नई दिल्ली. सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने कहा है कि देश की सशस्त्र सेनाएं धर्मनिरपेक्ष हैं और मानवाधिकार कानूनों का पूरा सम्मान करती हैं। शुक्रवार को दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक कार्यक्रम में जनरल रावत ने कहा- सेना अपने लोगों के साथ-साथ दुश्मन के मानवाधिकारों का भी संरक्षण करती है। युद्धबंदियों के साथ जिनेवा संधि के मुताबिक ही बर्ताव किया जाता है।
दिल्ली में एनएचआरसी के 'युद्धकाल में और युद्धबंदियों के मानवाधिकारों का संरक्षण' नाम के कार्यक्रम में जनरल रावत ने कहा, “बदलती तकनीक के साथ लड़ाई के तरीके भी बदले हैं। आतंकी हमलों के मामले में पारंपरिक लड़ाई की तरह के अंतरराष्ट्रीय कानून भी मौजूद नहीं हैं। ऐसी स्थिति में हालात पर काबू पाने के साथ-साथ लोगों का दिल जीतना भी जरूरी है। सेना इस बात का खास ध्यान रखती है कि आतंकियों से मुकाबले के समय आम लोगों इसकी चपेट में न आएं और उनकी संपत्ति भी प्रभावित न हो।”
सेना मुख्यालय में मानवाधिकार शाखा बनाई गई
जनरल रावत ने कहा कि स्पेशल ऑपरेशन के दौरान सामने आने वाली परिस्थितियों के मद्देनजर अब सेना में महिलाओं की भर्ती शुरू की जा रही है। उन्होंने कहा- आतंकवाद के खिलाफ हर ऑपरेशन के बाद 'कोर्ट आफ इन्क्वायरी' की जाती है, जिसमें सभी घटनाओं का ब्यौरा मौजूद रहता है। साथ ही सेना मुख्यालय में मानवाधिकार शाखा बनाई गई है। यहां सैन्यकर्मियों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायत की जा सकती है। अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के अधिकारी को इसका प्रभार दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करती है सेना
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम का जिक्र करते हुए सेना प्रमुख ने कहा- इसमें सेना को तलाशी और पूछताछ के मामले में पुलिस की तरह ही अधिकार मिले हैं। आतंकवाद रोधी अभियानों से पहले जवानों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाता है। सेना इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करती है।
गुरुवार को सेना प्रमुख के बयान पर बवाल हुआ था
सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने गुरुवार को दिल्ली के एक कार्यक्रम में कहा था- ‘लीडर वह नहीं है, जो लोगों को भटकाने का काम करता है। हमने देखा है कि बड़ी संख्या में यूनिवर्सिटी और कॉलेज के छात्र आगजनी और हिंसक प्रदर्शन के लिए भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं। इस भीड़ का एक लीडर है, लेकिन असल मायने में यह लीडरशिप नहीं है।’ सेना प्रमुख का यह बयान नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन के संदर्भ में था। सेना के राजनीतिक मसलों में शामिल होने पर बहस छिड़ गई थी। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने तो यहां तक ट्वीट कर दिया कि ‘कहीं हम पाकिस्तान के रास्ते तो नहीं चल रहे?’ भास्कर ने इस बारे में आर्मी रूल बुक-1954 को खंगाला। इसके मुताबिक सेना से जुड़ा कोई भी व्यक्ति राजनीतिक मुद्दों पर राय नहीं रख सकता और अगर ऐसा करना जरूरी हो तो पहले सरकार की मंजूरी जरूरी है।
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from Dainik Bhaskar /national/news/army-chief-the-countrys-armies-are-secular-they-even-protect-the-human-rights-of-the-enemy-126398126.html
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