
श्रीनगर. 33 साल की आरीफा जान से मिलिए। कभी बंद, कभी कर्फ्यू और हर दिन होती हिंसा के बीच आरिफा नए और विश्वास से भरे कश्मीर का चेहरा हैं। अब तक कश्मीर में महिलाएं परदे के पीछे रहकर जिंदगी गुजारती आई हैं, लेकिन आरिफा का चेहरा अब उस कश्मीर को दिखाता है, जहां युवा महिलाएं आजादी के साथ सफलता की नई कहानियां गढ़ रही हैं। वे रूढ़िवादी माहौल से मुक्त भी हैं और घाटी में हर दिन होती हिंसा से दूर भी। वे सभी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ रही हैं। इनकी ये कहानियां कश्मीर में अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही है।
आरिफा का जिक्र यहां इसलिए, क्योंकि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वुमंस-डे पर इन्हें नारी शक्ति अवार्ड से नवाजा है। वे उन महिलाओं में से भी एक थीं, जिन्होंने 8 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीटर हैंडल से अपनी कहानी ट्वीट की थी। आरिफा ने ट्वीट कर कहा था, "मैं हमेशा से कश्मीरकी पारंपरिक कलाओं को जिंदा रखने का सपना देखती रही,क्योंकि इसी से ही स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता था। मैंने स्थानीय महिला कारीगरों की हालत देखी और उसी के बाद नमदा क्राफ्ट को फिर से जिंदा करने का काम शुरू किया।” इस ट्वीट के साथ ही एक वीडियो के जरिए वे अपनी कहानी बताती हैं।
I always dreamt of reviving the traditional crafts of Kashmir because this is a means to empower local women.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 8, 2020
I saw the condition of women artisans and so I began working to revise Namda craft.
I am Arifa from Kashmir and here is my life journey. #SheInspiresUs pic.twitter.com/hT7p7p5mhg
पीएम मोदी के ही ट्वीटर अकाउंट से किए एक अन्य ट्वीट में आरिफा यह भी कहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिया गया सम्मान उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है। यह सम्मान उन्हें ज्यादा मजबूती से कश्मीरी कला और कारीगरों की बेहतरी के लिए काम करने में मदद देगा।
आरिफा के लिए यह एक बड़ा मौका था, लेकिन आरिफा को ये सबकुछ इतनी आसानी से नहीं मिला। यह सफर कठिनाइयों से भरा रहा, उनकी हिम्मत और प्रतिबद्धता के चलते वे इन तमाम हालातसे निपटते हुए एक बेहद सफल व्यवसायी बन सकीं। उन्होंने अपने व्यवसाय के जरिए कश्मीर से गायब हो रही एक कला को नया जीवन दिया।
7 साल पहले क्राफ्ट मैनेजमेंट कोर्स किया, आज कश्मीर के नमदा क्राफ्ट को बचाने का श्रेय मिल रहा
आरिफा की कहानी श्रीनगर की संकरी गलियों से शुरू होती हैं जहां वे एक सपना बुनती हैं। आरिफा जान ने 7 साल पहले क्राफ्ट मैनेजमेंट का कोर्स किया था। इसके बाद ही वे बाजार से गायब हो रही कश्मीर की नमदा कालीन को फिर से बाजार में लाने के एक मिशन में जुट गईं। उन्होंने इस बेमिसाल क्राफ्ट को गायब होने से बचाने और इसे बनाने वाली महिला कारीगरों की बेहतरी के लिए मिशन मोड में काम शुरू किया। आरिफा कहती हैं कि वेकश्मीर के इस गायब होते क्राफ्ट को दुनिया को दिखाना चाहती हैं।वे इसी प्रेरणा के साथ अपने काम में लगी रहीं और आज एक सफल व्यवसाय चला रही हैं।
आरिफा व्यवसाय के लिए पैसों की तंगी के साथ-साथ रूढ़ीवादी सोच से भी लड़ती रहीं
26 साल की उम्र में 50 हजार रुपयों के साथ आरिफा ने नमदा क्राफ्टको कुछ नया कलेवर देकर कश्मीर के बाहर बड़े बाजार में बेचने का सपना देखा। इस सपने को आगे बढ़ाने के लिए यह पैसा बहुत कम था। हालांकि, 3 महीने के अंदर ही दिल्ली के इंपीरियल कॉटेज इंडस्ट्री के प्रमुख गुलशन नंदा ने उनके काम को परखा और उन्हें अपना व्यवसाय खड़ा करने के लिए 1.5 लाख रुपए की मदद दी। इस तरह 2 लाख रुपयों के साथ आरिफा अपने मिशन में जुट गईं। उनका लक्ष्य था कि कश्मीर की असंगठित कॉटेज इंडस्ट्री को संगठित करें और उसे प्रोफेशनल बनाएं। जल्द ही उन्हें यह महसूस हुआ कि अपने काम के लिए महज पैसे ही उनकी चिंता नहीं थे, महिलाओं का जीने का तरीका और रूढ़िवादी समाज सबसे बड़ी चुनौती थे।

