World Wide Facts

Technology

दो दिन पहले तक उत्तराखंड के 71 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में थे, पिछले साल इस वक्त तक यह आंकड़ा डेढ़ हजार हेक्टेयर था

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की कई तस्वीरें और वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।इनमें से कुछ तस्वीरें तो हाल के दिनों की ही हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे वीडियो और तस्वीरें शेयर की जा रहीहैंजो या तो पुरानीहैं या जिनका उत्तराखंड से कोई संबंधनहीं है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावतसहित कई अधिकारियों ने लोगों को अफवाहों से बचने की सलाह दी है।
उत्तराखंड के जंगलों में लगी की खबरें पूरी तरह झूठी भी नहीं हैं। 25 मई तक राज्य के 71 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ चुके हैं और इसमें दो महिलाओं की मौत भी हो चुकी है। वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ‘बीते सालों की तुलना में जंगलों में लगी आग का आंकड़ा अब तक काफी कम है। पिछले साल इस वक्त तक लगभग डेढ़ हजार हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ चुके थे। इस साल यह आंकड़ा सिर्फ 71 हेक्टेयर है।’

जंगलमें आग को लेकर फेक न्यूज भीफैलती है


उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लगने वाली आगमें इस साल आई कमी के बारे में पूछने पर वन विभाग के विशेषज्ञ तीन मुख्य कारण बताते हैं। पहला, इस साल हुई भारी वर्षा के चलते जंगलों में नमी ज़्यादा है। अब तक भी पहाड़ के कई इलाकों में बरसात जारी है जो जंगल की आग को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा कारण है।

लॉकडाउन के कारण भी आग लगने की घटनाएं कम
दूसरा कारण जो विशेषज्ञ बताते हैं वो है देशभर में हुए लॉकडाउन के चलते मानव गतिविधियों का बेहद सीमित होना। चूंकि, जंगलों में लगने वाली आग के पीछे अधिकतर मानव गतिविधियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ होता है, लिहाजा इस साल लॉकडाउन के चलते जब मानव गतिविधियां सीमित रहीं तो इसका प्रभाव वनाग्नि में आई कमी के रूप में भी देखा गया।

तीसरा कारण बताते हुए वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, ‘सतर्कता के चलते भी वनाग्नि की घटनाओं में कमी आई है। गर्मियों की शुरुआत से पहले ही विभाग आग से बचने की तैयारी शुरू कर देता है। साथ ही आग लगने पर विभाग की प्रतिक्रिया भी अब पहले की तुलना में काफी तेज हुई है।

आईएफएस एसोसिएशन का ट्वीटः


जंगलों में हर सालआग क्यों लगती है?

उत्तराखंड में क़रीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। वन अधिकारियों के अनुसार इसमें से 15 से 20 प्रतिशत चीड़ के जंगलों वाला इलाका है। इन्हीं जंगलों में आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। चीड़ की पत्तियां इस आग में घी का काम करती हैं। यह पत्तियां जिन्हें पाईन नीडल भी कहा जाता है, मार्च से गिरना शुरू होती हैं और करीब 15 लाख मीट्रिक टन बायोमास बनकर पूरे जंगल में बिछ जाती है।

इसके दो नुकसान हैं। एक तो यह पत्तियां जहां भी गिरती हैं वहां कोई अन्य पेड़-पौधा नहीं उग पाता। दूसरा, इन पत्तियों में रेजिन होता है जिसके चलते ये बेहद ज्वलनशील होती हैं और हल्की चिंगारी मिलने पर भी भभक कर जलने लगती हैं। हवा के साथ यह आग अनियंत्रित फैलती और देखते ही देखते पूरे जंगल को चपेट में ले लेती है।

पौड़ी गढ़वाल जिले में बुधवार को भी आग लगी थी


आग लगने का यह सिलसिला कैसे शुरू होता है?

