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पंचायत ने तय किया- लॉकडाउन में खाली नहीं बैठना है, 10 हजार परिवार कृषि क्रांति ले आए, हर खाली जगह पर सब्जियां उगा दीं

लॉकडाउन में केरल की एक पंचायत ने नई कृषि क्रांति खड़ी कर दी है। जब 23 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन के घोषणा हुई थी, तभी एर्नाकुलम जिले की वडक्ककेरा ग्राम पंचायत ने तय किया वे इस समय का बखूबी इस्तेमाल करेंगे। सामूहिक चर्चा के बाद तय हुआ कि गांव की खाली पड़ी जगह, घरों के आसपास और छतों पर सब्जियां उगाएंगे।

पहले हफ्ते करीब 4800 परिवार इस मुहिम में जुड़े। कुछ ही दिनों में गांव के 10 हजार 312 परिवारों में 9417 परिवार जुड़ चुके हैं। अब केरल सरकार के कृषि विभाग ने इन किसानों के लिए बाजार भी तैयार कर दिया है, जहां सभी अपनी उपज बेच सकते हैं। पंचायत की तरफ से बेस्ट फार्म और बेस्ट किसान को अवॉर्ड भी दिया जा रहा है।

द वेजिटेबल फार्मिंग चैलेंज मुहिम के तहत खुद को सब्जियों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने वाले इस गांव के परिवारों ने पहले छोटे-छोटे समूह बनाए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने घरों के आसपास खाली पड़ी जगहों को साफ किया। इसके बाद इनकी जुताई कर इन्हें सब्जी बोने लायक खेत में तब्दील किया।

लोगों ने तय किया- पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे

ग्राम पंचायत ने अलग-अलग किस्म के बीजों के 20 हजार से अधिक पैकेट मुफ्त बांटे। तय हुआ कि पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे और आर्गेनिक फार्मिंग अपनाएंगे। आज यहां के हर घर में भिंडी, बैंगन, कद्दू, करेला, लाल भाजी और लौकी की फसलें लहरा रही हैं।

सामूहिक प्रयासों से मिली सब्जी की उपज इतनी ज्यादा थी कि केरल सरकार के कृषि विभाग ने किसानों के लिए बाजार तैयार करके दिया है, जहां गांव के लोग अपनी सब्जियां बेच सकते हैं। यह मार्केट सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चलता है।

पंचायत के सहायक कृषि अधिकारी एस सीना बताते हैं कि हमने लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए यह फार्मिंग प्रोग्राम शुरू किया था, ताकि लॉकडाउन में घर में रहते हुए वह सब्जियां उगाएं। यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा। गांव के ज्यादातर लोग अब साथ खेती का आनंद उठा रहे हैं।



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पंचायत की तरफ से लोगों को बीज के मुफ्त पैकेट बांटे गए, केरल सरकार ने सब्जी बेचने के लिए बाजार तैयार किया।


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पायलट ट्रेनिंग के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो कानपुर की सौम्या ने उधार की ड्रेस बेचकर खड़ा किया बिजनेस

2007 की आर्थिक मंदी में कानपुर की सौम्या गुप्ता के भी सपने टूटे थे। तब 19 साल की सौम्या ने 65 लाख रुपए खर्च कर अमेरिका में पायलट की ट्रेनिंग पूरी की थी। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी नौकरी नहीं मिली। इसलिए जिम रिसेप्शनिस्ट से लेकर कॉल सेंटर तक में काम किया। फिर उधार लेकर कपड़ों का अपना बिजनेस शुरू किया। आज उनकी कंपनी में 35 कर्मचारी काम करते हैं और उनके डिजाइन किए करीब दस हजार कपड़े रोज बिकते हैं।

सौम्या कहती हैं कि 2006 में मेरा करिअर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया। ट्रेनिंग के बाद नौकरी मिलना तय था। पर अचानक पूरी इंडस्ट्री अनिश्चितताओं के घेरे में आ गई। इसका कारण था अमेरिका का सब-प्राइम मोर्गेज डिफाल्ट, जिसके कारण लेहमन ब्रदर्स जैसे बड़े बैंक और अमेरिकन इंश्योरेंस ग्रुप दिवालिया हो गई थीं।

वे बताती हैं कि 2008 का पूरा साल मैंने नौकरी की तलाश में बिता दिया। आखिर मैंने 5000 रुपए महीने की नौकरी जिम में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर शुरू की। कुछ दिनों बाद ही एक कॉल सेंटर ज्वाइन कर लिया। रात में यहां काम करती और दिन में दूसरी नौकरी की तलाश।

इस बीच एक मेरी मुलाकात राबर्टो कवाली और गॉटियर जैसे ब्रांड के कपड़ों का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का काम करने वाली एक महिला से हुई। मैंने उनसे 20 ड्रेसें उधार लीं और घर में दोस्तों के लिए इन कपड़ों की सेल लगाई। एक घंटे में 100% मुनाफा कमाया।

ये 2009 की बात है। मैंने कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ दी और कपड़ों के बिजनेस में आ गई। स्नैपडील, फ्लिपकार्ट और दूसरे छोटे-बड़े ऑनलाइन प्लेटफार्म पर कपड़े बेचने की जद्दोजहद शुरू कर दी। आज मेरी कंपनी 10 ऑन 10 हर रोज 10 हजार ड्रेस बेचती है। कंपनी का काम अभी अमेरिका से चल रहा है और कनाडा और यूरोप में बिजनेस शुरू किया है।

अब मास्क का एक्सपोर्ट

सौम्या बताती हैं कि कोरोनावायरसके आने पर उन्हें लगा जैसे वो 2007 में पहुंच गई हों। फर्क सिर्फ इतना था कि आज कमाई नौ अंकों में होती है। ड्रेस की बिक्री घटी तो मास्क का एक्सपोर्ट शुरू किया है।



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सौम्या कहती हैं कि कोरोना के कारण ड्रेस की बिक्री घटी तो उन्होंने मास्क का एक्सपोर्ट शुरू कर दिया है।


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मंदी में नौकरी गई, पत्नी के जेवर बेच फैक्ट्री लगाई, अब टर्नओवर 100 करोड़ रुपए हुआ

कोरोना काल में जब नौकरियां जा रही हैं, ऐसे में उत्तराखंड के हर्षपाल सिंह चौधरी की कहानी किसी आदर्श से कम नहीं है। साल 2007 की वैश्विक मंदी में उनकी नौकरी छिन गई थी। तब उन्हें 6700 रुपए सैलरी मिलती थी, लेकिन हर्षपाल निराश नहीं हुए। उन्होंने पत्नी के गहने बेचकर 2 लाख रुपए जुटाए और हर्बल प्रोडक्ट बनाने की एक छोटी फैक्ट्री शुरू की।

आज इनकी कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ रु. पहुंचने जा रहा है। इन्होंने अपने पूरे गांव को रोजगार दिया है। हर्षपाल उत्तराखंड के छोटे किसान परिवार से हैं। माइक्रोबायोलॉजी और फूड सैंपलिंग की पढ़ाई करने के बाद 1994 में उन्होंने हेल्थ केयर और फूड सैंपलिंग सेक्टर में नौकरी शुरू की थी।

स्टार्टअप शुरू करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे- चौधरी

सोनीपत में उनकी नाैकरी ठीक चल रही थी कि 2006 में मंदी की आहट सुनाई देने लगी। वे बताते हैं कि तब मेरे पास पैसे नहीं थे, लेकिन मैं स्टार्टअप शुरू करना चाहता था। मैंने पत्नी बीना के गहने बेच दो लाख रुपए जुटाए। इन पैसों से गुजरात के नवसारी में एक छोटी फैक्ट्री डाली। बीना इसका काम देखने लगी और मैंने नौकरी जारी रखी।

पहला ऑर्डर अमेरिका से अनार के जूस से 2 किलो पाउडर तैयार करने का मिला। इस बीच मेरी नौकरी चली गई। मैं फैक्ट्री के काम में लग गया और हर्बल प्रोडक्ट्स एब्सट्रैक्ट की ट्रेडिंग के लिए अंबे फाइटोएस्ट्रैक्ट्स कंपनी शुरू की। काम बढ़ने लगा तो बड़ी फैक्ट्री की जरूरत महसूस हुई।

छह लोगों से शुरू फैक्ट्री में अब 100 लोग हैं

जमीन खरीदने के लिए दो करोड़ रुपए की जरूरत थी। इतना पैसा नहीं था। इसलिए मैंने उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल के अपने गांव जामरिया में पैतृक जमीन पर फैक्ट्री लगाने का फैसला किया। गांव में दो करोड़ की मशीनें लगाईं। इस इलाके में यह पहली फैक्ट्री थी। 2012 में फैक्ट्री तैयार हो गई। कच्चे माल के लिए गांव के लोगों को ही ट्रेनिंग दी। छह लोगों से शुरू फैक्ट्री में अब 100 लोग हैं। अधिकतर गांव के ही हैं।

अमेजन से डील की...

