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वर्कप्लेस पर ब्रेक न मिलने के डर से पानी तक नहीं पीती थीं महिलाएं, अब पानी के साथ बैठने के लिए कुर्सियां भी मिलने लगी

कोच्चि. 2011 की जनगणना के मुताबिक, केरल में 1000 पुरुषों पर सेक्स रेशो1084 का था, जबकि देशभर में यह आंकड़ा 940 महिलाओं का था। इसी तरह से साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा और शादी के समय औसत आयु के मामले में भी केरल की महिलाएं आगे हैं। 2010 के इकोनॉमिक रिव्यू के अनुसार, केरल की महिलाओं की साक्षरता दर 92% थी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 65%था। रिपोर्ट के मुताबिक, केरल की महिलाओं की औसत आयु 76 साल 3 महीने है, जबकि नेशनल लेवल पर यह 64 साल 2 महीने है। इसके बावजूद केरल की भी महिलाओं को बुनियादी अधिकारों के लिए जूझना पड़ा। पेनकुटू नाम की संस्था ने महिलाओं के लिए वर्कप्लेस पर अधिकार की लड़ाई लड़ी, पिंक पुलिस पेट्रोल की शुरुआत की गई और कुडुम्बाश्री के जरिए महिलाओं की आर्थिक सशक्तीकरण के लिए जोरदार काम किया। पेश है ऐसी ही महिलाओं के कुछ किस्से जिन्होंने समाज को बदला...

वर्कप्लेस पर ब्रेक नहीं मिला तो शुरू की महिलाओं के अधिकार की लड़ाई
वर्कप्लेस पर महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए केरल के कोझिकोड की विजी ने 'पेनकुटू' नाम के एक एनजीओ की शुरुआत की। कहानी विजी के अपने वर्कप्लेस से शुरू होती है। पेशे से टेलर विजी को एक दिन काम के दौरान आराम करने से मना कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने एनजीओ बनाकर वर्कप्लेस पर महिलाओं को बुनियादी अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई शुरू की। विजी ने एनजीओ सरकार पर वर्कप्लेस पर महिलाओं के लिए कानून बनाने, उन्हें सुरक्षित माहौल देने और काम के दौरान आराम करने का अधिकार देने के लिए लेबर लॉ में बदलाव लाने का दबाव बनाया। मई 2018 में पेनकुटू की वजह से सरकार ने कानून बनाया और अफसरों को जिम्मेदारी दी गई कि वे सुनिश्चित करें कि वर्कप्लेस पर कानून का पालन हो रहा है।

'पेनकुटू' एनजीओ की संस्थापक विजी
'पेनकुटू' एनजीओ की संस्थापक विजी।

विजी कहती हैं, ‘‘केरल एक ऐसा राज्य है, जिसने ऐसा डेवलपमेंट मॉडल तैयार किया है जो महिलाओं के लिए ज्यादा खुला और जुड़ा हुआ है। लेकिन अभी भी कई ऐसे सेक्टर हैं, जहां कानून का पालन नहीं होता हैं।राज्य में कई वर्कप्लेस पर महिला मजदूरों को ब्रेक नहीं दिया जाता था। सबसे बड़ी दिक्कत टॉयलेट की थी। काम के दौरान उन्हें बार-बार टॉयलेट जाने पर डांट भी पड़ती थी। डर सेचलते ज्यादातर महिलाएं पानी ही नहीं पीती थीं। इस कारण ज्यादातर महिलाओं को संक्रमण भी हो जाता था,लेकिन अब हम खुश हैं कि राइट टू सिटके हमारे आंदोलन से वर्कप्लेस सिस्टम में बड़ा बदलाव आया। अब केरल में महिलाओं से न सिर्फ यह सुविधाएं मिलने लगीं, बल्कि हर टेक्सटाइल फैक्ट्री में बैठने के लिए कुर्सियां भी मिलने लगी हैं।

पिंक पुलिस पेट्रोल से क्राइम रेट में कमी आई
2016 में महिला सुरक्षा के लिए केरल की तत्कालीन सरकार ने पिंक पुलिस पेट्रोलसेवा शुरू की थी। कोझीकोड के महिला पुलिस स्टेशन की सर्कल इंस्पेक्टर लक्ष्मी एमवी बताती हैं,‘‘पिंक पुलिस सेवा महिलाओं के लिए 24X7 काम करती है और इसने अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद की है।’’जब रात के दौरान हुए अपराधों के क्राइम रेट का डाटा देखा गया तो पता चला कि पिंक पुलिस की वजह से महिलाओं के खिलाफ क्राइम रेट में 30% की कमी आई है।

