
देशभर मेंलाखों मजदूरों का पलायन जारी है। भूख से लड़ते हुए तपती सड़कों पर नंगे पैर मीलों के सफर पर ये मजदूर निकल पड़े हैं। इनके पैरों में न चप्पल है,न सिर पर छांव। मलोया से 10 साल की यह बच्ची भी इसी सफर पर अपने माता-पिता के साथ निकली है। घर से सैंडिल पहनकर चली थी। रास्ते में टूट गए तो फेंकने पड़े। फिर तपती दुपहरी में नंगे पांव ही चल पड़ी। इन्हें यूपी के उन्नाव जाना है। बेहतर जिंदगी के लिए गांव छोड़ शहर आए थे। अब अधूरे सपनों के साथ ही गांव की ओर वापस जाना पड़ रहा है।

दिन शुक्रवार। जगह सेक्टर-43 बस स्टैंड। टाइम 4 बजे। एक बुजुर्ग महिला गोद में फूल से बच्चे को लेकर बैठी थी। पूछने पर महिला ने अपना नाम धारी देवी बताया। उन्होंने कहा कि यह मेरा लाडला पोता है। सिर्फ 17 दिन का है। रायपुरखुर्द में रहते थे, लेकिन अब हालात ठीक नहीं, इसलिए रात 8 बजे वाली ट्रेन से उन्नाव जा रहे हैं।
बच्चे का नाम पूछा तो महिला का गला भर आया। बस इतनाकहा, ‘बेटा नाम से ज्यादा हमें इसकी फिक्र हो रही है। क्योंकि, इसे भरपेट दूध नहीं मिल रहा। 17 दिन पहले बहू ने इसे जन्म दिया था। डॉक्टरों ने कहा था कि इसे पौष्टिक आहार देना। लेकिन, यहां तो दो टाइम का खाना भी नसीब नहीं हो रहा। इस वजह से बहू के उतना दूध भी नहीं बन रहा, जिससे मासूम का पेट भर सके। क्या करें, हमें तो अब आंसुओं का कड़वा घूंट ही पीना पड़ेगा।’(इनपुट और फोटो: अश्वनी राणाा)
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