विशेषज्ञ मानते हैं जंगल में आग लगने की शुरुआत के पीछे दस में से सात बार किसी इंसान का ही हाथ होता है। जंगल में बारूद की तरह बिछी चीड़ की पत्तियों को पहली चिंगारी इंसान ही किसी न किसी कारण देते हैं। कई बार स्थानीय लोग जान-बूझ कर ऐसा करते हैं ताकि बरसात के बाद उन्हें अपने जानवरों के लिए नई घास मिल सके। कई बार जंगल में फेंकी गई बीड़ी-सिगरेट या खेतों में जलाई जाने वाली अतिरिक्त घास भी उस चिंगारी का काम कर जाती है जिससे पूरा जंगल जलने लगता है।

वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कई बार यह आग बिजली की तारों से भी पैदा होती है। आंधी आने पर जब जंगलों से गुजरती बिजली की तार आपस में टकराती हैं तो उसने पैदा हुआ स्पार्क भी इस आग का कारण बन जाता है।

पहले की तुलना में वनाग्नि की घटनाएं क्यों बढ़ी हैं?
उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला नया नहीं है। यहां सालों से ऐसा होता रहा है। लेकिन पहले की तुलना में आग ज्यादा विकराल होती इसलिए दिख रही हैं क्योंकि लोगों का जंगल से रिश्ता लगातार घट रहा है। वन अधिनियम लागू होने से पहले गांव के लोग जंगल पर सीधे निर्भर होते थे तो इसकी देखभाल भी वे अपनी जिम्मेदारी समझते थे। लेकिन नए कानून के बाद लोगों की हक-हकूक सीमित कर दिए गए, उनकी निर्भरता कम हुई तो यह जिम्मेदारी का सामूहिक एहसास भी घट गया।

उत्तराखंड में बढ़े पलायन को भी वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं के पीछे एक कारण माना जाता है। पहले जब गांव आबाद थे तो गर्मियां शुरू होने से पहले लोग खुद ही सामूहिक रूप से जंगलों की सफाई किया करते थे ताकि उन्हें आग से बचाया जा सके। अब चूंकि पलायन के चलते गांव ही खाली हो गए हैं तो यह जंगल की सफाई करने वाला कोई नहीं है।

हर साल लगने वाली वनाग्नि को रोकने के लिए वन विभाग क्या कर रहा है?
उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि प्रदेश स्तर पर इस दिशा में लगातार काम किया जा रहा है। लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल फरवरी महीने में ‘वन अग्नि सुरक्षा सप्ताह’ मनाया जाता है। इस दौरान वन विभाग के अधिकारी गांव-गांव में जाकर पंचायत प्रतिनिधियों की मदद से लोगों को वनाग्नि से बचने के बारे में बताते हैं।

हर साल प्री फायर प्लानिंग होती है
इसके अलावा हर साल गर्मी शुरू होने से पहले प्री-फायर प्लानिंग भी विभाग करता है जिसके तहत फायर लाइन सही की जाती हैं। फायर लाइन यानी जंगलों में ऐसे बफर इलाके बनाना जो आग के फैलते क्रम को तोड़ सकें। ऐसे में आग यदि लगती भी है तो फायर लाइन से आगे नहीं बढ़ पाती। अधिकारी बताते हैं कि वन विभाग हर साल महिला मंगल दल और वन पंचायतों के साथ मिलकर ये काम कर रहा है।

इससे बचने का स्थायी समाधान क्या है?
प्रदेश के रुद्रप्रयाग ज़िले में इस समस्या के समाधान का एक मॉडल तैयार हुआ है। यहां कोट मल्ला नाम का एक गांव है, जहां के रहने वाले जगत सिंह ‘जंगली’ ने वनाग्नि से छुटकारा पाने का कारगर समाधान निकाला है। जगत सिंह ने अपने गांव के पास मिश्रित वन तैयार किया है। इसमें हर तरह के पेड़ होने के चलते मिट्टी में नमी कहीं ज्यादा होती है और चीड़ का मोनोकल्चर को नुकसान करता है, उससे निजात मिल जाती है।

वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, ‘मिट्टी में नमी की मात्रा को बढ़ाना एक स्थायी समाधान हो सकता है। ऐसा होने पर मिश्रित वन तैयार हो सकते हैं जहां कभी आग लगने की घटनाएं नहीं होती। इसके अलावा लोगों की सामूहिक जिम्मेदारी भी बेहद जरूरी है। वन क्षेत्र इतना बड़ा है और विभाग के संसाधन इतने सीमित कि लोगों के सहयोग के बिना वनाग्नि पर पूरी तरह नियंत्रण संभव नहीं है।’



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
विशेषज्ञ मानते हैं जंगल में आग की शुरुआत के पीछे दस में से सात बार किसी इंसान का ही हाथ होता है। जंगल में बारूद की तरह बिछी चीड़ की पत्तियों को पहली चिंगारी इंसान ही किसी न किसी कारण देते हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/36yMPOz
Share:

0 Comments:

Post a Comment

Blog Archive

Definition List

header ads

Unordered List

3/Sports/post-list

Support

3/random/post-list