हर्षपाल की कंपनी में तैयार आंवला, हल्दी, अदरक, गिलोय, तुलसी, एलोवेरा, काली मिर्च समेत 100 प्रोडक्ट्स का अर्क पूरी दुनिया में जाता है। हर्षपाल ने अमेजाॅन के साथ सैनिटाइजर की डील की है।



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आज हर्षपाल सिंह चौधरी की कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ रु. पहुंचने जा रहा है। इन्होंने अपने पूरे गांव को रोजगार दिया है।


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रेल मंत्री ने कहा- आज से चलने वाली 200 ट्रेनों में बिना रिजर्वेशन किसी को सीट नहीं, जनरल में भी जितनी सीटें उतनी ही एंट्री देंगे

देश में 68 दिन के लॉकडाउन के बाद रेलवे 200 यात्री ट्रेनें 1 जून यानी सोमवारसे शुरू कर रहा है। इन ट्रेनों में बिना रिजर्वेशन कोई नहीं बैठ सकेगा। रिजर्व बोगियों में केवल कन्फर्म टिकिट वाले यात्री ही बैठ सकेंगे। वेटिंग टिकिट वालों की एंट्री नहीं हो सकेगी। जनरल बोगियों में भी सीटों की संख्या से ज्यादा लोगों को चढ़ने नहीं दिया जाएगा। यह बात रेल और वाणिज्य उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए कही। पेश है उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल: ट्रेनों की सामान्य स्थिति कब तक बहाल होगी?
जैसे-जैसे डिमांड बढ़ेगी, ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाएगी और हम सामान्य स्थिति की ओर लौटेंगे। अभी भी जो 200 ट्रेन हम चला रहे हैं, वह पूरी तरह फुल नहीं हुई हैं। लोग जरूरी होने पर ही यात्रा कर रहे हैं। बाद में निजी ट्रेनें भी चलाएंगे।

सवाल: 15 जोड़ी राजधानी ट्रेन शुरू की गई हैं, उनमें डायनामिक फेयर लिया जा रहा है, ऐसा क्यों?
अधिकांश ट्रेन अभी भी फुल नहीं जा रही हैं। पुराने सिस्टम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। सिर्फ केटरिंग का चार्ज कम किया है। सब कुछ जाे पहले था उसी को बरकरार रखा है।

सवाल: रेलवे सिर्फ कंफर्म टिकट के आइडिया पर जाएगा?
आपका सुझाव सोचने लायक है, अभी हमने इस दिशा में सोचा नहीं है। अभी हम श्रमिकों की सेवा में लगे हैं। देश के कोने-कोने तक सामान और श्रमिक पहुंचें यहीं प्राथमिकता है।

सवाल: श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर केरल, प. बंगाल और महाराष्ट्र ने भेदभाव के आरोप लगाए हैं, क्या कहेंगे?
मैं दावे से कह सकता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में किसी भी मंत्री ने, किसी भी राज्य सरकार के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया है। अभी तक राज्यों ने जितनी भी ट्रेन मांगी, हमने दी हैं। बल्कि समस्या उल्टी है। 250 ट्रेन ऐसी रहीं, जो राज्य सरकारों ने मांगी और फिर चल नहीं पाईं।

महाराष्ट्र का आपने जिक्र किया तो मैं बता दूं कि 109 ट्रेनों को राज्य सरकार की रिक्वेस्ट पर हमने तैयार किया और फिर भी वो ट्रेन चला ही नहीं पाए। पश्चिम बंगाल तो ट्रेन लाने ही नहीं दे रहा था। यहां तक कि उसने श्रमिक ट्रेन को कोरोना एक्सप्रेस तक कह दिया। राज्य जितनी श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन मांगेंगे, हम देते रहेंगे। हम श्रमिकों की सेवा कर रहे हैं।

आज से चलने वाली 200 ट्रेनों में....
सवाल: सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में काउंटर बुकिंग का भविष्य क्या होगा?
पहले हमने काउंटर बुकिंग शुरू नहीं की थी, आईआरसीटीसी की वेबसाइट से ही बुकिंग की सुविधा थी। फिर कई राज्यों की रिक्वेस्ट मिली कि हमारे यहां कई लोग जाना चाहते हैं और उनको इंटरनेट चलाना नहीं आता है। हमने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए काउंटर शुरू किए। ये काउंटर वहां शुरू नहीं किए जहां से श्रमिक स्पेशल ट्रेन चल रही थीं, उससे कुछ दूरी पर शुरू किए। रेलवे धीरे-धीरे सभी काउंटर खोलेगा। काउंटर कम नहीं करेंगे।

सवाल: लॉकडाउन के दौरान मालगाड़ियों से कितना गुड्स भारत वर्ष में पहुंचाया?
लॉकडाउन के दौरान 24 मार्च से 25 मई तक दो महीने में 16 करोड़ टन माल का परिवहन किया है। देश के कोने-कोने में एक भी दिन अनाज, खाद और कोयला आदि की कमी नहीं रही। देश के कोने-कोने में हम ये सामान पहुंचाते रहे। अगर अनाज देखें तो वो इस दौरान दोगुना हो गया। दूध, कोयला, लोहा, आयात-निर्यात आदि सामान की ढुलाई इस दौरान हमने की है।

सवाल: रेलवे की इस साल कमाई का लक्ष्य क्या है?
यह एक समस्या है। हम वित्त मंत्रालय से चर्चा कर आगे का रास्ता खोजेंगे। फिलहाल हमारी प्राथमिकता समय पर सबको सामान मिले और श्रमिक अपने घर पहुंचे, यही है। रेलवे के वेतन में करीब 90 हजार करोड़ और पेंशन में 50 हजार करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च होते हैं। यह पिछले पांच वर्ष में लगभग डबल हो गया है।

सवाल: 20 लाख करोड़ रु. के पैकेज का फायदा एक्सपोर्टर कैसे ले सकते हैं?
एमएसएमई सेक्टर हमारे एक्सपोर्ट को बहुत योगदान देता है। उन्हें सात-साढ़े सात फीसदी ब्याज दर पर 20% अतिरिक्त लोन मिल पाएगा। निर्यातकों, उनकी एसोसिएशन, प्रमोशन काउंसिल आदि से लागातार मेरी बैठक होती है। आज ही फार्मास्युटिकल वालों से चर्चा की है। हमारी सोच है कि विभिन्न इंडस्ट्री से बात कर उनकी समस्या का समाधान संवेदना के साथ करें। अप्रैल में एक्सपोर्ट बीते वर्ष की तुलना में 60% गिरा था, मई में यह 35% कम था, जून के आंकड़ों में और सुधार देखने को मिलेगा। धीरे-धीरे वापसी होगी। सोमवार एक जून से फिर एक्टिविटी बढ़ेगी, उससे और अधिक कारोबार बढ़ेगा।

सवाल: श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों से कितनों को गंतव्य तक पहुंचाया गया है?
मैं दिन में तीन बार श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन की स्थिति की समीक्षा करता हूं। 30 मई तक देश में 4,040 श्रमिक एक्सप्रेस के माध्यम से करीब 54 लाख से अधिक श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचा गया है। ट्रेनों के भटकने या सात या नौ दिन में पहुंचने की बात बेबुनियाद है। सिर्फ 71 ट्रेन यानी 1.75% ट्रेन डायवर्ट हुईं। वह भी राज्यों के कहने, अधिक संख्या में एक ही स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचने जैसे कारणों से हुई। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु, भूख या प्यास के कारण नहीं हुई है। रेलवे ने 1.19 लाख खाना और 1.5 करोड़ बोतल पानी श्रमिकों के बीच दिया।

सवाल: लॉकडाउन के समय बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में नौकरियां जा रही है? इस वर्ष रेलवे कितनी भर्ती करेगा?
अभी हमारी भर्ती की प्रक्रिया डायनामिक है। अभी टेस्ट, ट्रेनिंग आदि चल रहा है। लोग रिटायर होते हैं, वैसे ही भर्ती करेंगे। अभी रेलवे में कोई शॉर्टेज नहीं है। 1.5 लाख लोगों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है।



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रेल मंत्री पीयूष गोयल। (फाइल)


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दिव्यांग राजू , जिसने पीएम मोदी के मन को छुआ, भीख मांगकर बांटे 3 हजार मास्क और गरीबों को राशन

सवा महीने के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पठानकोट के दो लोगों को प्रेरणास्रोत बताया। 24 अप्रैल को यहां की युवा सरपंच पल्लवी ठाकुर के बाद रविवार को मन की बात में पीएम मोदी ने पठानकोट के दिव्यांग राजू को प्रेरणास्रोत बताया। बचपन से पोलियोग्रस्त 45 वर्षीय राजू शहर के ढांगू रोड पर 35 सालों से भीख मांगते हैं।

बकौल राजू वह भीख से कमाए पैसे से गरीब कन्याओं की शादियों में, भंडारा कराने और राशन बांटकर उनकी मदद कर रहे हैं। उन्होंने लाॅकडाउन के दौरान 3000 से अधिक मास्क बांटे और 100 परिवारों को राशन दिया। प्रधानमंत्री द्वारा नाम लिए जाने के बाद उसके घर लोग बधाइयां देने पहुंचने लगे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा भी पहुंचे।

लोग मेरी मदद करते हैं, इसलिए मैं दूसरों की मदद करता हूंः राजू
राजू के मुताबिक, वह बचपन से ही पोलियोग्रस्त है। 10 साल की उम्र में मां-बाप का साया सिर से उठ जाने पर वह सड़क पर आ गया। दिव्यांगता के कारण उसे कोई काम नहीं मिला तो भीख मांगना मजबूरी बन गई। राजू की तो शादी भी नहीं हुई। दो भाइयों का परिवार है, लेकिन वह अलग रहता है। खाना भी पड़ोसी बनाकर देता है।

