कोरोनावायरस की वजह से दुनिया में 58 लाख से ज्यादा लोग बीमार हुए और साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी है। ये इंसानों की जिंदगी पर पिछले कुछ दशकों का सबसे बड़ा खतरा बनकर उभराहै। इस महामारी ने दुनिया की हर चीज बदलकर रख दी है।
खास तौर पर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी ऐसी चीजों को बड़े पैमाने पर बदल दिया, जिनका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, फिर भी आंकड़ों को खंगालने वाले और हमारे बीच का सांख्यिकीय दिमाग इसे मापने की कोशिश कर रहा है। हमने जिंदगी से जुड़े ऐसे ही पहलूओं को समझने की कोशिश की है जिनमें या तो बढ़ोतरी हुई है, या फिर गिरावट रही है।
इनमें पर्यावरण से लेकर बेरोजगारी और अपराध से लेकर उपयोगी चीजों की खपत तक शामिल है। जो सबसे अच्छी बात हुई है वह यह कि दुनिया भर में स्वास्थ्यकर्मियों का सम्मान बढ़ा है और उनकी सराहना हो रही है। हालांकि, उन्हें मिलने वाला मेहनताना काफी कम रहा है। हमने ऐसे ही 54 बड़े बदलावों को समझने की कोशिश की है। इनमें से चुनिंदा को जानते हैं।
- स्वास्थ्यकर्मियों का सम्मान, सराहना बढ़ीः संकट के दौर में हेल्थ स्टाफ मसीहा बनकर उभरा। वे खुद और परिवार की परवाह किए बिना मोर्चे पर डटे रहे। लोग तालियां, संगीत बजाकर उनका सम्मान करने लगे।
- मास्क, डिस्टेंसिंगः सार्वजनिक परिवहन, दुकानों और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर लोग मास्क पहनने लगे। सोशल डिस्टेंसिंग भी अपना रहे। संक्रमण के दौर में ये जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। स्वास्थ्य को लेकर भी जागरूकता बढ़ी है।
- बेरोजगारी बढ़ीः कोरोना संकट का असर रोजगार पर भी पड़ा। अमेरिका में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड 14% हो गई। विशेषज्ञों के मुताबिक 1998 के बाद पहली बार गरीबी बढ़ेगी। करीब 50 करोड़ लोग गरीबी का शिकार हो सकते हैं।
- अनुमान से ज्यादा मौतेंः कोरोना संकट में दुनिया भर में हुई मौतों की संख्या अनुमान से कहीं ज्यादा है। आधिकारिक आंकड़े स्पष्ट तस्वीर नहीं दिखाते, लेकिन 24 देशों का अध्ययन कर न्यूयॉर्क टाइम्स ने पाया कि कई देशों में 74 हजार मौतें ज्यादा हुईं। इनमें वे भी हैं जो अस्पताल में इलाज के लिए नहीं पहुंच। अमेरिका में करीब 57 हजार लोगों की मौत ऐसे ही हुई।
- वसीयत बनाने लगे लोगः असमय मौत के डर से वसीयत में तेजी आई। इसकी वजह यह है कि कोरोना से इलाज या मौत के दौरान परिवार, दोस्त या करीबी को आने की इजाजत नहीं थी।
- पलायन और संक्रमण बढ़ाः महामारी को रोकने के लिए मानव इतिहास के सबसे बड़े प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन वे पर्याप्त साबित नहीं हुए। लाखों लोगों का काम-धंधा बंद हो गया, तो वे घर लौटने लगे। अकेले वुहान से 70 लाख लोग शहर छोड़कर गए। कोरोना का प्रकोप फैलने का इससे बदतर समय नहीं हो सकता था।
- टीकाकरण, अंगदान प्रभावितः स्वास्थ्य को लेकर पूरी दुनिया का ध्यान कोरोना पर रहा। इससे दुनिया भर में टीकाकरण कार्यक्रम पर असर पड़ा। इसी कारण विशेषज्ञों ने मीजल और पोलियो के दोबारा लौटने की चेतावनी दी है। मौतें तो काफी हुईं, लेकिन संक्रमण के डर से अंगदान और प्रत्यारोपण भी रुक गया।
- ट्रैफिक, एक्सीडेंट घटे, स्पीड बढ़ गईः लॉकडाउन के दौरान ट्रैफिक बंद होने की वजह से सड़कों पर एक्सीडेंट घटे, लेकिन जो वाहन चल रहे थे, उनकी स्पीड़ बढ़ गई। खाली सड़कों पर लोग तेज रफ्तार से वाहन दौड़ाने लगे।
- पर्यावरण में सुधारः दुनियाभर में ट्रैफिक थमने का असर ग्रीन हाउस गैस और कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन पर पड़ा। फॉसिल फ्यूल और वाहनों का इस्तेमाल घटने से इनमें रिकॉर्ड गिरावट रही। नई रिसर्च के मुताबिक इन गैसों का उत्सर्जन करीब 8% तक घटा।
- अपराध घटे, पर चोरी-धोखाधड़ी बढ़ीः बड़े अपराध कम हुए, लेकिन चोरी-धोखाधड़ी बढ़ी। सुनसान शहरों का फायदा उठाकर चोरों ने दुकानों, रेस्तरां को निशाना बनाया। कोरोना के नाम पर ऑनलाइन धोखाधड़ी बढ़ गई है।
- ऑनलाइन हुई दुनियाः वर्क फ्रॉम होम, ऑनलाइन पढ़ाई, ट्रेनिंग का चलन बढ़ा। ज्यादातर बच्चे घरों में ही रहे। जरूरत की चीजों की होम डिलीवरी बढ़ी। चीजों को छूने से बचने के लिए ऑनलाइन ऑर्डर भी बढ़े। ई-लर्निंग, ई-गेमिंग, ई-बुक्स और ई-अटेंडेंस का चलन बढ़ा।
- स्क्रीन टाइम बढ़ाः कोरोना महामारी से पहले हमने डिजिटल डिवाइस या उपकरणों पर बितने वाला वक्त कम करने और इन्हें ज्यादा देखने से रोकने की हरसंभव कोशिश की। लेकिन लॉकडाउन में इसे बढ़ा लिया। लोगों ने स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताया।
- आटे की खपत बढ़ी, पर साथ खाने की आदत छूट गईः लॉकडाउन के दौरान दुनिया की बड़ी आबादी घरों में सिमट गई। इस वक्त का इस्तेमाल लोगों ने नए-नए प्रयोग करने पर किया। सबसे ज्यादा एक्सपरिमेंट खाने-पीने को लेकर हुए। सीमित संसाधनों के बीच सबसे ज्यादा खपत आटे की रही। हालांकि, सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से लोगों का मिल-जुलकर खाना पकाने और खाने की आदतें कम हो गईं।
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