सरयू घाट से लगभग 5 किमी दूर माझा बरहटा ग्राम सभा है। प्रशासन ने तय किया है कि अब राम की सबसे ऊंची 251 फीट की भव्य मूर्ति यहीं लगाई जाएगी। 5 अगस्त को राम जन्मभूमि का पूजन करने आ रहे पीएम नरेंद्र मोदी 1000 करोड़ की 51 परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे। इन परियोजनाओं में 251 फीट की राममूर्ति भी शामिल है।
लेकिन, जहां राम मूर्ति लगनी है, वहां अभी जमीन का अधिग्रहण तक नहीं हुआ है। लखनऊ हाईवे रोड पर स्थित इस ग्रामसभा में मूर्ति को लेकर काम शुरू नहीं हुआ है। इस ग्रामसभा में 3 गांव की करीब 1500 से ज्यादा की आबादी है जोकि 500 से 600 घरों में रहती है। यहां की 86 एकड़ जमीन को प्रशासन अधिग्रहण करना चाहता है, लेकिन गांव वालों का गुस्सा ऐसा लगता नहीं कि मामला जल्दी सुलझ जाएगा।
पीढ़ियों से रह रहे हैं कैसे छोड़ दे जमीन
यहां पहुंचने पर नेऊर का पुरवा गांव में रहने वाले रामचरण यादव के परिवार से हमारी मुलाकात हुई। बड़ी सी जगह में एक तरफ पक्का मकान बना है, जबकि दोनों तरफ छोटे-छोटे झोपड़े बने हैं। सामने बड़ा सा पेड़ है जिसमें बच्चा आराम से झूला झूल रहा है। सामने चारपाई पर बैठी रामचरण की 75 साल की पत्नी इंद्रावती कहती हैं कि साहब, पुरखों के जमाने से यहां रह रहे हैं। 5-6 पीढ़ियां बीत गयी हैं।
अब कहीं जाकर पक्का मकान बना पाए है और अधिकारी कह रहे है कि छोड़ दो। सांड, बैल की वजह से खेतीबाड़ी पहले ही बेकार है, अब बताओ घर छोड़ कहां जाएं। हमारे 4 लड़के हैं 3 बेटियां हैं। सबकी शादी कर दी गयी है। भरा पूरा परिवार है। मुश्किल से मेहनत मजदूरी कर एक बेटे को इंजीनियर बनाया है। जो नौकरी करता है बाकी भाई दिहाड़ी पर काम करते है।
इतना पैसा भी नहीं है कि कहीं कुछ अलग घर-खेती ली जाए। अधिकारी जबरन जमीन चाहते हैं, लेकिन जब तक जान में जान है, तब तक तो हम जमीन नहीं देंगे।
क्या राम हमारे नहीं हैं-क्या भगवान हमें भूल गए हैं
इंद्रावती के इंजीनियर बेटे राजीव हमें आगे धर्मू का पुरवा गांव में भी ले गए। वहां हमें विमला मिलीं, उन्होंने कहा कि पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। सरकार जबरदस्ती घर- द्वार लेने में लगी है। अब सरकार पूरे परिवार को मार डाले तभी वह जमीन ले सकती है। घर है, बच्चे हैं, मवेशी हैं, सब छोड़कर हम कहां जाएंगे।
राम का काम है के सवाल पर विमला भड़क उठती हैं, कहती हैं कि क्या राम भगवान हम सबको भूल गए हैं। क्या हम लोग राम की पूजा नहीं करते हैं। क्या राम भगवान की मूर्ति यहां लगाएंगे तो हमें उजाड़ कर भगा देंगे।
घर मे 4 बेटे हैं, मेहनत मजूरी करके घर का खर्च चलता है। घर मे गल्ला पानी 10 बीघा खेत से आता है। अब मूर्ति के चक्कर में सब जा रहा है। हमारे पास कोई सरकारी नौकरी तो है नहीं। मुख्यमंत्री से मिलने के सवाल पर कहती हैं कि कहीं कोई सुनवाई नहीं है।
बूढ़े बाप और बच्चों को लेकर कहां जाएंगे
आगे मुजहनिया गांव है। गांव में रहने वाले रामसेवक अभी मजदूरी कर लौटे हैं और घर के काम में व्यस्त हैं। पसीने से तरबतर रामसेवक से जैसे ही बात हुई तपाक से वह बोले भैया थोड़ी सी जमीन है और छोटा सा एक कमरे का घर है। सब मूर्ति के चक्कर मे जा रहा है। अब समझ नहीं आ रहा कि बाल-बच्चे और बूढ़े बाप को लेकर मैं कहां जाऊं।
रामसेवक बताते हैं कि अधिकारी कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं। हम लोगों ने मिलकर कोर्ट में अपील की, फैसला हमारे पक्ष में भी आया, लेकिन प्रशासन सुन नहीं रहा है। रात दिन यही टेंशन है कि आगे क्या होगा।