राजू बताता है कि भीख से रोजाना 500 से 700 रुपए मिलते हैं। खाने और खर्च के बाद कमाई का बाकी हिस्सा लोगों की सेवा पर खर्च करता है। मंदिरों में दान देना, गरीबों की बेटियों की शादियों में मदद, हर साल भंडारा कराना आदि में खर्च करता है। अब तक 22 गरीब लड़कियों की शादी में राशन व अन्य मदद दे चुका है।

7 जून को भी एक सफाई सेवक की बेटी की शादी में 1100 रुपये शगुन, 50 किलो चावल और एक पंखा देगा। ढांगू रोड पर 30 हजार खर्च कर एक टूटी पुलिया की रिपेयर कराई है। राजू कहते हैं कि लोग मेरी मदद करते हैं इसलिए मैं दूसरों की मदद करता हूं। भीख मांगना तो चंगा नहीं लगदा लेकिन, सेवा करना चंगा लगदा ए। राजू ने पीएम का आभार भी जताया।



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राजू कहते हैं कि लोग मेरी मदद करते हैं इसलिए मैं दूसरों की मदद करता हूं।


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जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ जिया जाना चाहिए, लेकिन इसके बीच मौजूदा वक्त को जीना भूलना नहीं चाहिए

सबसे अच्छा जीवन तभी जिया जा सकता है, जब हम हरदम इसे ज्यादा से ज्यादा सरल बनाने की कोशिश में ना लगे रहें। जीवन में वह समय भी आता है, जब जवाबों को खोजने की ज़रूरत पड़ती है और कभी ऐसा वक्त भी आता है जब सवालों को उसी स्थिति में छोड़ देना ही बेहतर हो जाता है।

अगर हर जवाब अगले सवाल का कारण बन जाए या हर जवाब के साथ सवाल भी बढ़ते जाएं तो फिर यह उलझनें, मानसिक अशांति और जीवन में मौजूद यह शोर कभी ख़त्म नहीं होने वाला। और अगर ज़िंदगी इन्हीं उलझनों और त्रास में फंसी रही, तो जीवन के असली आनंद को महसूस करने से हम वंचित रह जाएंगे। इसलिए ‘कार्पे डियम्’ यानी कल की चिंता छोड़कर इस पल को भरपूर जिएं। इस क्षण को महसूस कीजिए और पूरे आनंद से अपना जीवन जिएं।

हमारे ज्ञान, असीमित बुद्धिमत्ता से भी हम जीवन के बारे में कुछ खास नहीं समझ सकते। आप जीवन के सार को खोजने के लिए भले ही हर संभव प्रयास करते हैं, वह सब कुछ करने की कोशिश करते हैं, जो वाकई में किया जा सकता है, जो आपके दायरे में है, लेकिन आप देखेंगे कि वह भी अपर्याप्त जान पड़ेगा।

निर्वाण, मोक्ष या ठहराव तो दरअसल जीवन के विरोधाभासों को संतुलित करने से ही मिलेगा। जीवन-मृत्यु, लेना-देना, आत्मकेंद्रित या जुड़े रहना, साम्य या बिखराव...सारा जीवन ही विरोधाभासों से भरा हुआ है।
सवाल है कि इन सब विरोधाभासों के भंवर में बीच का रास्ता कैसे मिले।

इन सब उलझनों और विरोधाभासों के बीच झूलते हुए, ज़िंदगी में सबकुछ हासिल करने के बाद भी महसूस होता है कि जैसे हमें जीवन का मूल ही समझ नहीं आया, लगता है कि आज भी वहीं खड़े हैं, जहां से शुरुआत हुई थी। आप इस खोज में जीवन की दौड़ में भागे जा रहे हैं क्योंकि आपको लगता है कि इस जीवन के अंतिम पड़ाव से भी आगे कोई नहीं शुरुआत है।

जहां से शुरू किया था, वहीं फिर से वापस आने के लिए आप भागे जा रहे हैं। जैसे कि महान दार्शनिक उमर खय्याम ने कहा था- ‘मैं उसी दरवाज़े से बाहर आया हूं जिससे मैं भीतर गया था।’इस दुनिया की आपसे अपेक्षाएं, दुनिया से आपकी अपेक्षाएं, खुद की खुद से उम्मीदें असीम हैं, अनंत हैं, इनका कोई ओर-छोर नहीं है। ये उम्मीदें फिर उसी मानसिक अशांति को ओर ले जाएंगी। सवाल है कि क्या यह वाकई उतना मायने रखता है? सवाल यह भी है कि जीवन का मकसद क्या है?

फिलहाल एक काम कीजिए- एक गहरी श्वास लीजिए और धीरे सेे कहिए ‘कार्पे डियम्’ यानी भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान को भरपूर जिएं।हां, यह बात बिल्कुल ठीक है कि सुनहरे भविष्य की कल्पना करना बुरा नहीं है। जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ भी जिया जाना चाहिए, लेकिन इस सब में मौजूदा वक्त, इस क्षण को जीना भूलना नहीं चाहिए।

हमें इस क्षण को भी महसूस करना शुरू करना होगा। अभी मुस्कराइए, क्योंकि खुशी-प्रसन्नता इसी क्षण में है, जो सुखद अनुभूति सामने घट रही है, उसे महसूस करके प्रसन्न होइए। भविष्य कल घटित होगा। यह क्षण सामने है और अभी है। खुशी चेहरे पर आने से, मुस्कराहटों को होंठों पर आने से मत रोकिए।

आंसू हैं तो उनको भी बहने दीजिए। भावनाओं को मत रोकिए। जो कुछ होगा इसी क्षण में घटित होगा, होने दीजिए। अब फिर से एक गहरी सांस लीजिए। चेहरे पर कोई तनाव मत लाइए, रिलेक्स कीजिए और खुद को हल्का महसूस कीजिए।

आइए जीवन के हर क्षण को महत्वपूर्ण बनाएं। इस क्षण के लिए सजग, जीवंत और सचेत हो जाएं। भले ही आपने ज़िंदगी बहुत अच्छी गुजारी हो या जीवन अभावों में गुजरा हो, जिंदगी के खेल के बाद जाना सबको एक ही जगह होता है। हम अपने साथ जो करते हैं, वही हमारे साथ जाता है और जो दूसरों के लिए करते हैं वह सब यहीं, इस दुनिया में रह जाता है।हर क्षण के बाद अगला क्षण आएगा इसलिए हर क्षण को उपयोगी बनाएं, हर क्षण जीवन की पूर्णता के साथ जिएं और इस जीवन को जीवंत बनाएं।



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हम जितना अपनी क्षमता को पहचानेंगे, उतना ही हम जीवन को रीडिजाइन और रीस्टार्ट कर पाएंगे

कोरोना के साथ जीना होगा, यह जानकर निराशा होना स्वाभाविक है। लेकिन उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए। निराशा में हम परिस्थिति का सामना करने में अक्षम हो जाते हैं। लेकिन यह कहना आसान है कि उम्मीद बनाए रखें। अभी उम्मीद केवल भावना केंद्रित नहीं बल्कि इतिहास केंद्रित होनी चाहिए।

एक पुराना गीत है, ‘गम की अंधेरी रात में दिल को न बेकरार कर, सुबह जरूर आएगी सुबह का इंतजार कर।’ सुबह का इंतजार करना होगा। लेकिन वह अपने हिसाब से होगी। इसी तरह परिस्थितियां अपने हिसाब से बदलती हैं। दुनिया में ऐसी महामारियां, समस्याएं पहले भी आ चुकी हैं और हम इनसे बाहर निकले हैं। यही इतिहास केंद्रित उम्मीद है।

फिर न्यू नॉर्मल अपनाना हमारे लिए कौन-सी नई बात है। जैसे पहले बैलगाड़ी थी, फिर गाड़ी आई, फिर रेलगाड़ी आई, हवाईजहाज आया, हम सब अपनाते गए। शुरुआत में थोड़ी कठिनाई हुई, लेकिन हम थोड़ी मेहनत से, थोड़ी अनुकूलता लाकर उसे अपना लेते हैं।

पहले औद्योगिक क्रांति आई, तब लोग जीने के लिए नौकरी करते थे। फिर आईटी क्रांति आई, लोग जीवनस्तर बेहतर बनाने के लिए नौकरी करने लगे। अब हम डिजिटल और सोशल क्रांति को अपना रहे हैं। कितनी बार हमारा नॉर्मल बदला है और हमने न्यू नॉर्मल अपनाया है। इसलिए मेरे हिसाब से सकारात्मकता के लिए इतिहास को गौर से देखना जरूरी है। उसमें उम्मीद है कि ये हमारे लिए नई बात नहीं है।

मैं अक्सर कहता हूं, ‘अपने विचारों पर ध्यान दें, वे शब्दों में बदलते हैं। शब्दों पर ध्यान दें, वे कार्य में बदलते हैं। कार्यों पर ध्यान दें, वे आदत में बदलते हैं। आदतों पर ध्यान दें, वे चरित्र में बदलती हैं और अपने चरित्र पर ध्यान दें, यह आपकी किस्मत बदलता है।’

