नई दिल्ली. भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम कोव-इंड-19 का दावा है कि यही रफ्तार रही तो मई के मध्य तक 1 लाख से 13 लाख तक संक्रमितों की संख्या पहुंच सकती है। ऐसी स्थिति से निपटने लिए भारत में मौजूदा मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल उपकरण नाकाफी है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में करीब 32 हजार सरकारी, सेना और रेलवे के अस्पताल हैं। इनमें करीब 4लाख बेड हैं। निजी अस्पतालों की संख्या 70 हजार के करीब हैं। इसके अलावा क्लीनिक, डायग्नोस्टिक सेंटर, कम्युनिटी सेंटर भीहैं। सब मिलाकर करीब 10 लाख बेड होते हैं। आबादी के लिहाज से देखा जाए तो भारत में करीब 1700 लोगों पर एक बेड है। अब आईसीयू और वेंटिलेटर की स्थिति देखें तो यह भी काफी कम है।इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर के मुताबिक,देश भर में तकरीबन 70 हजार आईसीयू बेड हैं। जबकि 40 हजार वेंटिलेटर मौजूद है। इसमें भी महज 10 प्रतिशत ही खाली हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना से निपटने के लिए भारत को अगले एक महीने के अंदर अतिरिक्त 50 हजार वेंटिलेटर और अस्पतालों में 2लाख से ज्यादा बेड की जरूरत पड़ सकती है। जबकि आईसीयू बेड की करीब 70 हजार जरूरत पड़ सकती है।दूसरी ओरदेर से ही सही, लेकिन अलग-अलग स्तरों पर सरकारों ने कोशिशें शुरू कर दी हैं। एक तरफ उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी जिला अस्पतालों में एक-एक बिल्डिंग केवल कोरोना पीड़ितों के लिए तैयार करने का आदेश दिया है तो ओडिशा सरकार ने 15 दिनों में 1 हजार बेड का अस्पताल तैयार करने का फैसला लिया है। हालांकि, ये कोशिशें जरूरत के हिसाब से काफी कम हैं।
दुनियाभर में वेंटिलेटर का संकट
कोरोना से संक्रमित मरीजों के इलाज में वेंटिलेटर की सबसे अहम भूमिका होती है। सांस लेने में तकलीफ होने पर वेंटिलेटर का ही सहारा होता है। पूरी दुनिया इस वक्त वेंटिलेटर के इंतजाम में लगी है। यूरोप के कई देश वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनियों को आर्डर कर रहे हैं। ब्रिटेन सरकार ने वहां की कई इंजीनियरिंग कंपनियों से पूछा है कि क्या दो हफ्ते में 15 से 20 हजार वेंटिलेटर का इंतजाम हो सकता है? जर्मनी ने 10 हजार और इटली ने 5 हजार वेंटिलेटर का आर्डर किया है। दोनों देश आईसीयू की क्षमता भी दोगुना करने में जुटे हुए हैं। दुनियाभर में वेंटिलेटर बनाने वाली चार-पांच ही बड़ी कंपनियां हैं। इस वक्त इनके पास भी वेंटिलेटर बनाने की इतनी क्षमता नहीं रह गई है,क्योंकि दुनिया के कई बड़े देश बड़ी संख्या में आर्डर दे रहे हैं और सभी को जल्दी चाहिए।
अन्य देशों के अस्पतालों में भी है बेड का संकट
अस्पतालों में बेड का संकट केवल भारत में नहीं है। बल्कि कोरोना की शुरूआत करने वाले चीन में भी हैं। यहां प्रत्येक 1 हजार नागरिकों पर 4.2 बेड है। यही कारण है जब कोरोना का संकट यहां ज्यादा था तो बड़ी संख्या में होटल्स को अस्थाईहॉस्पिटल में बदल दिया गया था। इसी तरह फ्रांस में प्रत्येक 1 हजार नागरिक पर 6.5, दक्षिण कोरिया में 11.5, चीन में 4.2, इटली में 3.4 और अमेरिका में 2.8 बेड हैं। येआंकड़े वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) से लिए गए हैं।
भारत में आईआईटी और एम्स तैयार करेंगे वेंटिलेटर
जब पूरी दुनिया वेंटिलेटर के लिए परेशा है तो ऐसी मुश्किल की घड़ी में भारतीय शिक्षण व शोध संस्थानों ने मदद को हाथ बढ़ाया है। आईआईटी कानपुर ने 1 महीने के अंदर 1 हजार पोर्टेबल वेंटीलेटर तैयार करने का ऐलान किया है। संस्थान के प्रो. अमिताभ बंदोपाध्याय ने दैनिक भास्कर से बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बतायाकि भारत की स्थिति को देखते हुए अगले एक महीने में कम से कम 50 हजार वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। इसलिए वेऔर उनकी टीम दिन रात एक करके इसके लिए काम करेगी। आईआईटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर कहते हैं कि उनकी एक अन्य टीम कोरोना की जांच के लिए किट तैयार करने पर काम कर रही है। जल्द ही उसके भी सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। एम्स नई दिल्ली ने भी एक निजी कंपनी के साथ हाथ मिलाया है। दोनों मिलकर प्रोटोटाइप वेंटिलेटर तैयार करेंगे। एम्स के निदेशक प्रो. रंदीप गुलेरिया ने बताया कि जरूरत पड़ी तो प्रोटोटाइप वेंटिलेटर का ही प्रयोग किया जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तकरीबन 1200 और वेंटिलेटर का ऑर्डर किया है।
भारत में 30 करोड़ लोग हाइपरटेंशन के शिकार
कोव-इंड-19 टीम के वैज्ञानिकों का दावा है कि भारत में 30 करोड़ से अधिक पुरुष और महिलाएं हाईपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) के शिकार हैं। कोरोनावायरस के लिए हाइपरटेंशन बड़ा जोखिम है। वैज्ञानिकों दावा है कि संक्रमण के मामलों की संख्या भारत में अस्पताल के बेड की अनुमानित क्षमता से अधिक हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक संक्रमण के चलते गंभीर रूप से बीमार 5 से 10 प्रतिशत मरीजों को इंटेसिव केयर यूनिट (आईसीयू) बेड की जरूरत पड़ेगी।
डॉक्टरों की संख्या भी बहुत कम है
डॉक्टरों की संख्या पर नजर डाली जाए तो यह भी जरूरत की अपेक्षा बहुत कम है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के मुताबिक देश भर में 2018 तक साढ़े 11 लाख एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि हर 1 हजार मरीज पर 1 डॉक्टर का होना चाहिए। 135 करोड़ की भारत की जनसंख्या में डॉक्टरों की संख्या बेहद कम है और डब्ल्यूएचओ के नियम के मुताबिक़ तो बिलकुल भी नहीं है।
ऐसे बढ़ रहा भारत में कोरोना
- पहले 40 दिन में 50 मामले आए
- फिर इसके 4 दिनों में यह आंकड़ा 100 तक पहुंच गया
- इसके अगले 4 दिनों में 150 मामलों की पुष्टि हुई
- इसके दो दिनों में 200 पॉजिटिव केस सामने आ गए
- और अब हर दिन लगभग 50 नए मामले सामने आ रहे हैं
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