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दरिंदगी सारी हदें पार कर गई है, लगता है ये लोग किसी बात का बदला ले रहे हैं, जैसे सब तबाह कर देना चाहते हैं : जावेद

इंदौर(अंकिता जोशी )."बच्चियों-स्त्रियों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती वारदातों के पीछे समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता और हमारे परिवारों में स्त्रियों से पेश आने का ग़लत तरीका काफी हद तक ज़िम्मेदार है। बीते चार-पांच सालों से ये घटनाएं बढ़ी तो हैं ही, मगर दरिंदगी सारी हदें पार कर गई है। लग रहा जैसे ये लोग किसी बात का बदला ले रहे हैं। जैसे किसी चीज़ को तबाह कर देना चाहते हैं। पिछले चार पांच दिनों से एक सवाल हमें सोने नहीं दे रहा है, लेकिन ये मसला आज का नहीं है। संसद में भी बोल चुका हूं मैं इस पर। सबके कह देने के बाद मुझे भी मौका दिया गया था। मैंने कहा कि सब ज़िम्मेदारों के भाषण सुनकर लग रहा है जैसे चार अंधे एक हाथी टटोल रहे हैं। जिसने पैर पकड़ा है उसके लिए हाथी खम्भा है, जिसने पूंछ पकड़ी है उसके लिए हाथी रस्सी है। मुझे लगता है हमें मर्ज़ ही नहीं पता अब तक। हम वजह ही नहीं जानते तो इलाज कैसे करेंगे। और पहले तो ये बताइए कि आपके समाज में औरत की कितनी इज्ज़त है। दुष्कर्मों की जड़ तो यही है। एक लड़के के लिए दुनिया की जो सबसे अहम औरत है वो उसकी मां है। वो उसे ही बेइज्ज़त देखता है तो यही सोचता है कि जब इसकी नहीं तो किसकी इज्ज़त होना चाहिए। औरत की जो दशा वो घर में देखता है, उसे ही विधान समझता है। हिंदुस्तान में आज करोड़ों लड़के ऐसे होंगे जिन्होंने सिवाय अपनी बहन के किसी जवान लड़की से पांच मिनट बात तक नहीं होगी। जब किसी चीज़ तक आपका एक्सेस नहीं होता तो आप उसकी फैंटसी करते हैं। इसी फैंटसी में बच्चों को आज सेक्स एजुकेशन पॉर्न फिल्मों से मिल रहा है जो सही नहीं है।


दूसरा बड़ा कारण है कुछ लोगों के मन में गहरा बैठा आवेश। समाज आर्थिक गुटों में बंट गया है। अब वो दिन गए जब आदमी गांव में रहता था और उसे पता ही नहीं था कि शहर में क्या चल रहा है। वो इंटरनेट पर सब देख रहा है। गांव का आदमी शहरों में जानवरों जैसी जो ज़िंदगी गुज़ार रहा है उसे उस बात पर ग़ुस्सा है। उसे अंग्रेज़ी बोलने वालों से चिढ़ है। पैसेवालों से नफ़रत है। और ये गुस्सा किसी तरह बाहर आ रहा है। यह सब तब बदलेगा जब हम बच्चों को नेक परवरिश देंगे। आप उनकी मां से जैसे पेश आते हैं, वो उसकी बीवी से वैसे ही पेश आएगा।


ये जो दकियानूसी लोग होते हैं ना

इन्हें बड़ी नफरत होती है औरतों से। क्योंकि वो उनके बारे में डिज़ायर तो करते हैं लेकिन उन्हें हासिलियत नहीं है और अपने जैसों को ये दिखाने के लिए कि हमें औरतों से कोई लेना-देना नहीं है वो उन पर ज्यादा से ज्यादा पाबंदियां लगाते हैं। हमारे यहां इस पर गंभीरता से सोचा नहीं जा रहा। और ये रातोंरात नहीं बदलेगा। आज 2-3 फीसदी केस ही रिपोर्ट होते हैं। पुलिस भी तब रिएक्ट करती है जब हल्ला मचता है। हमारे यहां कानून तो तैयार है, समस्या उसे लागू करने में है।'

सोशल मीडिया को देश समझ बैठे हैं हम, ये सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी

कहा जा रहा है कि आज अपनी बात रखना मुश्किल हो गया है। यह ग़लतफहमी उन लोगों को है जो सोशल मीडिया को देश समझ बैठे हैं। 100-50 लोग हैं जो या तो मर्ज़ी से खुराफ़ात कर रहे हैं, या फिर करवाई जा रही है। मगर वो पूरा देश नहीं है। शायद उनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया यही है।उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें। बड़ी रौनक थी इस घर में, ये घर ऐसा नहीं था, गिले शिकवे भी रहते थे, मगर ऐसा नहीं था/ जहां कुछ शीरीं बातें थीं, वहीं कुछ तल्ख बातें थीं, मगर उन तल्ख बातों का असर ऐसा नहीं था/ इन्हीं शाखों पे गुल थे बर्ग थे कलियां थीं गुंचे थे, ये मौसम जब न ऐसा था, शजर ऐसा नहीं था.... - जावेद अख़्तर

घमंड तब सिर चढ़ता है जब आप यह जानते हैं कि जो आपको मिला है आप उसके क़ाबिल नहीं

मैं जब घमंडी लोगों को देखता हूं, तो महसूस करता हूं कि उन्होंने ये मान लिया है कि उन्हें बहुत मिल गया है। पर इस "बहुत' की परिभाषा क्या है। बहुत किसके सामने। पैसा मिल गया, पर क्या आप मुकेश अंबानी से ज्यादा है? आपका नाम बड़ा हो गया है, पर किससे, कबीर से या शेक्सपीयर से। आपके इस "बहुत' का पैमाना क्या है। मेरे नज़दीक घमंडी वो होते हैं जो खुद की तुलना औरों से नहीं, अपनेआप से करते हैं। "मेरे जैसे' आदमी को इतना मिल गया। ये घमंड तब सिर चढ़ता है जब आपको पता होता है कि आप ये डिज़र्व नहीं करते थे। गर आपकी राय अपने बारे में बहुत अच्छी है, तो जितना भी मिलेगा आप सोचेंगे कि यह तो कम है।



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दुष्कर्मियों की सज़ा पर बात करते हुए यूं ज़ाहिर हुआ जावेद का ग़ुस्सा...
Darjeeling has crossed all limits, it seems these people are taking revenge for something, like everyone wants to destroy: Javed


from Dainik Bhaskar /mp/indore/news/javed-akhtars-thoughts-on-increasing-rape-incidents-in-the-country-126220542.html
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