यानी सबकुछ विचारों से शुरू होता है। इसलिए उन्हें बदलना जरूरी है। न्यू नॉर्मल को परिवार और पेशेवर स्तर पर अपनाना जरूरी है। हम में ऐसा करने की क्षमता है। जैसे मशहूर फिल्म लॉयन किंग की कहानी है। इसमें छोटे शेर सिम्बा में बहुत शक्ति है क्योंकि वह जंगल के राजा मुफासा का बेटा है। लेकिन उसका चाचा स्कार, मुफासा को मरवा देता है और आरोप सिम्बा पर डाल देता है।

सिम्बा सब छोड़कर टिमॉन और पुम्बा (नेवला और जंगली सुअर) की संगत में चला जाता है और उसे लगने लगता है कि वह भी उन्हीं की तरह है। फिर रफिकी आकर उसको याद दिलाता है कि तुम सिम्बा हो, शेर के बच्चे हो। तुम में अनुकूल बनने की, एडजस्ट करने की, स्कार को मात देने की क्षमता है। आज की हमारी इस परिस्थिति में कोरोना स्कार की तरह है, लेकिन हम मुफासा की संतान हैं, हम सिम्बा हैं। हम जितना अपनी क्षमता को पहचानेंगे, उतना ही हम जीवन को रीडिजाइन और रीस्टार्ट कर पाएंगे।

इस दौरान हमें भावनात्मक, पेशेवर और आध्यात्मिक सहारे की भी जरूरत है। स्टीव जॉब्स ने अपने एक भाषण में बताया था कि जब उन्होंने एपल इंकॉर्पोरेशन की शुरुआत की तो कई लोगों को नियुक्त कर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स बनाया और इसी बोर्ड ने मिलकर स्टीव को बाहर निकाल दिया। वे निराश हो सकते थे। जिन लोगों को नौकरी दी, उन्हीं ने आपको, आपकी ही कंपनी से निकाल दिया।

लेकिन स्टीव ने अपने रिश्तों, जीवन, पेशेवर कामकाज, अध्यात्म पर काम किया। वे 10 साल एपल से दूर थे। इसी दौरान शादी हुई, पिक्सार और नेक्स्ट एनिमेशन बना, आध्यात्मिक जीवन पर भी काम किया। वे भारत आकर नीम करोली बाबा से मिले। यानी 10 सालों में उन्होंने अपने लिए भावनात्मक, पेशेवर और आध्यात्मिक सहारा बना लिया। उन्हें बढ़ता देख बोर्ड ने उन्हें वापस ले लिया।

तो मुझे लगता है कि आप भी दोगुनी ताकत व ऊर्जा से जीवन को रीस्टार्ट कर सकते हैं। हम रिश्तों, अध्यात्म, पेशेवर जीवन पर काम करें। धनुष-बाण में जब बाण पीछे खींचते हैं तो यह नहीं सोचते कि बाण पीछे जा रहा है। बाण शक्ति इकट्‌ठी कर दोगुनी शक्ति से गंतव्य तक पहुंचता है।

तो अगर इस लॉकडाउन को, परिस्थिति को ऐसे देखेंगे कि यह थोपी गई है, तो इससे कुछ नहीं निकलेगा। लेकिन अगर यह सोचें कि बाण की तरह में शक्ति कैसे इकट्‌ठी करूं, अपने आप पर काम कैसे करूं, तो जब लॉकडाउन खुलेगा और परिस्थिति सुधरेगी, तो दोगुनी शक्ति से हम अपने आपको रीलॉन्च कर सकते हैं।



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It's time to prepare yourself and relaunch with double the power


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दिव्यांग राजू , जिसने पीएम मोदी के मन को छुआ, भीख मांगकर बांटे 3 हजार मास्क और गरीबों को राशन

सवा महीने के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पठानकोट के दो लोगों को प्रेरणास्रोत बताया। 24 अप्रैल को यहां की युवा सरपंच पल्लवी ठाकुर के बाद रविवार को मन की बात में पीएम मोदी ने पठानकोट के दिव्यांग राजू को प्रेरणास्रोत बताया। बचपन से पोलियोग्रस्त 45 वर्षीय राजू शहर के ढांगू रोड पर 35 सालों से भीख मांगते हैं।

बकौल राजू वह भीख से कमाए पैसे से गरीब कन्याओं की शादियों में, भंडारा कराने और राशन बांटकर उनकी मदद कर रहे हैं। उन्होंने लाॅकडाउन के दौरान 3000 से अधिक मास्क बांटे और 100 परिवारों को राशन दिया। प्रधानमंत्री द्वारा नाम लिए जाने के बाद उसके घर लोग बधाइयां देने पहुंचने लगे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा भी पहुंचे।

लोग मेरी मदद करते हैं, इसलिए मैं दूसरों की मदद करता हूंः राजू
राजू के मुताबिक, वह बचपन से ही पोलियोग्रस्त है। 10 साल की उम्र में मां-बाप का साया सिर से उठ जाने पर वह सड़क पर आ गया। दिव्यांगता के कारण उसे कोई काम नहीं मिला तो भीख मांगना मजबूरी बन गई। राजू की तो शादी भी नहीं हुई। दो भाइयों का परिवार है, लेकिन वह अलग रहता है। खाना भी पड़ोसी बनाकर देता है।

राजू बताता है कि भीख से रोजाना 500 से 700 रुपए मिलते हैं। खाने और खर्च के बाद कमाई का बाकी हिस्सा लोगों की सेवा पर खर्च करता है। मंदिरों में दान देना, गरीबों की बेटियों की शादियों में मदद, हर साल भंडारा कराना आदि में खर्च करता है। अब तक 22 गरीब लड़कियों की शादी में राशन व अन्य मदद दे चुका है।

7 जून को भी एक सफाई सेवक की बेटी की शादी में 1100 रुपये शगुन, 50 किलो चावल और एक पंखा देगा। ढांगू रोड पर 30 हजार खर्च कर एक टूटी पुलिया की रिपेयर कराई है। राजू कहते हैं कि लोग मेरी मदद करते हैं इसलिए मैं दूसरों की मदद करता हूं। भीख मांगना तो चंगा नहीं लगदा लेकिन, सेवा करना चंगा लगदा ए। राजू ने पीएम का आभार भी जताया।



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राजू कहते हैं कि लोग मेरी मदद करते हैं इसलिए मैं दूसरों की मदद करता हूं।


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रेल मंत्री ने कहा- आज से चलने वाली 200 ट्रेनों में बिना रिजर्वेशन किसी को सीट नहीं, जनरल में भी जितनी सीटें उतनी ही एंट्री देंगे

देश में 68 दिन के लॉकडाउन के बाद रेलवे 200 यात्री ट्रेनें 1 जून यानी सोमवारसे शुरू कर रहा है। इन ट्रेनों में बिना रिजर्वेशन कोई नहीं बैठ सकेगा। रिजर्व बोगियों में केवल कन्फर्म टिकिट वाले यात्री ही बैठ सकेंगे। वेटिंग टिकिट वालों की एंट्री नहीं हो सकेगी। जनरल बोगियों में भी सीटों की संख्या से ज्यादा लोगों को चढ़ने नहीं दिया जाएगा। यह बात रेल और वाणिज्य उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए कही। पेश है उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल: ट्रेनों की सामान्य स्थिति कब तक बहाल होगी?
जैसे-जैसे डिमांड बढ़ेगी, ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाएगी और हम सामान्य स्थिति की ओर लौटेंगे। अभी भी जो 200 ट्रेन हम चला रहे हैं, वह पूरी तरह फुल नहीं हुई हैं। लोग जरूरी होने पर ही यात्रा कर रहे हैं। बाद में निजी ट्रेनें भी चलाएंगे।

सवाल: 15 जोड़ी राजधानी ट्रेन शुरू की गई हैं, उनमें डायनामिक फेयर लिया जा रहा है, ऐसा क्यों?
अधिकांश ट्रेन अभी भी फुल नहीं जा रही हैं। पुराने सिस्टम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। सिर्फ केटरिंग का चार्ज कम किया है। सब कुछ जाे पहले था उसी को बरकरार रखा है।

सवाल: रेलवे सिर्फ कंफर्म टिकट के आइडिया पर जाएगा?
आपका सुझाव सोचने लायक है, अभी हमने इस दिशा में सोचा नहीं है। अभी हम श्रमिकों की सेवा में लगे हैं। देश के कोने-कोने तक सामान और श्रमिक पहुंचें यहीं प्राथमिकता है।

सवाल: श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर केरल, प. बंगाल और महाराष्ट्र ने भेदभाव के आरोप लगाए हैं, क्या कहेंगे?
मैं दावे से कह सकता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में किसी भी मंत्री ने, किसी भी राज्य सरकार के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया है। अभी तक राज्यों ने जितनी भी ट्रेन मांगी, हमने दी हैं। बल्कि समस्या उल्टी है। 250 ट्रेन ऐसी रहीं, जो राज्य सरकारों ने मांगी और फिर चल नहीं पाईं।