क्या फंसा है पेंच
असंतुष्ट ग्रामीणों की अगुवाई कर रहे अरविंद यादव बताते है कि 24 जनवरी 2020 को अधिग्रहण को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया गया। आपत्ति दर्ज करने का समय भी कम दिया गया। हम 28 जनवरी को हाईकोर्ट चले गए तो वहां से आदेश हुआ कि 2013 के अधिग्रहण कानून के तहत ही जमीनों का अधिग्रहण हो। अब यहां दिक्कत ये है कि गांव के लोग यहां पीढ़ियों से रह रहे हैं। देश को आजाद हुए 70 साल से अधिक हो गए लेकिन न तो गांव में बंदोबस्त हुआ न ही चकबंदी हुई है।
जिसकी वजह से ज्यादातर किसानों के पास उनकी जमीनों के कागज नहीं हैं। इस मामले को लेकर हम 16 जून को फिर हाईकोर्ट गए तो वहां से प्रशासन को बंदोबस्त करने का आदेश मिला। चकबंदी से पहले की प्रक्रिया बंदोबस्त होती है। इसमें किसान की कृषि भूमि, पशु, आवासीय भूमि, पेड़ पौधे आदि की सूचना दर्ज होती है।
अरविंद बताते है कि इस ग्राम सभा में छोटे-छोटे किसान हैं, जिनकी छोटी- छोटी जमीन है। उसी से घर का खाना पीना चलता है। अगर प्रशासन उनसे जमीन ले लेगा तो कैसे काम चलेगा।
अधिग्रहण का फायदा नहीं मिलेगा क्या
अरविंद बताते हैं कि दरअसल, प्रशासन ने चालाकी से इस ग्रामसभा को नोटिफिकेशन के बाद नगर निगम में शामिल कर लिया। गांव के 259 भूखंडों को लेकर अधिसूचना जारी की गई है जबकि इसमें 174 महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट के नाम पर दर्ज हैं। यह ट्रस्ट महर्षि योगी की संस्था है।
प्रशासन उनकी मिलीभगत से हमें हमारी जमीन से ही बेदखल करना चाहता है। अरविंद बताते है कि महर्षि योगी वर्ष 1994-1995 में आये थे और कहा था कि कुछ जमीन दान कर दो कॉलेज-हॉस्पिटल वगैरह बनाएंगे। उस समय हमारे बुजुर्गों ने जमीन दान कर दी, लेकिन आज तक न तो कॉलेज बना न ही हॉस्पिटल बना। इसीलिए हम गांव वालों को आपत्ति है।
पहले जहां जमीन चिन्हित की गई थी, वहां भी हुआ था विवाद
इससे पहले सरयू तट के किनारे एनएच 28 और रेलवे के पुल के बीच मे मीरापुर दुआबा में 61 एकड़ जमीन के लिए 5 जून 2019 को नोटिफिकेशन जारी किया गया था, लेकिन कुछ गलती के कारण 25 से 26 जुलाई 2019 के बीच फिर से नोटिफिकेशन जारी किया गया, लेकिन वहां भी रह रही आबादी ने विरोध कर दिया।
लोग कोर्ट भी गए लेकिन प्रशासन को इससे फर्क नहीं पड़ा। बाद में वह जमीन कैंसिल कर दी गयी। दरअसल, जहां मूर्ति लगनी थी और रेलवे पुल के बीच जगह कम होने के कारण कंपन ज्यादा था। जिसकी वजह से आगामी वर्षों में मूर्ति को नुकसान पहुंच सकता है। इस वजह से यह स्थान कैंसिल कर दिया गया था, जिसके बाद 24 जनवरी 2020 को माझा बरहटा के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया।
तीन साल में 2 बार बदली गयी मूर्ति स्थापित करने की जगह
सीएम योगी आदित्यनाथ ने 2017 में जब पहली भव्य दिवाली अयोध्या में मनाई थी, तब ही उन्होंने राम की सबसे बड़ी मूर्ति लगाने का ऐलान किया था। इस दौरान तीन साल में मूर्ति के लिए दो जगह चिन्हित की गई जिसमें से एक कैंसिल हो गयी जबकि दूसरे पर विवाद शुरू हो गया है।
तीन ग्राम सभा की रजिस्ट्री रोकी गयी
जानकारी के मुताबिक, एक नई अयोध्या बसाने का प्लान भी प्रशासन का चल रहा है। इसकी वजह से माझा बरहटा, मीरापुर दुआबा और तीहुरा माझा ग्राम सभा मे जमीनों की रजिस्ट्री रोक दी गयी है।
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