अबरार रेयाज सोफी 24 साल के थे और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर से बीए एलएलबी कर रहे थे। यह उनका आठवां सेमेस्टर था। 27 जून को वो स्विफ्ट कार से पापा और चाचा के साथ एसके इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया साइंसेज (सौरा) गए थे।वहां से शोपियां के लिए लौट ही रहे थे कि रास्ते में एक ट्रक ने कार को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोर से हुई कि तीनों बुरी तरह घायल हो गए। हॉस्पिटल लाते वक्त ही चाचा की जान चली गई। पापा को मल्टीपल फ्रेक्चर आए और वो बेहोश हो गए। अबरार की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें सीधे श्रीनगर के एसएमएचएस हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया।
अबरार का जब सिटी स्कैन हुआ, तभी उन्हें उल्टी आना शुरू हो गईं। इस कारण उनकी सांस की नली में खाना चला गया। फिर उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। यह कहना था अबरार के परिचित का। उन्होंने अबरार को पढ़ाया भी है। उन्होंने बताया किमुझे फेसबुक से पता चला कि अबरार का एक्सीडेंट हुआ है। वो मेरे स्टूडेंट रहे हैं। मैं 12 बजे हॉस्पिटल पहुंचा। डॉक्टर्स ने बताया कि अबरार की हालत बहुत ज्यादा सीरियस है।
उन्हें ब्रेन में काफी चोट आई है।डॉक्टर्स भी हैरान थे लेकिन बॉडी में सुधार से हम सबके दिल में उम्मीद की एक आशा जाग गई थी।सोमवार सुबह उसका कोरोनावायरस का सैम्पल लिया गया। दोपहर एक बजे फोन पर पता चला कि अबरार कोरोना पॉजिटिव हैं। कोविड कंट्रोल रूम से फोन पर किसी ने यह जानकारी दी, कोई रिपोर्ट या आधिकारिक मैसेज नहीं मिला।
रिपोर्ट आते ही बदल गईं प्रायोरिटीज
कोरोना रिपोर्ट आते ही हॉस्पिटल की प्रोयोरिटीज चेंज हो गईं। डॉक्टर्स की जो टीम पहले अबरार को ठीक करने की कोशिशों में लगी थी, वो ही उन्हें किसी कोविड अस्पताल में शिफ्ट करने की तैयारी में लग गई।सोमवार सुबह अबरार का एक और सिटी स्कैन होना था लेकिन कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उसे टाल ही दिया गया। डॉक्टर्स यह माइंड सेट कर चुके थे कि इस पेशेंट को कोरोना हॉस्पिटल में एडमिट करना है।
हमारा कॉमन सेंस कह रहा था कि पेशेंट का यहीं इलाज होना चाहिए क्योंकि उसकी हालत बहुत क्रिटिकल है। इसके बावजूद उसे चेस्ट डिजीज (सीडी) अस्पताल में शिफ्ट करने की प्रॉसेस शुरू कर दी गई। यह सरकारी अस्पताल है, जहां सिर्फ सर्दी-खांसी का इलाज होता है। यहां कोई क्रिटिकल केयर जैसी यूनिट नहीं है। ट्रामा केयर जैसा कोई कांसेप्ट ही यहां नहीं है।
पहले रात में रखने का बोला, फिर शिफ्ट कर दिया
हम लोगों ने डॉक्टर्स को सजेस्ट किया कि आप यहां की बजाए अबरार को एसके इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (सौरा) में शिफ्ट कर दें, क्योंकि वहां कोरोना मरीज का इलाज भी होता है और न्यूरोसर्जरी की बेहतर सुविधाएं भी हैं। लेकिन, एसएमएचएस के डॉक्टर्स ने कहा कि एसकेआईएमएस में वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं हैं। जबकि वो लोग भी ये बात समझ रहे थे कि एसकेआईएमएस में ही बेहतर ईलाज हो सकता है। मैंने एसकेआईएमएस में बात की तो उन्होंने मुझे भी कहा कि हमारे पास बेड नहीं हैं।
काफी रिक्वेस्ट करने पर एसएमएचएस के डॉक्टर्स ने कहा कि हम रात में अबरार को यहीं रखते हैं। सुबह देखेंगे क्या करना है। लेकिन, रात में आठ बजे मेरे पास फोन आया कि वो लोग अभी ही शिफ्ट कर रहे हैं। जब तक मैं हॉस्पिटल पहुंचा तब तक शिफ्ट करने की प्रॉसेस पूरी हो चुकी थी।रात साढ़े बजे अबरार को सीडी हॉस्पिटल भेज दिया गया।
हैरत की बात है कि दोनों अस्पतालों के बीच पेशेंट को भेजने से पहले कोई ऑफिशियल कम्युनिकेशन हुआ ही नहीं। रात दस बजे तक वो यहीकंफर्म करते रहे कि अबरार कोरोना पॉजिटिव हैं भी या नहीं। फिर उन्हें एसएमएचएस से किसी ने फोन पर कंफर्म किया कि वो कोरोना पॉजिटिव ही हैं। तब जाकर कहीं रात साढ़े दस बजे उसे एडमिट किया गया।
परिवार को तो ये भी नहीं पता कि कोरोना था भी या नहीं
परिवार चाहता था कि अबरार का कोरोना टेस्ट फिर से हो। क्योंकि पहले टेस्ट की तो न रिपोर्ट मिली थी न ऑफिशियल मैसेज आया था लेकिन हॉस्पिटल और प्राइवेट लैब दोनों ने ही टेस्ट करने से इनकार कर दिया।सीडी हॉस्पिटल में कोई न्यूरोसर्जन नहीं था। एसएमएचएस से भी कोई डॉक्टर अबरार के इलाज के लिए सीडी हॉस्पिटल नहीं आया जबकि ये दोनों हॉस्पिटल गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के तहत ही आते हैं। वहां सिर्फ कुछ जूनियर एनेस्थिसियोलॉजिस्ट थे। इसी बीच अबरार का ऑक्सीजन लेवल कम हो गया और दोपहर दो बजे उसकी मौत हो गई।
करीब तीन घंटे के इंतजार के बाद हॉस्पिटल ने बॉडी परिवार को सौंप दी। उन्होंने कहा कि मौत कार्डिएक अरेस्ट से हुई। परिवार तो यह भी नहीं जान पाया कि वो सच में कोरोना पॉजिटिव थे या नहीं।अबरार के पिता अभी तक बेहोश ही हैं। उनके घर में मां और छोटा भाई है जो ग्यारहवी कक्षा में पढ़ता है। अबरार बहुत ब्राइट स्टूडेंट थे। पिछले साल जर्मनी गई कॉलेज टीम को उन्होंने रिप्रेजेंट किया था। अखबार में कॉलम लिखते थे। कानून की गहरी समझ रखते थे। लेकिन, जिस तरह उनकी जान गई उसने व्यवस्था पर ही कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब परिवार और दोस्त न्याय चाहते हैं।
(जैसा द कश्मीर मॉनिटर के जर्नलिस्ट निसार धर्मा ने बताया। वे अबरार को पढ़ा भी चुके हैं।)
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