महाराष्ट्र का आपने जिक्र किया तो मैं बता दूं कि 109 ट्रेनों को राज्य सरकार की रिक्वेस्ट पर हमने तैयार किया और फिर भी वो ट्रेन चला ही नहीं पाए। पश्चिम बंगाल तो ट्रेन लाने ही नहीं दे रहा था। यहां तक कि उसने श्रमिक ट्रेन को कोरोना एक्सप्रेस तक कह दिया। राज्य जितनी श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन मांगेंगे, हम देते रहेंगे। हम श्रमिकों की सेवा कर रहे हैं।

आज से चलने वाली 200 ट्रेनों में....
सवाल: सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में काउंटर बुकिंग का भविष्य क्या होगा?
पहले हमने काउंटर बुकिंग शुरू नहीं की थी, आईआरसीटीसी की वेबसाइट से ही बुकिंग की सुविधा थी। फिर कई राज्यों की रिक्वेस्ट मिली कि हमारे यहां कई लोग जाना चाहते हैं और उनको इंटरनेट चलाना नहीं आता है। हमने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए काउंटर शुरू किए। ये काउंटर वहां शुरू नहीं किए जहां से श्रमिक स्पेशल ट्रेन चल रही थीं, उससे कुछ दूरी पर शुरू किए। रेलवे धीरे-धीरे सभी काउंटर खोलेगा। काउंटर कम नहीं करेंगे।

सवाल: लॉकडाउन के दौरान मालगाड़ियों से कितना गुड्स भारत वर्ष में पहुंचाया?
लॉकडाउन के दौरान 24 मार्च से 25 मई तक दो महीने में 16 करोड़ टन माल का परिवहन किया है। देश के कोने-कोने में एक भी दिन अनाज, खाद और कोयला आदि की कमी नहीं रही। देश के कोने-कोने में हम ये सामान पहुंचाते रहे। अगर अनाज देखें तो वो इस दौरान दोगुना हो गया। दूध, कोयला, लोहा, आयात-निर्यात आदि सामान की ढुलाई इस दौरान हमने की है।

सवाल: रेलवे की इस साल कमाई का लक्ष्य क्या है?
यह एक समस्या है। हम वित्त मंत्रालय से चर्चा कर आगे का रास्ता खोजेंगे। फिलहाल हमारी प्राथमिकता समय पर सबको सामान मिले और श्रमिक अपने घर पहुंचे, यही है। रेलवे के वेतन में करीब 90 हजार करोड़ और पेंशन में 50 हजार करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च होते हैं। यह पिछले पांच वर्ष में लगभग डबल हो गया है।

सवाल: 20 लाख करोड़ रु. के पैकेज का फायदा एक्सपोर्टर कैसे ले सकते हैं?
एमएसएमई सेक्टर हमारे एक्सपोर्ट को बहुत योगदान देता है। उन्हें सात-साढ़े सात फीसदी ब्याज दर पर 20% अतिरिक्त लोन मिल पाएगा। निर्यातकों, उनकी एसोसिएशन, प्रमोशन काउंसिल आदि से लागातार मेरी बैठक होती है। आज ही फार्मास्युटिकल वालों से चर्चा की है। हमारी सोच है कि विभिन्न इंडस्ट्री से बात कर उनकी समस्या का समाधान संवेदना के साथ करें। अप्रैल में एक्सपोर्ट बीते वर्ष की तुलना में 60% गिरा था, मई में यह 35% कम था, जून के आंकड़ों में और सुधार देखने को मिलेगा। धीरे-धीरे वापसी होगी। सोमवार एक जून से फिर एक्टिविटी बढ़ेगी, उससे और अधिक कारोबार बढ़ेगा।

सवाल: श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों से कितनों को गंतव्य तक पहुंचाया गया है?
मैं दिन में तीन बार श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन की स्थिति की समीक्षा करता हूं। 30 मई तक देश में 4,040 श्रमिक एक्सप्रेस के माध्यम से करीब 54 लाख से अधिक श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचा गया है। ट्रेनों के भटकने या सात या नौ दिन में पहुंचने की बात बेबुनियाद है। सिर्फ 71 ट्रेन यानी 1.75% ट्रेन डायवर्ट हुईं। वह भी राज्यों के कहने, अधिक संख्या में एक ही स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचने जैसे कारणों से हुई। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु, भूख या प्यास के कारण नहीं हुई है। रेलवे ने 1.19 लाख खाना और 1.5 करोड़ बोतल पानी श्रमिकों के बीच दिया।

सवाल: लॉकडाउन के समय बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में नौकरियां जा रही है? इस वर्ष रेलवे कितनी भर्ती करेगा?
अभी हमारी भर्ती की प्रक्रिया डायनामिक है। अभी टेस्ट, ट्रेनिंग आदि चल रहा है। लोग रिटायर होते हैं, वैसे ही भर्ती करेंगे। अभी रेलवे में कोई शॉर्टेज नहीं है। 1.5 लाख लोगों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है।



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रेल मंत्री पीयूष गोयल। (फाइल)


from Dainik Bhaskar /national/news/without-reservation-no-seat-will-be-given-in-200-trains-running-from-today-as-many-seats-will-be-given-as-same-in-general-piyush-goyal-127361994.html
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पंचायत ने तय किया- लॉकडाउन में खाली नहीं बैठना है, 10 हजार परिवार कृषि क्रांति ले आए, हर खाली जगह पर सब्जियां उगा दीं

लॉकडाउन में केरल की एक पंचायत ने नई कृषि क्रांति खड़ी कर दी है। जब 23 मार्च को 21 दिन के लॉकडाउन के घोषणा हुई थी, तभी एर्नाकुलम जिले की वडक्ककेरा ग्राम पंचायत ने तय किया वे इस समय का बखूबी इस्तेमाल करेंगे। सामूहिक चर्चा के बाद तय हुआ कि गांव की खाली पड़ी जगह, घरों के आसपास और छतों पर सब्जियां उगाएंगे।

पहले हफ्ते करीब 4800 परिवार इस मुहिम में जुड़े। कुछ ही दिनों में गांव के 10 हजार 312 परिवारों में 9417 परिवार जुड़ चुके हैं। अब केरल सरकार के कृषि विभाग ने इन किसानों के लिए बाजार भी तैयार कर दिया है, जहां सभी अपनी उपज बेच सकते हैं। पंचायत की तरफ से बेस्ट फार्म और बेस्ट किसान को अवॉर्ड भी दिया जा रहा है।

द वेजिटेबल फार्मिंग चैलेंज मुहिम के तहत खुद को सब्जियों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने वाले इस गांव के परिवारों ने पहले छोटे-छोटे समूह बनाए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने घरों के आसपास खाली पड़ी जगहों को साफ किया। इसके बाद इनकी जुताई कर इन्हें सब्जी बोने लायक खेत में तब्दील किया।

लोगों ने तय किया- पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे

ग्राम पंचायत ने अलग-अलग किस्म के बीजों के 20 हजार से अधिक पैकेट मुफ्त बांटे। तय हुआ कि पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे और आर्गेनिक फार्मिंग अपनाएंगे। आज यहां के हर घर में भिंडी, बैंगन, कद्दू, करेला, लाल भाजी और लौकी की फसलें लहरा रही हैं।

सामूहिक प्रयासों से मिली सब्जी की उपज इतनी ज्यादा थी कि केरल सरकार के कृषि विभाग ने किसानों के लिए बाजार तैयार करके दिया है, जहां गांव के लोग अपनी सब्जियां बेच सकते हैं। यह मार्केट सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चलता है।

पंचायत के सहायक कृषि अधिकारी एस सीना बताते हैं कि हमने लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए यह फार्मिंग प्रोग्राम शुरू किया था, ताकि लॉकडाउन में घर में रहते हुए वह सब्जियां उगाएं। यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा। गांव के ज्यादातर लोग अब साथ खेती का आनंद उठा रहे हैं।



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पंचायत की तरफ से लोगों को बीज के मुफ्त पैकेट बांटे गए, केरल सरकार ने सब्जी बेचने के लिए बाजार तैयार किया।


from Dainik Bhaskar /national/news/panchayat-decided-not-to-sit-vacant-in-lockdown-10-thousand-families-brought-agrarian-revolution-grew-vegetables-at-every-vacant-place-127361993.html
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खुशी वाले हार्मोन नहीं निकल रहे, खिलाड़ी चिड़चिड़े हो सकते हैं: मनोचिकित्सक

लॉकडाउन की वजह से खिलाड़ियों की परेशानी बढ़ी है। उन पर मानसिक दबाव बढ़ रहा है। इससे सबसे ज्यादा खतरा उनके डिप्रेशन में जाने का है क्योंकि उन्हें लगता है कि अब शायद वे लक्ष्य हासिल नहीं कर सकेंगे। लेकिन मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक उनकी इस सोच को सही नहीं मानते।

एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर नंद कुमार ने बताया, ‘मनोवैज्ञानिक परेशानी के साथ लोग डॉक्टर के पास शुरुआत में जाने से कतराते हैं। लेकिन मौजूदा समय में खिलाड़ियों के आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ी है।

दो रणजी क्रिकेटर मानसिक समस्या लेकर मेरे पास भी आए थे। मैं खिलाड़ियों को सिर्फ यह सलाह देना चाहता हूं कि घर पर ही शारीरिक परिश्रम करें और योग करें। इससे वे मोटिवेट होंगे।’

