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हे भगवान! ये बच्चा पार्टी फिर झगड़ने लगी; घर-घर की यही कहानी, एक्सपर्ट्स ने कहा- बेहतर रिश्ते गढ़ने का ये सही वक्त है

महीनाें की साेशल डिस्टेंसिंग के बाद परिजन की तरह बच्चे भी हताश-परेशान हाे गए हैं। किसी घर में बच्चे इस बात के लिए लड़ पड़ते हैं कि फलां कुर्सी पर काैन बैठेगा, तो कहीं मनपसंद टीवी सीरियल देखने के लिए झगड़ा होता है। पसंदीदा खाने के लिए ताे युद्ध हाे जाता है। यह घर-घर की कहानी है।

लाॅकडाउन में बच्चाें के ये झगड़े परिजन के सब्र का इम्तेहान हैं, लेकिन ये झगड़ाें का समाधान करने के मौकेभी हाे सकते हैं। सिबलिंग रिलेशनशिप एक्सपर्ट और बाेस्टन की नाॅर्दइस्टर्न यूनिवर्सिटी के एप्लाइड साइकाेलाॅजी की प्राे. लाॅरी क्रैमर बताती हैं, ‘8 साल से छाेटे बच्चाें में मुश्किल, भावनाभरी बातचीत करने का काैशल नहीं हाेता। इसलिए उनका मार्गदर्शन करें। इसके लिए यह सटीक समय है।’

एरिजाेना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्राे. किम्बर्ले अपडेग्राफ कहते हैं, ‘जब दाे भाई झगड़ते हैं या एक-दूसरे काे नुकसान पहुंचाते हैं, ताे हम दखल देकर समाधान पेश कर देते हैं औरउनके तर्क-कुतर्क काे बंद करवा देते हैं, लेकिन इससे उनकी खुद हल ढूंढ़ने के लिए मंथन करने की क्षमता पर असर पड़ता है। वे परिजन पर निर्भर रहने लगते हैं।’ वे कहते हैं, ‘हमारा अंतिम लक्ष्य उन्हें झगड़ाें का खुद समाधान निकालने के लिए प्राेत्साहित करना हाेना चाहिए।’


विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चाें की लड़ाई पारिवारिक कायदाें और नैतिक मूल्य से परिचित करवाने का भी अवसर है। जैसे आप उन्हें बगैर दखल दिए सुनने का महत्व बता सकते हैं। डाॅ. अपडेग्राफ कहते हैं, एक-दूसरे काे नुकसान पहुंचाते समय बच्चे अक्सर हमारा ध्यान खींचते हैं, लेकिन जब वे अच्छे से खेल रहे हाेते हैं ताे हम नजरअंदाज कर देते हैं। बेहतर यह है कि ऐसे व्यवहाराें का आभार प्रकट करें जाे आप अक्सर देखना चाहते हैं। जैसे एक-दूसरे से बांटकर खाना, साथ खेलना आदि।

ये समाधान भी मदद करेंगे

  • पूरे दिन में कुछ पल ऐसे निकाल सकते हैं जब भाई या बहन किसी गतिविधि में एक-दूसरे की मदद करें। इससे वे एक-दूसरे काे देखकर सीख सकते हैं।
  • बच्चाें की भावनाओंके अनुरूप उन्हें नए-नए शब्द सिखा सकते हैं।
  • मध्यस्थता तकनीक भी अपना सकते हैं। आप मध्यस्थ के रूप में पूरी बातचीत काे नियंत्रण में लेते हैं, लेकिन समाधान पर बच्चे खुद ही पहुंचते हैं।


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एप्लाइड साइकाेलाॅजी की प्राे. लाॅरी क्रैमर बताती हैं, ‘8 साल से छाेटे बच्चाें में मुश्किल, भावनाभरी बातचीत करने का काैशल नहीं हाेता। इसलिए उनका मार्गदर्शन करें। (प्रतीकात्मक फोटो)


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