2020 की भास्कर की थीम है- खुद को री-इनवेंट करने का साल। उठो, जागो क्योंकि रोज जीतना है... ख्वाहिश! यकीन! और उम्मीद को मुट्ठी में रखें। हर दिन के लिए तैयार रहें।ठीक वैसे, जैसे सियाचिन के मोर्चे पर माइनस 40 डिग्री में तैनात हमारे फौजी।भास्कर सियाचिन पहुंचा तो जवानों को देख यह एहसास हुआ कि मुश्किलें हमेशा खुद को परखने का मौका देती हैं, खुद को री-इनवेंट करना सिखाती हैं। यह तस्वीर इसलिए भी खास है क्योंकि सियाचिन अब आम लोगों के लिए भी खुलने जा रहा है।सेना ने भास्कर पाठकों के लिए यह तस्वीर विशेष रूप से उपलब्ध कराई है। यहां एक तरफ पाक तो दूसरी तरफ चीन के कब्जे वाला अक्साई चिन है।
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सियाचिन के दरवाजे आम लोगों के लिए इस साल से खुलने जा रहे हैं।पर्यटकों को सिर्फ दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र के बेस कैम्प तक जाने की इजाजत मिलेगी।पर्यटक 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन बेस कैम्प तक जा सकेंगे। पर्यटक पहले लेह से खारदूंगला पास होते हुए पनामिक गांव पहुंचेंगे। यहां रात बिताकर अगले दिन 80 किमी दूर सियाचिन बेस कैम्प पहुंचेंगे। यहां सिर्फ दो घंटे रुकने की अनुमति होगी। ये तस्वीर 18,875 फीट की ऊंचाई पर मौजूद सैन्य चौकी कीहै।
मैं अभी सियाचिन बेस कैम्प में खड़ा हूं, जहां तापमान माइनस 30 से माइनस 40 डिग्री के बीच में है। चारों तरफ बर्फ से ढंकी ऊंची पहाड़ियां और सुइयों की तरह चुभती बर्फीली हवाएं चल रही हैं। यहीं पास में बैटल ऑफ स्कूल है, जहां जवानों को दो महीने की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वे 22 हजार फीट की ऊंचाई में रहने लायक खुद के शरीर को एडजस्ट कर सकें।
बेस कैम्प लौटने से पहले वजन 10 से 12 किलो कम हो जाता है
सियाचिन में सैनिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती खराब मौसम और ऑक्सीजन की कमी है। सियाचिन में जवानों की तैनाती 3-3 माह के लिए होती है। जवान ट्रैकिंग कर वापस लौटते हैं। जब वे बेसकैंप लौटते हैं, तो उनका वजन 10 से 12 किलो कम हो जाता है। ऐसा मौसम के कारण होता है। टूरिज्म मंत्रालय नॉर्थ इंडिया के क्षेत्रीय निदेशक अनिल ओराव ने बताया कि ‘सियाचिन में पर्यटकों के लिए क्या सुविधाएं हैं और क्या करनी बाकी है, यह देखने जनवरी के आखिरी हफ्ते में हमारी टीम सियाचिन जाएगी। यह आने-जाने से लेकर पर्यटकों को घुमाने तक का सारा प्लान बनाएगी। फिर इसका प्रमोशन शुरू किया जाएगा।’
पर्यटकों का सफर लेह से शुरू होगा
पर्यटकों को सिर्फ सियाचिन बेस कैम्प तक ही जाने की अनुमति होगी, जिसका सफर लेह से शुरू होगा। लेह से खारदूगंला पास होते हुए 155 किमी दूर सासोमा गांव पहुंचना होगा। यहां पर्यटकों को रात में रुकना पड़ेगा ताकि वे खुद को मौसम के लिहाज से ढाल सकें। यहां से बेस कैम्प 60 किमी की दूर है। लेह से बेस कैम्प तक यात्रा का पूरा इंतजाम टूरिज्म मंत्रालय और सेना करेगी।
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