खिलाड़ियों को आत्मविश्वास बनाए रखना होगा

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल की चीफ क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. एकता पुरी का कहना है, ‘खिलाड़ी की पूरी जिंदगी एक्सरसाइज, फिटनेस और प्रैक्टिस पर चलती है। यह सब बंद हो गया तो उन्हें लगता है कि अब सब खत्म। ऐसे में उन्हें आत्मविश्वास को ठीक रखना होगा और उन्हें इस बात की सूची बनानी चाहिए कि इस वक्त क्या-क्या किया जा सकता है।’

लॉकडाउन के कारण खिलाड़ियों को खुशी नहीं मिल रही
डॉ. कुमार कहते हैं, ‘खिलाड़ी ज्यादा शारीरिक और मानसिक परिश्रम करते हैं। उनमें एंडोर्फिन और डोपामिन दो तरह के हॉर्मोन निकलते हैं। इससे उनको उस काम को करने में मजा आता है और प्रोत्साहन मिलता है।

लॉकडाउन की वजह से उन्हें वह खुशी नहीं मिल रही है। इसलिए उनके डिप्रेशन में जाने का खतरा है। उन्हें नींद कम आती है, चिड़चिड़ापन ज्यादा होता है।’



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मनोचिकित्सकों की खिलाड़ियों की सलाह- घर पर ही शारीरिक परिश्रम करें और योग करें। इससे वे मोटिवेट होंगे। -फाइल


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18 हफ्ते में देश में 1.65 लाख, जबकि अमेरिका में 14.77 लाख केस आए; इस दौरान रोज नए मामलों की ग्रोथ रेट भी 30% से घटकर 5% हुई

कोरोनावायरस से जूझते-जूझते हमें 4 महीने पूरे हो गए। हमारे देश में कोरोनावायरस का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में सामने आया था। उसके बाद 2 फरवरी तक ही केरल में 3 कोरोना संक्रमित सामने आ गए। ये तीनों ही चीन के वुहान शहर से लौटकर आए थे।

उसके बाद करीब एक महीने तक देश में कोरोना का कोई भी नया मरीज नहीं मिला। लेकिन, 2 मार्च के बाद से संक्रमितों की संख्या रोजाना बढ़ती चली गई।

4 महीने पूरे होने के साथ-साथ 29 मई को कोरोनावायरस के 18 हफ्ते भी पूरे हो चुके हैं। इस दौरान संक्रमण के मामले3 से बढ़कर 1.65 लाख से ज्यादा हो गए। लेकिन, चीन में इतने हफ्ते तक 84 हजार 494 मामले ही सामने आए। यानी कि अब तक हमारे देश में चीन की तुलना में 48% ज्यादा मामले हैं। हालांकि, 31 मई तक देश में 1.82 लाख से ज्यादा मामले आ चुके हैं।

हालांकि, आबादी में हमसे चार गुना से भी कम अमेरिका में 18 हफ्तों में 14.77 लाख से ज्यादा मामले आ गए हैं। जबकि, इटली और स्पेन में अभी कोरोनावायरस को 17 हफ्ते ही हुए हैं और अभी तक वहां संक्रमितों की संख्या 2.30 लाख के पार पहुंच गई है।

114 दिन में हमारे यहां 1.28 लाख मरीज थे, अमेरिका में इतने मरीज 71वें दिन में हो गए थे
हमारे देश में एक अच्छी बात ये भी है कि बाकी देशों की तुलना में हमारे यहां कोरोनावायरस की रफ्तार भी धीमी है। हमारे यहां बाकी देशों की तुलना में केस के दोगुने होने का समय काफी ज्यादा है।

चीन में कोरोनावायरस के 100 मामले पहले ही दिन में मिल गए थे। जबकि, हमारे यहां इतने मरीज होने में 42 दिन लगे। लेकिन, अमेरिका में पहले 100 केस 44 दिन में सामने आए थे।

इसी तरह 1 हजार मरीज हमारे यहां 58वें दिन में हो गए थे। जबकि, चीन में 5वें दिन और अमेरिका में 53वें दिन में ही हो गए थे।

वहीं, 1 लाख 28 हजार से ज्यादा मरीज सामने आने में हमारे यहां 114 दिन लगे थे। जबकि, इतने ही मरीज अमेरिका में 73वें दिन में आ गए थे। अमेरिका में कोरोना का पहला मरीज 21 जनवरी को मिला था।

लॉकडाउन का फायदा मिला, तभी कोरोना की रफ्तार इतनी धीमी?
कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे पहले 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया। 21 मार्च तक कोरोना के नए मामलों में रोजाना 30% की ग्रोथ हो रही थी। लेकिन, उसके बाद मामलों की ग्रोथ रेट में कमी आने लगी।

25 मार्च से देश में पूरी तरह से लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन का पहला फेज 14 अप्रैल तक था। इस दौरान नए मामलों की ग्रोथ रेट घटकर 10% पर आ गई। उसके बाद दूसरे फेज का लॉकडाउन 3 मई को खत्म हुआ। तब तक कोरोना के नए मामलों की ग्रोथ रेट 7% रह गई। अब ये और घटकर 5% पर आ गई।



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US India Coronavirus Update | India Coronavirus Cases Vs United States COVID New Cases Growth Rate


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कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 देशों में से 7 ने टोटल लॉकडाउन किया था, उनमें से सिर्फ भारत में नए मामले बढ़ रहे

कोरोना के सबसे ज्यादा असर वाले 10 देशों में से 7 ने इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए टोटल (नेशनल लेवल पर) लॉकडाउन लगाया था। इन 7 देशों में भारत ही ऐसा देश था, जहां सबसे कम संक्रमित (536) मिलने पर लॉकडाउन लगा दिया गया था। भारत सरकार को इस कदम के लिए डब्ल्यूएचओ से तारीफ भी मिली थी और कोविड-19 से निपटने के लिए सरकार की तैयारियों को ट्रैक करने वाले ऑक्सफोर्ड गवर्मेंट यूनिवर्सिटी ट्रैकर ने उसे 100 में से 100 पॉइंट्स भी दिए थे।

लेकिन, अब इन 7 देशों में भारत ही एकमात्र देश है, जहां नए कोरोना संक्रमितों की संख्या का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। बाकी 6 देशों में हर दिन सामने आने वाले नए मामलों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। इन 6 देशों ने कोरोना संक्रमण का फैलाव काफी हद तक रोक लिया है और इसीलिए इन देशों में पिछले दिनों धीरे-धीरे लॉकडाउन खोलने के लिए प्रतिबंधों में ढील दी जाती रही है। भारत भी इसी तर्ज पर आज (1 जून) से लॉकडाउन खोलने की प्रोसेस शुरू कर रहा है, जबकि यहांहर दिन नए मामलों की संख्या में इजाफा हो रहा है।

इन सभी 7 देशों में लॉकडाउन लगने के 2-2 महीने पूरे हो चुके हैं। ऐसें में इन देशों में लॉकडाउन लगने के पहले और लॉकडाउन लगने के 2 महीने बाद नए संक्रमितों की संख्या में क्या बदलाव आया?, कहां लॉकडाउन सफल रहा?, कौन महामारी को फैलने से रोकने में कामयाब रहा? और कौन इन मोर्चों में नाकाम रहा?, इन्हीं सवालों के जवाब खोजती हमारी एक रिसर्च रिपोर्ट…

इटली, फ्रांस और जर्मनी में लॉकडाउन के नतीजे सबसे अच्छे रहे, भारत रेस में सबसे पीछे रह गया

1. इटली, फ्रांस और जर्मनी में लॉकडाउन के 2 महीने बाद नए मामलों की संख्या लॉकडाउन के पहले आ रहे मामलों की संख्या से कम हो चुकी है। जर्मनी रेस में सबसे आगे है। यहां लॉकडाउन के पहले की तुलना में 2 महीने बाद 9 गुना मामले कम आ रहे हैं। इसी तरह फ्रांस में नए मामलों की संख्या आधी हो गई है। इटली में भी डेढ़ गुना मामले घटे हैं।

2. स्पेन और ब्रिटेन में लॉकडाउन के 2 महीने बाद नए मरीजों की संख्या लॉकडान के पहले मिल रहे मरीजों की संख्या से तो ज्यादा है लेकिन यह 1 महीने पहले की तुलना में क्रमश: 3 गुना और 2 गुना कम हो गई है।

3. रूस में लॉकडाउन के बाद लगातार मामले बढ़े हैं। 2 महीने बाद यहां हर दिन 8 हजार से ज्यादा नए केस सामने आ रहे हैं। यह लॉकडाउन के पहले की तुलना में 45 गुना ज्यादा हैं और लॉकडाउन के 1 महीने बाद की तुलना में महज सवा गुना ज्यादा। लेकिन रूस में 6 से 12 मई के बीच हर दिन 10 हजार से ज्यादा केस आ रहे थे, इसकी तुलना में यहां लॉकडाउन के 2 महीने बाद मामले घट रहे हैं।

4. भारत में जब लॉकडाउन लगा तब हर दिन औसतन 81 मामले आ रहे थे। लॉकडाउन के एक महीने बाद यह 21 गुना बढ़ गए। यही नहीं लॉकडाउन के एक महीने बाद की तुलना में 2 महीने बाद हर दिन मिलने वाले मरीजों की संख्या 4 गुना हो गई।

