान धरपकड़ में मुझे भी आरोपी बनाया गया। फिर जब पुलिस को पता चला कि असली आरोपी विश्वनाथ दूसरा है और वह फरार है तो अपनी गलती छुपाने के लिए मेरा नाम मुकदमे से नहीं हटाया। पुलिस की गलती की वजह से मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। 3 साल तक जेल में रहा। हालांकि, विश्वनाथ कहते हैं कि कोर्ट में हमने दस्तावेज जमा किए, लेकिन अभी तक सुनवाई नहीं हुई। हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि अब उन्हें इंसाफ मिलेगा। गांव वालों ने भी विश्वनाथ के दावों की तस्दीक की। लेकिन दूसरा विश्वनाथ कहां है, यह कोई नहीं बता सका। हालांकि, इतने दिनों में आरोपी विश्वनाथ ने प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लिया है।

6# पहले पति को अब भी फूलन की 11 करोड़ की संपत्ति का इंतजार
महेशपुर गांव में ही फूलन के पहले पति पुत्तीलाल रहते हैं। अब तकरीबन 80 साल की उम्र होगी। गांव से लगभग डेढ़ किमी दूर पुत्तीलाल अपने खेतों पर बैठे अलाव ताप रहे थे। पूछने पर बताया कि फसल लगवा रहे हैं, इसलिए बैठे हैं। हालांकि, फूलन की संपत्ति का पुत्तीलाल को अभी भी इंतजार है। वे बताते हैं कि जब फूलन की हत्या हुई तो उम्मेद सिंह और पुत्तीलाल ने संपत्ति के लिए फूलन का पति होने का दावा किया था। मामला कोर्ट में है। अभी संपत्ति नहीं मिली है। लगभग ढाई करोड़ नकद है और साढ़े 8 करोड़ की अचल संपत्ति है। कुल 11 करोड़ की संपत्ति पर दावा कर रखा है। पुत्तीलाल की एक पत्नी की मौत हो चुकी है, एक फूलन थी जो वहां से चली गई थी। इस समय एक पत्नी है, जिससे उसका परिवार है।

7# श्रीराम और लालाराम के भाई ने कहा- बेहमई वालों ने फूलन के साथ गलत किया था
बेहमई से तकरीबन 7 किमी दूर ही फूलन की जिंदगी के दो अहम किरदार श्रीराम और लालाराम का गांव दमनपुर है। हालांकि, दोनों भाइयों की मौत काफी पहले हो चुकी है, लेकिन कभी उनके साथ रह चुके उनके छोटे भाई मन्ना सिंह आज भी परिवार के साथ दमनपुर में रहते हैं। मन्ना बताते हैं कि लालाराम और श्रीराम ने फूलन के करीबी विक्रम मल्लाह को मार दिया। इसके बाद फूलन के साथ बेहमई में कुछ लोगों ने दुष्कर्म किया। जब फूलन बदला लेना चाहती थी तो श्रीराम और लालाराम को भी डर था। उनका परिवार यहां से भाग गया। मन्ना बताते हैं कि मैं भी अपना परिवार लेकर पंजाब चला गया। यह 1980 की बात है। उसके बाद हम लोग 2003 में गांव में लौटे। उससे पहले श्रीराम की बेहमई कांड में पुलिस मुठभेड़ में मौत हुई थी, जबकि लालाराम की 17 मई 2000 को हत्या हो गई। हमारा जो पुश्तैनी घर था, सरकार ने उसकी कुर्की करवा दी थी।

बेहमई का हाल: खेती-मजदूरी कर पेट पालते हैं लोग, विकास के नाम पर मोबाइल कनेक्शन मिला
14 फरवरी 1981 को चर्चा में आए इस गांव में कई नेता-मंत्री चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन बेहमई आज भी विकास से कोसों दूर है। जिन महिलाओं के पति की बेहमई कांड में मौत हुई, उनमें से अब 8 जिंदा हैं। उन्हें न्याय की आस है। लोगों का पेशा खेती-बाड़ी का है या मजदूरी करते हैं। पिछले साल ही गांव तक पहुंचने वाली कच्ची सड़क डामर रोड में तब्दील हुई है। गांव से 14 किमी दूर रोडवेज का बस स्टैंड है। गांव के बाहर एक पुलिस चौकी है, जहां 39 साल से बेहमई गांव की कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। ज्यादातर मामले गांव में ही सुलझा लिए जाते हैं। गांव के बाहर एक हाईस्कूल, लेकिन वह ज्यादातर बन्द रहता है। वजह है टीचर की कमी।

इस केस में इतनी देरी क्यों हुई?
डीजीसी राजू पोरवाल बताते हैं कि 14 फरवरी 1981 को मुकदमा दर्ज हुआ। घटना के बाद बड़े स्तर पर कार्रवाई हुई। एनकाउंटर हुए और कई डकैत ऐसे गिरफ्तार हुए, जिनका नाम बेहमई कांड की एफआईआर में नहीं था। तब शिनाख्त करवाई गई। गवाहों को जेलों में ले जाकर पहचान करवाई गई। उस शिनाख्त के आधार पर एक के बाद एक आरोप पत्र दाखिल होते रहे। उसमें लंबा समय लगा। ट्रायल की यह प्रक्रिया है कि जब तक सभी आरोपी नहीं इकठ्ठा होंगे, तब तक आरोप तय नहीं होंगे। ऐसे में कभी कोई गायब रहता, तो कभी कोई बीमार रहता तो कभी किसी तारीख पर किसी आरोपी की मौत की खबर आ जाती थी। कई ऐसे भी आरोपी रहे, जिनके बारे में जानकारी तो मिली, लेकिन वे फरार हो गए। 2012 में यह केस मेरे पास आया। आरोपियों की फाइल अलग करवाई और फरार लोगों की संपत्ति की कुर्की की करवाई। 5 आरोपियों के खिलाफ अगस्त 2012 में आरोप तय हुए। तब तक 33 साल बीत चुके थे। गवाहों को लाना और जिरह कराना मुश्किल था।



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The incident that made Phoolan the bandit queen, yesterday's decision after 39 years; The family did not get the land for which Phoolan fought
फूलन देवी के पहले पति पुत्ती लाल। जब इनसे फूलन की शादी हुई थी, तब वह नाबालिग थीं।
इसी घर में बाल वधु बनकर आई थीं फूलन देवी।
बेरमई गांव के विश्वनाथ, यह भी बेरमई कांड में आरोपी है।
विश्वनाथ इसी घर में रहते हैं।


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