
भदोही. उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के ऑलराउंडर शिवम दुबे ने रविवार को भारत-वेस्टइंडीज सीरीज से वनडे क्रिकेट में पदार्पण किया। उनका परिवार अब मुंबई में रहता है। शिवम के पिता राजेश दुबे की जींस की फैक्टरी थी, जो बाद में घाटे की वजह से बंद हो गई। उन्होंने दैनिक भास्कर से फोन पर बात करते हुए शिवम के बचपन से जुड़े कई किस्से साझा किए।
राजेश बताते हैं- "शिवम जब 4 साल के थे, तब बल्ला लेकर घर के नौकर बटोरन के पास पहुंच जाते थे। उससे वह बॉल कराते थे। एक दिन बटोरन ने आकर मुझसे कहा कि अब मैं थक जाता हूं। बॉलिंग करते हुए परेशान हो जाता हूं। शिवम गेंद बहुत दूर मारता है। उसी दिन शाम को शिवम को घर के सामने ग्राउंड पर ले गया। मैंने पहली बॉल फेंकी, शिवम ने उसे घर की दूसरी मंजिल पर पहुंचा दिया। तब मुझे लगा कि शिवम बड़ा क्रिकेटर बनेगा। फिर मैंने बेटे के लिए घर में ही पिच बना दी। 20-20 रुपए में 6 बच्चों को रखा जो उसे बॉलिंग किया करते थे।"
चंद्रकांत सर ने पहचानी प्रतिभा
राजेश कहते हैं- "साढ़े 4 साल की उम्र में उसे अच्छे कोच दिलाने के लिए कई जगह गया। फिर एक दिन मुंबई के हंसराज कॉलेज में एडमिशन कराने गया। पता चला पूर्व इंडियन प्लेयर चंद्रकांत पंडित यहां के कोचहैं। उनसे अनुरोध किया तो बोले 6 से 7 साल के बच्चों को कोचिंग देता हूं। शिवम छोटा है। मैंने अनुरोध किया एक बार टेस्ट ले लीजिए। उन्होंने शिवम कोबैंटिंग का मौका दिया। चंद्रकांत सर ने तुरंत उसे ले लिया। फिर उसका सेलेक्शन अंडर 14 में गाइड ग्रिल्ड स्कूल टूर्नामेंट में हुआ, जिसमें कभी सचिन और विनोद कांबली ने रिकॉर्ड बनाया था। यहां शिवम ने 35 विकेट लिए और 350 के ज्यादा रन बनाए।"
'खुद शिवम की मालिशकरता था'
राजेश दुबे बताते हैं कि पढ़ाई के साथ शिवम को खेलने का खूब मौका दिया। वह थक भी जाता था। उसकी थकान को दूर करने के लिए रोज सुबह-शाम उसकी मालिश अपने हाथों से करता था। 20 साल की उम्र तक मैंने ऐसा किया। वो अक्सर कहता था कि पापा एक दिन इंडिया खेलकर आपका सपना पूरा कर दूंगा।
पांच साल काफी संकट भरे रहे
उन्होंने बताया- "2008 से 2013 तक का दौर काफी बुरा रहा। जींस की फैक्ट्री बंद होने से घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। उस समय प्रैक्टिस छूटने से शिवम का वजन 100 किलो हो गया। मेरी तबीयत भी काफी खराब हो गई। किसी तरह बुरे समय से उबरा और 17 साल की उम्र में फिर से उसके साथ लगा। वजन कुछ ही महीनों में 70 किलो तक आ गया। अब वो बेहतरीन प्लेयर बनने लगा था। कई टूर्नामेंट में वो पहचान बनाने लगा।"
मां माधुरी ने भी बेटे को हिम्मत दी
मां माधुरी ने बताया- "मैं बेटे से कभी-कभी कहती थी, हमारे यहां कोई प्लेयर नहीं हैं। लेकिन, तुम हिम्मत मत हारना। बस लक्ष्य जीवन का कुछ भी हो, पिता की मेहनत देख कर आगे बढ़ते रहो। अंधेरी स्थित मकान पर आज लोग बधाई देने पहुंचते है। सभी को फक्र है।''
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