लॉकडाउन के 2 महीने बाद भारत में सबसे ज्यादा मौतें हो रहीं
लॉकडाउन के 1 महीने बाद सभी देशों में मौतों की संख्या लॉकडाउन के पहले की तुलना में बढ़ीं। लेकिन 1 महीने बाद की तुलना में 2 महीने बाद हर दिन होने वाली मौतों की संख्या 7 में से 5 देशों में घट गई। लॉकडाउन के 1 महीने बाद की तुलना में 2 महीने बाद फ्रांस में 6 गुना, जर्मनी, यूके में 5 गुना और इटली, स्पेन में 3 गुना मौतें कम हुईं। रूस में यह संख्या डेढ़ गुना बढ़ गई। वहीं भारत में इसमें सबसे ज्यादा इजाफा हुआ। भारत में मौतें 3 गुना बढ़ गईं।

अमेरिका, ब्राजील में नेशनल लेवल परलॉकडाउन नहीं लगा,तुर्की में सिर्फ 2 और 4 दिनों के लिए लॉकडाउन रहा
1.
अमेरिका में राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन नहीं है। यहां जब मामले बढ़ने लगे थे तो अलग-अलग प्रांतों के गवर्नरों ने अपने-अपने राज्य में लॉकडाउन लगाना शुरू किया। यहां 19 मार्च से लेकर 3 अप्रैल तक 17 राज्य स्टे एट होम पॉलिसी लागू कर चुके थे। यही कारण भी है कि अमेरिका में 3 अप्रैल के बाद से हर दिन आ रहे नए मामलों की संख्या अब कम हो रही है। अप्रैल के पहले हफ्ते में यहां हर दिन 30 हजार से ज्यादा मामले आ रहे थे, जो अब 20 से 25 हजार के बीच है।

2.अमेरिका की तरह ही ब्राजील में भी लॉकडाउन नहीं है। यहां राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो लॉकडाउन के खिलाफ रहे हैं। लेकिन यहां भी अलग-अलग राज्यों ने अपने स्तर पर लॉकडाउन लगा रखा है। हालांकि इसमें बहुत देर हुई। 5 मई को सबसे पहले ब्राजील के साओ लुईस शहर में लॉकडाउन लगाया गया। इसके बाद फोर्टालिजा समेत कई नाम जुड़ते गए और फिर देश के 27 में से कई राज्यों ने लॉकडाउन लगाना शुरू किया। फिलहाल यहां हर दिन 30 हजार केस सामने आ रहे हैं।

3.तुर्की में 16 मार्च को स्कूलों को बंद किया गया। कैफे, स्पोर्ट्स, एंटरटेनमेंट वैन्यू भी बंद किए गए। इसके बाद 11-12 अप्रैल और 18-19 अप्रैल को यहां 2-2 दिन के लॉकडाउन लगे। हाल ही में 23-26 मई तक ईद के मौके पर 4 दिन का लॉकडाउन लगा। यहां लंबे समय तक टोटल लॉकडाउन नहीं रहा। बावजूद इसके यहां नए मामलों की संख्या हर दिन कम हो रही है। अप्रैल के दूसरे-तीसरे हफ्ते में यहां हर दिन 4 हजार से ज्यादा मामले सामने आ रहे थे, जबकि अब यह 1000 के आसपास सीमित हैं।

कोरोना के सबसे ज्यादा असर वाले 7 देशों में किस तरह लगा लॉकडाउन और स्टेटस क्या है?

1. रूस
कुल कोरोना संक्रमित:
2.86 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 27 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस: रूस में 27 मार्च को कोरोना संक्रमितों की एक हजार के पार हुई थी। 28 मार्च से यहां लॉकडाउन लगा दिया गया। इसके बाद जब मामले 2.2 लाख पार हो गए तब राष्ट्रपति पुतिन ने लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील का एलान कर दिया। 12 मई से रूस में सभी सेक्टर में काम दोबारा शुरू करने की परमिशन दी गई। हालांकि यहां भीड़ इकट्ठे करने वाले कार्यक्रमों पर अभी भी प्रतिबंध जारी है।

2. स्पेन
कुल कोरोना संक्रमित:
2.86 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 27 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस: स्पेन में 5 हजार संक्रमित मिलने के बाद ही 14 मार्च से लोगों के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। यहां लोग सिर्फ जरूरी चीजें और जरूरी काम से ही बाहर निकल पा रहे थे।
11 मई से देश के कई हिस्सों में लॉकडाउन के नियमों में ढील दी गई। इसके बाद आउटडोर कैफे, रेस्टोरेंट 50% क्षमता के साथ खुलने लगे। छोटी दुकानों को खोला जाने लगा। एक जगह पर 10 लोगों तक के इकट्ठे होने की परमिशन मिली। फिलहाल कुछ राहतों के साथ स्पेनमें लॉकडाउन 21 जून तक बढ़ सकता है।

स्पेन के शहर बार्सिलोना की यह तस्वीर 3 मई की है। इस दिन देशभर में पहली बार लोगों को एक्सरसाइज के लिए रोड पर जाने की छूट मिली थी।

3. ब्रिटेन
कुल कोरोना संक्रमित: 2.72 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 38 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस: ब्रिटेन में6 हजार मामले होने के बाद 23 मार्च से टोटल लॉकडाउन लगा दिया गया था। 13 मई से ब्रिटेन में लॉकडाउन में छूट मिलना शुरू हुई। जो लोग घर से काम नहीं कर पा रहे थे, वे ऑफिस जाने लगे। गार्डन सेंटर और गोल्फ जैसे स्पोर्ट्स सेंटरों को खोल दियागया। 1 जून से यहां स्कूल खोल दिए जाएंगे। अब यहां घर के बाहर 6 लोगतक इकट्ठे हो सकते हैं।

4. इटली
कुल कोरोना संक्रमित: 2.32 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 33 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस: 22 फरवरी को इटली के वेनेटो और लोम्बॉर्डी में कुछ शहरों को लॉकडाउन किया गया था। इनके बाद उत्तरी हिस्से के कई शहरों में लॉकडाउन लगाया जाने लगा। 10 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन लागू हुआ।

मार्च में इटली कोरोनावायरस का इपिसेंटर बन गया था। इससे निपटने के लिए देशभर में सख्त लॉकडाउन लगाया गया था।

4 मई से इटली में लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दी जाने लगी। 44 लाख लोग काम पर लौटे। रेस्टोरेंट और छोटी दुकानों को खोलने की परमिशन मिली। फ्युनरल में 15 लोगों तकइकट्ठे होने की छूट मिली।16 मई को प्रधानमंत्री कोंटे ने धीरे-धीरे लॉकडाउन खोलने की बात कही। इसके बाद 25 मई से यहां कुछ नियमों के साथ जिम, स्पोर्ट्स सेंटर और स्विमिंग पूल भी खोल दिए गए।

5. फ्रांस
कुल कोरोना संक्रमित: 1.88 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 28 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस:फ्रांस में 29 फरवरी को 5 हजार से ज्यादा की भीड़ पर बैन लगाया गया।17 मार्च से फ्रांस में टोटल लॉकडाउन हो गया। 2 महीने के अंदर ही लॉकडाउन नियमों में राहत भी दी जाना शुरू हो गई। 11 मई से यहां दुकानें और स्कूल खोले जाने लगे। 10 लोगों के इकट्ठे होने की छूट मिली। जून के पहले सप्ताह से यहां कैफे, रेस्टोरेंट और समुद्री किनारों को भी खोल दिया जाएगा।

6. इंडिया
कुल कोरोना संक्रमित: 1.85 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 5 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस: 3 मार्च को दिल्ली सरकार ने सबसे पहले स्कूलों को बंद करने का ऐलान किया। 10 मार्च के बाद कई राज्यों में स्कूल, कॉलेज को बंद करने के आदेश दिए गए। 15 मार्च से ही धार्मिक स्थलों को बंद करने के आदेश आए। 22 मार्च को एक दिन के लिए पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया गया। इसी दिन से देशभर के अलग-अलग शहरों में लॉकडाउन का ऐलान होने लगा। 25 मार्च से पूरे देश को ही लॉकडाउन कर दिया गया।

भारत में लॉकडाउन के अगले दिन से ही हर जगह मजदूरों की भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। सोशल डिस्टेंसिंग को ठेंगा दिखाती और लॉकडाउन को फेल करती ये तस्वीरें देशभर से आती रहीं हैं।

फिलहाल, यहां लॉकडाउन का चौथा फेज चल रहा है। यहां दूसरे फेज से ही प्रतिबंधों में ढील दी जाने लगी थी। फिलहाल यहां छोटी दुकानों औरशराब की दुकानों को खोलने की अनुमति है।7 दिन पहले से घरेलू उड़ानें भी शुरू हो चुकी हैं।और अब 1 जून से देश अनलॉक होना शुरू हो चुका है। इसके तहत अगले कुछ दिनों में धार्मिक स्थलों, सैलूनसमेत बाकीतमाम सेक्टर भी धीरे-धीरे फिर से खोले जाएंगे।

