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निचली अदालत ने 9 महीने और हाईकोर्ट ने 6 महीने में दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, सुप्रीम कोर्ट में 19 महीने में बेंच बनी

नई दिल्ली. निर्भया दुष्कर्म मामले के चारों दोषियों मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, अक्षय ठाकुर और विनय शर्मा को फांसी देने का मामला अभी अदालती प्रक्रियाओं में है। 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में छह लोगों ने निर्भया से गैंगरेप किया था। 13 दिन बाद निर्भया की मौत हो गई थी। निर्भया के दोषियों को निचली अदालत ने 9 महीने में ही फांसी की सजा सुना दी थी। इसके बाद 6 महीने में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी, लेकिन मार्च 2014 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। वहां 38 महीने बाद इस पर फैसला आया। इसके बाद भी दोषियों के पास कई कानूनी रास्ते बचे रहे, जिनका इस्तेमाल कर वे अपनी फांसी को टालते रहे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद दोषियों को 30 दिन के भीतर रिव्यू पिटीशन दाखिल करनी थी, लेकिन दुष्कर्मियों ने कई महीनों बाद रिव्यू पिटीशन दाखिल की।


किस वजह से मामला लंबा चला?
1) बेंच गठित करने में ही 19 महीने का समय लगा :
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि 13 मार्च 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने चारों दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। इसके बाद 15 मार्च 2014 को ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, लेकिन मामले की सुनवाई करने के लिए बेंच गठित होने में ही 19 महीने लग गए। 3 अप्रैल 2016 को इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर भानुमति की बेंच ने शुरू की। 1 साल तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने 5 मई 2017 को फैसला सुनाते हुए चारों दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी।

2) रिव्यू पिटीशन : सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, फैसला आने के 30 दिन के भीतर रिव्यू पिटीशन दाखिल की जा सकती है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में 30 दिन बाद भी दाखिल हुई रिव्यू पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर सकती है। विराग गुप्ता बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2017 को निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सभी चारों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद तीन दोषियों ने रिव्यू पिटीशन दाखिल करने के लिए 6 महीने से ज्यादा का समय ले लिया। एक दोषी ने तो ढाई साल बाद इस दिसंबर में रिव्यू पिटीशन दाखिल की है।

चौथे दोषी की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो जाए, तब भी वह राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेज सकता है
फैसले के बाद रिव्यू पिटीशन का विकल्प होता है। लेकिन रिव्यू पिटीशन भी खारिज हो जाए तो क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने का अधिकार है। चारों दोषियों ने रिव्यू पिटीशन दाखिल कर दी है, जिसमें से तीन की खारिज भी हो चुकी है। विराग गुप्ता कहते हैं कि अगर चौथे दोषी की भी पिटीशन खारिज होती है तो इन चारों के पास क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने का विकल्प बचता है। क्यूरेटिव पिटीशन खारिज होने के बाद दोषियों के पास राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने का भी अधिकार है।


निचली अदालत, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने फांसी दी, क्योंकि 4 बातें पुख्ता सबूत बनीं

  1. मौत से पहले बयान : निर्भया ने मौत से पहले बयान दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गंभीर हालत में भी उसने बयान दिया। उस पर संदेह नहीं किया जा सकता।
  2. फोरेंसिक एविडेंस : पीड़िता के शरीर से मिले नमूनों के साथ दोषियों की डीएनए प्रोफाइलिंग मैच हुई। शरीर पर काटने के निशान भी मैच हुए।
  3. आपराधिक रिकॉर्ड : पुलिस ने अक्षय, मुकेश, पवन और विनय का साजिश का गुनाह साबित किया। ये दुष्कर्मी पीड़िता और उसके दोस्त पर बस चढ़ाना चाहते थे।
  4. दोस्त की गवाही : पीड़िता के साथ बस में यात्रा करने वाले उसके दोस्त ने दुष्कर्मियों के खिलाफ गवाही दी। इस गवाही काे कोर्ट ने सबसे भरोसेमंद माना था।


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Nirbhaya Case Verdict | Nirbhaya Case Latest News; Court sentenced accused in 9 months, high court confirmed death penalty in 6 months, Supreme court took 19 months to set up bench


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