
बलिया. निर्भया के चारों दरिंदों अक्षय, मुकेश, विनय औरपवन को शुक्रवार तड़के 5.30 बजेतिहाड़ जेल में फांसी दी गई। सात सालों से निर्भया के परिजनके साथ पूरा देश न्याय का इंतजार कर रहा था। फांसी से पहले दैनिक भास्कर निर्भया के गांव मेडौला कलां पहुंचा। ये गांव जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर है। सुबह करीब पांच बजे जब हम निर्भया के गांव पहुंचे तो सड़कों पर सन्नाटा पसरा है। इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे हैं। निर्भया के गांव के पास ही दो युवक मोनू और हरिओममिले। हरिओम ने बताया किइस दिन का इंतजार निर्भया के गांव कोही नहीं बल्कि पूरे बलिया और पूरे देश को था।फांसी के बाद निर्भया के दादा ने कहा कि आज देश से बहुत बड़ा कोरोना खत्म हो गया। आज हम होली मनाएंगे।
दिसंबर 2012 के बाद से आसपास के इलाकों में यह गांव निर्भया के गांव के नाम से जाना जाता है। 16 दिसंबर को इस गांव की बेटी निर्भया के साथ दिल्ली में दरिंदगी हुई थी। दरिंदों को फांसी दिए जाने से पूरे गांव में जश्न का माहौल है। निर्भया के गांव के वीरेंद्र कहते हैं कि आज का दिन बहुत खुशी का दिन है। इस फांसी से पूरे गांव को खुशी मिली है।
इस दिन का कई सालों से इंतजार था: निर्भया के परिजन
दोषियों को फांसी होने के बाद निर्भया के दादा लालजी सिंह ने कहा, ‘‘आज भारत से सबसे बड़ा कोरोना खत्म हो गया।’’ निर्भया के चाचा सुरेश सिंह ने कहा, ‘‘काली रात कटने के बाद आज नया सवेरा शुरू हुआ। आज का दिन हमारे लिए होली और दिवाली है। हम कई सालों से इस दिन का इंतजार कर रहे थे। अब हमारे कलेजे को ठंडक पहुंची है।’’ चाची भाग्यमनी ने कहा, ‘‘सात सालों से इस दिन का इंतजार थे।’’
16-17 साल की थी, तब निर्भया गांव आई थी
निर्भया के चाचा सुरेश सिंह ने बताया कि निर्भया के पिता शादी के बाद ही करीब 25 से 27 साल पहले दिल्ली शिफ्ट हो गए। वहां वह कुकर बनाने की कंपनी में पहले काम करते थे। उनके सभी बच्चे दिल्ली ही रहते हैं। निर्भया आखिरी बार जब 16-17 साल की थी, तब गांव आई थी। निर्भया के मामले में वह कहते हैं कि बिटिया को इंसाफ मिलने में बहुत देरी हुई। कोर्ट के फैसले पर खुशी तो है, लेकिन हैदराबाद में जिस तरह पुलिस ने काम किया, वैसा हो तो ज्यादा खुशी होती। निर्भया के चचेरे दादा शिवमोहन कहते हैं कि न्याय मिलने में देरी हुई है। इसलिए देश में दरिंदो की संख्या बढ़ गई है। तुरंत इंसाफ मिलना चाहिए।
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