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पिता की हत्या ने शिबू को ‘गुरुजी’ बनाया तो बड़े भाई की मौत हेमंत को राजनीति में खींच लाई

रांची. पांच साल बाद फिर से सोरेन परिवार झारखंड की राजनीति का सत्ता केंद्र बन गया है। सोमवार को आए नतीजों में शिबूसोरेन के छोटे बेटे हेमंतसोरेन नए क्षत्रप बनकर उभरे।वे झारखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे। आपातकाल के साल 1975 में जन्मेहेमंत शिबूसोरेन के मंझले बेटे हैं। अपने बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत के बाद हेमंत का राजनीति में प्रवेश हुआ।

शोबरन मांझी हेमंत सोरेन के दादा थे और उन्होंने ही राज्य में संथाल आदिवासियों को महाजनों से मुक्त कराने का आंदोलन शुरू किया था। पिता शिबू ने अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत हार से की थी। शिबू सोरेन ने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था, लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार मिली थी। वहीं हेमंत ने अपना पहला चुनाव 2005 में दुमका सीट से लड़ा और निर्दलीय स्टीफन मरांडी से हारकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

दादा शोबरन की तस्वीर के सामने प्रणाम करते हेमंत सोरेन।

1. बेटे शिबूकोराशन पहुंचाने निकले पिता को घात लगाकर मारा गया
'समर शेष है' और 'रेड जोन' उपन्यासों के लेखक और एक्टिविस्ट पत्रकार विनोद कुमार बताते हैं- हेमंत के दादा शोबरन मांझी गोला प्रखंड के नेमरा इलाके के गिने-चुने पढ़े लिखे युवाओं में से एक और पेशे से शिक्षक थे। उनका राजनीति में भी दखल था, लेकिन महाजनों- सूदखोरों से उनकी नहीं पटती थी। उस दौर में शोषण का एक आम तरीका यह था कि महाजन जरूरत पड़ने पर सूद पर धान देते और फसल कटने पर डेढ़ गुनावसूलते। इसे न चुकाने पर से खेत नाम करवा लेते और उसी से उस जमीन पर बेगार करवाते। एक बार उन्होंने एक महाजन को सरेआम पीटा भी था और इसलिए वे उनकी आंख की किरकिरी बन गए। उन दिनों शिबू गोला के एक स्कूल में पढ़ते थे और वहीं होस्टल में अपने भाई राजाराम के साथ रहते थे। 27 नवंबर1957 को शोबरन शिबू के लिए राशन पहुंचाने जा रहे थे, तभी घात लगाकर जंगल में उनकी हत्या कर दी गई।

अपने संघर्ष के दिनों में शिबू सोरेन ।

2.मां सोनामणि का संकल्प और शिबू सोरेन के ‘गुरुजी’ बनने की कहानी
शिबू की मां सोनामणि जीवट महिला थी। उन्होंने बहुत दिनों तक अपराधियों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट के चक्कर काटे और बच्चों को अपने बलबूते पाला। कोर्ट की तारीखों पर वे बच्चों को लेकर जाया करती थीं।एक दिन इस संकल्प के साथ लौटींकि अपने पिता के हत्यारों के साथ उनके बच्चे ही इंसाफ करेंगे। शिबू ने भी उनके संघर्ष को आगे बढ़ाया। लकड़ी बेचकर परिवार पाला। महाजन प्रथा के खिलाफ ‘धनकटनी आंदोलन’ चलाया। संथालों ने उन्हें दिशोम गुरु यानी ‘दसों दिशाओं का गुरु’ नाम दिया। तभी से शिबू गुरुजी के नाम से पहचाने जाने लगे। शिबू ने 4 फरवरी 1973 को झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन कियाऔर अलग राज्य के लिए संघर्ष किया। 1980 में जब पहली बार शिबू सांसद का चुनाव लड़े।तब वे और उनके समर्थक साइकिल पर झोले में लाल मिट्टी और नील रखकर गांव-गांव प्रचार करते और दीवारों पर आदिवासी एकता और समर्थन के नारे लिखते थे। 2000 में झारखंड अस्तित्व में आया तो शिबू का कद बढ़ गया। शिबूराज्य के पहले नेता हैं, जो खुद तीन बार सीएम बने और बेटे हेमंत को दो बार इस पद तक पहुंचाया।