पुलिस से सीखी टेक्नीक काम आई
पुलिस डिपार्टमेंट ने सभी जिलों में महिलाओं और युवा लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया और इसे लागू भी किया। इस प्रोजेक्ट के तहत दो साल में 3.8 लाख से ज्यादा महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी गई। कोझीकोड के कारापराम्बा के एक सरकारी स्कूल की छात्रा आर्या विजयन (बदला हुआ नाम) ने सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग का अनुभव साझा करते हुए बताया, ‘‘मैं एक दिन स्कूल से घर जा रही थी, तभी एक आदमी ने मुझसे छेड़छाड़ की। मैंने महिला पुलिस टीम से जो भी टेक्नीक सीखी थी, उसकी मदद से मैंने उस आदमी पर हमला बोल दिया।’’


महिलाएं ही महिलाओं के खिलाफ थीं
केरल में इस समय महिलाएं आर्थिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह से सशक्त हो रही हैं। इसका श्रेय गरीबी उन्मूलन मिशन कुडुम्बाश्री को जाता है। इसे केरल सरकार द्वारा 1998 में नाबार्ड की मदद से शुरू किया गया था। केरल में महिलाओं की मानसिकता को समझने के लिए किए गए कुडुम्बाश्री ने एक सर्वे किया और पाया कि परिवार में महिलाएं ही सबसे पहले अन्य महिला सदस्यों के रात में अकेले सफर पर आपत्ति उठाती थीं। कई महिलाओं का मानना था अगर उनके पति उन्हें पीटते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं और उनकी सोच थी कि लड़कियों पर लड़कों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

कुडुम्बाश्री महिलाओं द्वारा बने उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिकते हैं
अपनी स्थापना के बाद से कुडुम्बाश्री ने 45,000 से ज्यादा महिलाओं की मदद की। कुडुम्बाश्री ने छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्यमों को ऋण देना शुरू कर दिया और अपने उत्पादों को सीधे बेचने के लिए रास्ते खोजे। अब कुडुम्बाश्री महिलाओं द्वारा बनाए उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बेचा जाता है। कुडुम्बाश्री कोझिकोड के जिला समन्वयक कहते हैं, ‘‘महिलाओं को सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है और महिला समुदाय के बारे में उनके दृष्टिकोण को सशक्त बनाना और भी अहम है।’’कुडुंबाश्री ने सबसे पहले28 पंचायतों और 14 जिलों में जेंडर एजूकेशन देने की पहल शुरू की। साथ ही पिंक टास्क फोर्सलॉन्च की गई। पिंक टास्क फोर्स के सदस्यों को आत्मरक्षा में प्रशिक्षित किया।

विशेष जरूरतों वाले बच्चों को प्रतिष्ठित कंपनियों और होटलों मेंकाम दिलाया
केरल निवासी अश्वथी दिनिल की कहानी भी दिलचस्प है। उनके कारण विशेष जरूरतों वाले कई बच्चे आज प्रतिष्ठित कंपनियों और होटलों में काम करते हैं। उनकी अपनी बच्ची ऑटिज्म से पीड़ित थी और उसकी स्थिति को समझते हुए उन्होंने अपने आस-पास के लोगों से इस बारे में बात करना शुरू करने का फैसला किया। अश्वथी के प्रयासों के बाद ही राज्य की ऑटिस्टिक लड़कियों को होटल, पार्किंग हब, अस्पताल और थिएटर जैसे वर्कप्लेस पर रखा जाने लगा। आज राज्य भर में 500 से अधिक ऐसी लड़कियां विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं।


सबरीमाला जाना हर एक महिला का अधिकार है
अश्वथी कहती हैं, “महिला सशक्तीकरण और रोजगार सिर्फ हमारे जैसे लोगों के लिए नहीं हैं, यह उन विशेष बच्चों के लिए भी उतना ही जरूरी है जो किसी न किसी कमी के साथ पैदा होते हैं।” कितनी हैरानी की बात है कि लोग सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इतना बवाल हुआ। इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातों पर चर्चा करने की बजाय हमें बाकी अन्य जरूरी मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए।सबरीमाला जाना हर एक महिला का अधिकार है।’’



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टेक्सटाइल सेक्टर में वर्कप्लेस पर महिलाओं को बुनियादी सुविधाएं दी गईं।


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