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आइए, अश्लीलता फैला रही विकृति के खिलाफ एकजुट हों

क्या आपने कभी सोचा है कि देश में दुष्कर्म के लिए फांसी जैसी कड़ी सजा के प्रावधान के बावजूद हालात सुधर क्यों नहीं रहे? दरअसल, हम बेटियों-महिलाओं के प्रति इस क्रूरतम व्यवहार में पूरा फोकस सिर्फ अपराधी को सजा तक सीमित रखे हुए हैं। इस आपराधिक प्रवृत्ति को सींच रहे कारकों पर हमारा ध्यान नहीं है, जिसमें प्रमुख है- इंटरनेट पर परोसी जा रही अश्लीलता। लाखों पोर्न वेबसाइट्स हमारे बच्चों, किशोरों और युवाओं के दिमाग में जो विकृति ठूंस रही हैं, क्या उसके दुष्परिणाम के बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए? सरकार के ही आंकड़े बताते हैं किहर 15 मिनट में एक महिला दुष्कर्म की शिकार हो रही है। दुष्कर्म के कई आरोपी पोर्न वेबसाइट देखने के आदी पाए गए।

दूसरी ओर, इस तथ्य से इनकार नहीं कि देश में सस्ते इंटरनेट डेटा, मुफ्त वाई-फाई और सस्ते स्मार्ट फोन से आम आदमी की कई मुश्किलें आसान हुई हैं। लेकिन दुर्भाग्य से डेटा की सहज उपलब्धता में पोर्न भी तेजी से पसर गया। चार साल पहले इंटरनेट डेटा की प्रति व्यक्ति औसत खपत 1.5 जीबी प्रतिमाह थी, जो आज 10 जीबी हो गई है। गूगल ट्रेंड्स 2019 के अनुसार भारत में 90% इंटरनेट यूजर्स ने माह में कम से कम एक बार पोर्न शब्द सर्च किया है। एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि अश्लील वीडियो देखने वाले 54% भारतीयों की उम्र 25 से 34 साल है। ऐसे हालात में चिंता लाजमी है।

दैनिक भास्कर अपने सामाजिक सरोकार को लेकर प्रतिबद्ध है। इसीलिए आप जैसे सुधि पाठकों की सहभागिता से हम बच्चों-युवाओं को विकृति से बचाने के लिए पोर्न साइट्स पर पाबंदी के लिए बड़ा अभियान शुरू कर रहे हैं। इसमें हम विशेष खबरें और विशेषज्ञों के आलेख प्रकाशित करेंगे। टॉक-शो के जरिए रायशुमारी होगी और ऑनलाइन पिटीशन से हम देशभर से समर्थन जुटाएंगे। राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अपील की जाएगी किवे पोर्न वेबसाइट्स पर प्रतिबंध की जरूरत को आवाज दें।

हम प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रतिवेदन देकर पोर्न साइट्स पर प्रतिबंध का आग्रह करेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर करेंगे। हमें पूरा विश्वास है कि आपके सहयोग से हम समाज में फैल रहे नीले जहर पर पाबंदी सुनिश्चित कराने में कामयाब होंगे।



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दुष्कर्म के लिए फांसी जैसी कड़ी सजा के बावजूद हालात सुधर नहीं रहे। (प्रतीकात्मक फोटो)


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