आरिफा कहती हैं, "मैं एक रूढ़िवादी मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हूं। मेरे रिश्तेदार नहीं जानते थे कि मैं क्या कर रही हूं। मेरा परिवार भी मेरे और मेरे काम के बारे में किसी को बताने में हिचकिचाता था। मैं इन सालों में कई आलोचनाओं से गुजरी हूं। मेरा परिवार मेरी मदद करता था, लेकिन उन्हें भी लगता था कि मैं कहीं गलत दिशा में तो नहीं जा रही। परिवार का यह ख्याल शायद मेरी शादी के मामले से जुड़ा हो सकता था न कि कामकाज से।” आरिफा अब शादीशुदा हैं। सारी बाधाओं से ऊपर उठकर उन्होंने चार महीने पहले ही शादी की है।
कालीनअब ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड और कतर भी जाते हैं
आरिफा ने 3 बुनकरों के साथ अपने व्यवसाय की शुरुआत की थी। 6 साल के अंदर यह संख्या 15 पहुंच गई।उन्हें अपने व्यवसाय से बेहिसाब फायदा तो नहीं हुआ, लेकिन यह बड़ी तेजी से बढ़ता गया। शुरुआत के तीन साल में उन्हें कुल 4 लाख की बचत हुई,लेकिन अब वे पूरे देश में प्रदर्शनी लगाती हैं। आस्ट्रेलिया, फिनलैंड और कतर में भी उनके कारीगरों के बनाए नमदा कालीन बिकते हैं। वे अमेरिका में हुए इंटरनेशल लीडरशिप प्रोग्राम के लिए भी नामित हुई थीं। यहां उन्होंने कश्मीरी कालीनों पर प्रजेंटेशन भी दिया था।

अमेरिका ने नागरिकता ऑफर कर दी, बिजनेस में पार्टनरशिप का भी ऑफर मिला
आरिफा बताती हैं, "इतने सारे सम्मान के लिए मैं अल्लाह का शुक्रिया अता करती हूं। अमेरिका ने मुझे इंटरनेशनल विजिटर्स प्रोग्राम के लिए बुलाया। जिंदगी में ऐसा कुछ भी होगा ये मैंने कभी नहीं सोचा था। मैं वहां 1 महीने के लिए गई और 6 राज्यों में घूमी। जब मैंने वहां अपने काम के बारे में बताया तो सभी लोग बड़े प्रभावित हुए। यहां तक कि मुझे अमेरिका की नागरिकता के लिए योग्यता सर्टिफिकेट भी दे दिया गया। वहां से मुझे पार्टनरशिप के लिए भी ऑफर मिले, लेकिन क्योंकि यह मेरे व्यवसाय की पहली स्टेज ही है और मुझे लगा कि यह सही समय नहीं है, इसलिए मैंने पार्टनरशिप से इंकार कर दिया। मैं हमेशा से बस ये ही चाहती हूं कि जो भी करूं वह कश्मीर के लिए करूं।”
370 हटने के बाद बहुत नुकसान झेला
आरिफा ने जब से यह काम शुरू किया, वह लगातार ताकत के साथ बढ़ती गई। उन्होंने शुरू में दर्जनों कश्मीरी लड़कियों के साथ इन कालीनों के लिए 3 केन्द्र खोले। पिछले साल 5 अगस्त को जब संविधान से आर्टिकल 370 को हटा दिया गया तो यह उनके व्यवसाय के लिए एक नई चुनौती थी। बंद पड़े इंटरनेट के कारण उन्हें बड़ा नुकसान हुआ। वे अपने ग्राहकों से सम्पर्क नहीं कर सकीं और दो केन्द्र बंद करने पड़े। इनमें काम करनेवाली लड़कियों को भी उन्हें नौकरी से हटाना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी से चर्चा के दौरान भी उन्होंने यह मुद्दा उठाया था। आरिफा ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को इंटरनेट के बंद होने से कश्मीर में बिजनेस को हुए नुकसान के बारे में बताया है।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिला सम्मान पिताको समर्पित किया
आरिफा ने इस अवार्ड को जीतकर अपने परिवार को गौरवान्वित किया। उनकेधैर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति की सभी तारीफ करते हैं। आरिफा बताती हैं, "जब मेरे परिवार को पता चला कि मैं यह अवार्ड जीत गई हूं तो सभी बहुत खुश हुए। मैं यह सम्मान अपने पिता को समर्पित करती हूं जो इस सफर में मेरी ताकत रहे।”
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