7. जर्मनी
कुल कोरोना संक्रमित:
1.83 लाख+, कोरोना से कुल मौतें: 8 हजार+
लॉकडाउन स्टेटस: 10 मार्च को जर्मनी के कई राज्यों ने 1000 से ज्यादा की भीड़ को बैन किया। 16 मार्च से स्कूलों को बंद करने के आदेश दिए गए। 20 मार्च को जर्मनी के सभी राज्यों ने सोशल इवेंट और हर छोटी-बड़ी भीड़ पर पाबंदी लगाई। 23 मार्च से देश में टोटल लॉकडाउन लागू हुआ। 5 मई से यहांलॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दी गई है। दूकानें फिर से खुलने लगी हैं। स्कूल्स खोल दिए गए हैं। जर्मन फूटबॉल लीग के मैच भी शुरू हो चुके हैं।



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india's lockdown fail in comparison with italy,france,germany,spain and uk


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तीरंदाज सम्मान के लिए राज्य संघ, कोच और खेल विभाग के चक्कर लगा रहे; नाम की सिफारिश करने वाले आर्चरी फेडरेशन को मान्यता नहीं

देश के कई तीरंदाजअर्जुन पुरस्कारके लिए अपने नामों की सिफारिश के चक्कर मेंराज्य संघों, खेल विभाग के अफसरों के आगे-पीछे घूमने को मजबूर हैं। भारतीय तीरंदाजी संघ को चुनाव के 5 महीने बाद भी मान्यता नहीं मिली है। ऐसे में वह राष्ट्रीयखेल पुरस्कारों के लिए तीरंदाजों के नामों की सिफारिश नहीं कर सकता।

तीरंदाजी के कंपाउंड राउंड से मध्यप्रदेश की मुस्कान किरार और दिल्ली के अमन सैनी अर्जुन अवॉर्ड के लिए आवेदन कर रहे हैं। इनके अलावा रिकर्व राउंड से पश्चिम बंगाल के अतनु दास और महाराष्ट्र के प्रवीण जाधव भी हैं।

एएफआई की 2012 में मान्यता रद्द हुई थी
आर्चरी फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआई) का चुनाव कोर्ट के आदेश के बाद इस साल जनवरी में हुआ था। इससे पहले खेल मंत्रालय ने 2012 में स्पोर्ट्स कोड का पालन नहीं करने के कारण एएफआई की मान्यता रद्द कर दी थी। जबकि वर्ल्ड आर्चरी फेडरेशन (डब्ल्यूएएफ) ने 5 अगस्त 2019 को फेडरेशन पर प्रतिबंध लगाया था। तब से ही भारतीय खिलाड़ी सभी टूर्नामेंट में डब्ल्यूएएफ के झंडे तले हिस्सा ले रहे थे।

इसी साल जनवरी में हुए थे चुनाव
जनवरी में कोर्ट की ओर से दी गई गाइडलाइन के अनुसार खेल मंत्रालय, डब्ल्यूएएफ और एएफआई की निगरानी में चुनाव हुए थे। इसके बाद डब्ल्यूएएफ ने एएफआई पर से सशर्त प्रतिबंध हटा दिया था। लेकिन खेल मंत्रालय के पास कोर्ट की तरफ से चुनाव से जुड़े दस्तावेज नहीं पहुंचे। इसलिए खेल मंत्रालय ने अब तक फेडरेशन की मान्यता बहाल नहीं की है।

अतनु दास के नाम की सिफारिश कोच लालरेमसांगा ने की

टोक्यो के लिए क्वालिफाई कर चुके हैं अतनु

इंटरनेशनल आर्चर अतनु दास ने अर्जुन अवॉर्ड के लिए आवेदन किया है। उन्होंने भास्कर को बताया कि मेरे नाम की सिफारिशपिछले साल मेजर ध्यानचंद अवॉर्ड से सम्मानित कोच सी. लालरेमसांगा कर रहे हैं। फेडरेशन को मान्यता नहीं मिली है। इसलिए उन्हें और दूसरे तीरंदाजों को व्यक्तिगत रूप से राज्य संघों और राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके कोच और अपने मूल विभाग से नाम भिजवाना पड़ा रह है। जबकि आम तौर पर यह काम फेडरेशन का होता है। वही खिलाड़ीका नाम खेल मंत्रालय को भेजती है।

अतनु ने एशियन चैम्पियनशिप में 3 ब्रॉन्ज मेडल जीते
अतनु ने पिछले साल एशियन तीरंदाजी चैम्पियनशिप में 3 ब्रॉन्ज मेडल जीते थे। वहीं, 14 साल बाद वर्ल्ड चैम्पियनशिप में सिल्वर जीतने वाली टीम के सदस्य भी थे। उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक के टीम इवेंट, सिंगल और मिक्स्ड डबल्स तीनों वर्ग में क्वालिफाई किया है।

अमन अपने नाम की सिफारिश के लिए साई के चक्कर लगा रहे।

कंपाउंड में देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुके अमन सैनी ने अब तक अर्जुन अवॉर्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन नहीं भेज पाए हैं। उन्होंने भास्कर को बताया कि आमतौर पर फेडरेशन सारी कागजी कार्रवाई पूरी करता है। लेकिन हमारे मामले में तीरंदाजी फेडरेशन को अब तक खेल मंत्रालय सेमान्यता नहीं मिली है। ऐसे में वो हमारे नाम की सिफारिश नहीं कर सकती है। इसलिए मैं खेल मंत्रालय कोऑनलाइन आवेदन भेजने के लिएस्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारियों से बात कर रहा हूं।

साई के पासमेरे पिछले तीन साल का रिकॉर्ड भी है। इस दौरान मेरा प्रदर्शन कैसा था। वह अच्छे से जानते हैं।इसलिए मैं अफसरों से अनुरोध कर रहा हूं कि वे पुरस्कार के लिए अप्लाई करने में मेरी मदद करें।

एशियन गेम्स में जीत चुके हैं मेडल
अमन ने 2018 एशियन गेम्स के टीम इवेंट में सिल्वर और 2019 वर्ल्ड चैम्पियनशिप के टीम इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता है।

मध्यप्रदेश स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट ने की मुस्कान की सिफारिश

अर्जुन अवॉर्ड के लिए मुस्कान किरार के नाम की सिफारिश मध्यप्रदेश स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट कर रहा है। वे 2016 से जबलपुर की आर्चरी अकादमी में ट्रेनिंग कर रही हैं।

वर्ल्ड चैंपियनशिप में टीम इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता
मुस्कान ने 2018 एशियन गेम्स के तीरंदाजी कंपाउंड टीम इवेंट में रजत पदक जीता था। उन्होंने इसी साल थाईलैंड एशिया कप में स्वर्ण और कांस्य पदक दिलाया था। मुस्कान ने टर्की में वर्ल्ड कप स्टेज-2 में भी रजत अपने नाम किया था। 2019 वर्ल्ड चैम्पियनशिप के टीम इवेंट में भी ब्रॉन्ज जीता था।

प्रवीण ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में सिल्वर जीता

महाराष्ट्र के प्रवीण जाधव पिछले साल वर्ल्ड तीरंदाजी चैम्पियनशिप में 14 साल बाद सिल्वर मेडल जीतने वाली टीम के हिस्सा थे। उनके साथ टीम में तरूणदीप राय और अतनु दास शामिल थे। इन्होंने भी सम्मान के लिए आवेदन दिया है।

अप्लाई करने की आखिरी तारीख 3 जून
अर्जुन अवॉर्ड के लिए अप्लाई करने की आखिरी तारीख 3 जून है। इस बार खिलाड़ियों को ऑनलाइन आवेदन भेजना है। यह सम्मान सभी खिलाड़ियों को उनके पिछले 4 साल के प्रदर्शन के आधार पर दिया जाता है।

इस मामले परआर्चरीफेडरेशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी प्रमोद चांदुलकर ने बताया कि अभी फेडरेशन को खेल मंत्रालय से मान्यता नहीं मिली है। इसलिए हम अर्जुन अवॉर्ड के लिए किसी भी प्लेयर का नाम नहीं भेज सकते हैं। उन्होंने बताया कि जनवरी में कोर्ट के आदेश पर चुनाव हुए थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण कोर्ट के आदेश से जुड़े दस्तावेजमंत्रालय में नहीं पहुंचे हैं। इस कारण मान्यता नहीं मिली है। प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही मान्यता मिल जाएगी।

-प्रमोद चांदुलकर,सेक्रेटरी,आर्चरीफेडरेशन ऑफ इंडिया



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आज से नाइट कर्फ्यू में पाबंदी घटेगी, बंदिशें सिर्फ कंटेनमेंट जोन में; पढ़ें देश में अब क्या, कहां और कब से बदलने वाला है?

देश ने 68 दिन का दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन देखा। वो भी चार फेज में। इस दौरान सवा सौ करोड़ की आबादी बंदिशों में रही। पहला लॉकडाउन सबसे सख्त था। और 31 मई को खत्म हुए लॉकडाउन-4 में काफी छूट मिली हुई थी। पर अब कई बंदिशें हटा ली गई हैं। केंद्र और राज्य, दोनों स्तर पर। इसलिए 1 जून यानी आज से लॉकडाउन-5 की जो शर्तें रखी गई हैं, उसका नाम अनलॉक-1 कर दिया गया है। सरकार तो यही कह रही।

चलिये देखते हैं देश में आज से क्या-क्या खुल रहा है और कहां-कहां बंदिशें जारी रहेंगी... सिर्फ 13 तस्वीरों में...



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