3.जब नौसिखिए राजा पीटर ने शिबू सोरेन कोहरा दिया

2009 में शिबू को राजनीति के नौसिखिए राजा पीटर से हार का सामना करना पड़ा था। 27 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उस वक्त वे लोकसभा सांसद थे। इसलिए उन्होंने तमाड़ सीट से विधानसभा का उपचुनाव लड़ा। शिबू के खिलाफ झारखंड पार्टी ने राजा पीटर को मैदान में उतारा था। राजा ने सोरेन को 9000 से ज्यादा वोटों से हराया। इस हार के बाद सोरेन को 19 जनवरी 2009 को इस्तीफा देना पड़ा था। उनके इस्तीफे के बाद राज्य में 11 महीने 11 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।

दाएं से - छोट भाई बसंत,मां रूपी, पिता शिबू, पत्नी कल्पना और बच्चों के साथ हेमंत सोरेन।

4. भाई दुर्गा की असमय और संदेहास्पद स्थितियों में मौत से उठे सवाल
21 मई 2009 को शिबू के बड़े बेटे और पार्टी के महासचिव दुर्गा सोरेन की बोकारो सिटी में अपने निवास पर संदेहास्पद स्थितियों में मौत देशभर में सुर्खियां बनीं। हालांकि डॉक्टरों ने 39 साल के दुर्गा की मृत्यु का कारण किडनी फेल होना बताया था। यह भी कहा गया कि दुर्गा बहुत शराब पीने लगे थे और उन्हें कई बीमारियां थीं। हेमंत ने अगले दिन मीडिया से कहा था किदुर्गा रात को सोने चले गए थे लेकिन सुबह उठे ही नहीं, हम पोस्टमॉर्टम के बाद ही मौत के कारण पर कुछ बता पाएंगे। दूसरी ओर, बोकारो जनरल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने बताया था किजब दुर्गा को वहां लाया गया तो उनका शरीर अकड़ चुका था और ठंडा था। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बोकारो एसपी लक्ष्मण प्रसाद सिंह ने उनकी मौत पर संदेह जताया था क्योंकि उनके सिर में पीछे की ओर चोट के निशान थे और बिस्तर के करीब खून के छींटे मिले थे। दुर्गा की पत्नी सीता बाद में विधायक बनी और 2019 के चुनाव में भी उन्हें जीत मिली है। मां रूपी सोरेन कहती है, “दुर्गा की बड़ी याद आती है। मां हूं न। मां से पहले बेटा चला गया, बहुत दुख होता है। आज वह होता तो बहुत खुश होता।

पत्नी कल्पना के साथ हेमंत सोरेन।

5.16 साल पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ राजनीति में आए हेमंत
हेमंत का जन्म 10 अगस्त 1975 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ। हेमंत की स्कूली पढ़ाई पटना-बोकारो से हुई। मां चाहती थीं कि हेमंत पढ़ लिखकर इंजीनियर बनें, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के मुताबिक उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग के लिए बीआईटी मेसरा में एडमिशन लिया था लेकिन डिग्री पूरी नहीं कर पाए। मां कहती हैं कि हेमंत पढ़ने में तेज था। शुरू में राजनीति में रुचि नहीं थी। उसे स्केचिंग बहुत पसंद थी। एडवांस कोर्स करने के लिए वह विदेश जाना चाहता था। एडमिशन भी फाइनल हो गया था, पर बाबा ने नहीं जाने दिया। तबखूब रोया था। उस समय पार्टी में थोड़ा-बहुत काम करता था। बाबा और दुर्गा चुनाव में व्यस्त रहते या फिर आंदोलन करते थे, तो उनकी मदद करता था। छात्रों और युवकों को एकत्र करने का काम हेमंत का होता था।

हेमंत ने 2003 में छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था जबकि उनके बड़े भाई विधायक दुर्गा भी पार्टी को आगे बढ़ा रहे थे। 2009 में उनके असामयिक निधन के पार्टी और परिवार की पूरी जिम्मेदारी हेमंत पर आ गई। पिता शिबू बीमार रहने लगे और बढ़ती उम्र और कोर्ट की तारीखों ने भी उन्हें राजनीति से किनारा करने के लिए मजबूर कर दिया। हेमंत सोरेन जून 2009 से 4 जनवरी 2010 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे. इसके बाद साल 2013 में वो 15 जुलाई को कांग्रेस और आरजेडी की मदद से राज्य के पांचवें सीएम बने थे, लेकिन 2014 के चुनाव में हार के बाद उनकी सत्ता से विदाई हो गई थी।


हेमंत की पत्नी पत्नी कल्पना सोरेन स्कूल का संचालन करती हैं और इनके दो पुत्र हैं निखिल और अंश हैं। हेमंत के बारे में पूछे जाने पर इतना भर कहती हैं, “वह धैर्य बहुत रखते हैं. जल्दी घबराते नहीं। हमेशा कहते हैं कि चुनौती का सामना करना ही असली जिंदगी है।”



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