
नई दिल्ली. देश की राजधानी दिल्ली। जिसने इस शहर को नहीं देखा,वो यहां ऊंची इमारतों और लग्जरी लाइफ स्टाइल की कल्पना करता होगा। दिल्ली में खेती के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। लेकिन, यह पूरी तस्वीर नहीं है। यहां यमुना नदी के किनारे पर बसे करीब 100 गांवों में खेती होती है। मुख्य रूप से साग-सब्जियां उगाई जाती हैं। यहां के किसान दावा करते हैं- अगर हम दिल्ली को सब्जियां न दें तो इनके दाम आसमान छू जाएंगे। वक्त चुनाव का है। दैनिक भास्कर टीम ने दिल्ली के किसानों के हालात समझने के लिए उनके खेतों में जाकर मुलाकात की। यहां का अन्नदाता परेशान है। उसकी कोई सुध लेने वाला नहीं। मुफ्त योजनाएं चला रहे केजरीवाल ने तो कृषि मंत्रालय तक नहीं बनाया। पेश है ग्राउंड रिपोर्ट।
क्या बदला साहब, कुछ भी नहीं
अधिकतर किसानों के पास किराए की जमीन है। झुग्गियों में रहते हैं। बारिश के सीजन में करीब 4 महीने खेती नहीं होती तो मजदूरी से पेट भरते हैं। मलखान 25 साल से सब्जियों की खेती कर रहे हैं। कहते हैं, “क्या बदला साहब, कुछ भी तो नहीं। पहले भी झुग्गी में रहते थे। आज भी वहीं हैं। कागज नहीं हैं। इसलिए बिजली कनेक्शन नहीं मिलता। कुछ घरों में मीटर हैं। वहां से डोरी डालकर पैसे देकर बिजली लेते हैं। दिल्ली सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। हम अपने इंतजाम खुद करते हैं।”
शाहीन बाग प्रदर्शन की मार
सीएए-एनआरसी के विरोध में करीब दो महीने से शाहीन बाग के रास्ते बंद हैं। खामियाजा गरीब और छोटे किसान भी भुगत रहे हैं। गुड्डू कहते हैं, “शाहीन बाग में करीब दो महीने से धरना चल रहा है। रास्ते बंद हैं। लोडिंग गाड़ियां घूमकर जाती हैं। भाड़ा दोगुना हो गया है। हर महीने करीब 12 हजार रुपए बिजली बिल आता है। दो-दो महीने की फसल होती है। बस दाल-रोटी चल रही है। बच्चे सरकारी स्कूल में हैं,लेकिनवहां पढ़ाई अच्छी नहीं होती। बारिश के चार महीने काम नहीं होता। मजदूरी करके खर्च चलाते हैं।”
केजरीवाल ने कुछ नहीं किया
एक खेत में सज्जन सिंह मिलते हैं। हमने उनसे हालात जानना चाहे तो उनकी आंखें सूनी हो गईं। गमछे से पसीना पोंछते हुए थकी सी आवाज में कहते हैं, “कोई सरकार आए। हमारे लिए सब बराबर हैं। यहां कोई नेता नहीं आता। सब्जियों के लिए पानी चाहिए। यमुना में अब सिर्फ कीचड़ मिलती है। पानी हो भी तो खींचने की लागत बहुत है। बोरिंग करो तो पुलिसवाले 50 हजार से एक लाख रुपए तक ले जाते हैं।” यहीं हरिशंकर भी मिले। वे बोले- केजरीवाल हमारे लिए खाद, बीज और डीजल में रहम कर देते। उन्होंने कुछ नहीं किया।
100 गांवों में खेती, लेकिन कृषि दर्जा नहीं
दिल्ली में करीब 80 से 100 गांवों में खेती होती है,लेकिनकेजरीवाल सरकार में कृषि मंत्रालय ही नहीं है। भारतीय किसान संघ के महासचिव दिनेश दत्तात्रेय कुलकर्णी कहते हैं, “मंत्रालय होता तो शायद अन्नदाता की समस्याएं सुनी जातीं,लेकिनसरकार तो ये मानने के लिए तैयार ही नहीं कि दिल्ली में खेती भी होती है।” महामंत्री धर्मेंद्र लाकरा के मुताबिक, “कांग्रेस सरकार के दौर में दिल्ली से कृषि देहात का दर्जा छीना गया। केजरीवाल से अपील की। कुछ नहीं हुआ। यहां खेती से लाखों परिवार जुड़े हैं। सरकार इन पर ध्यान नहीं देती।”
केंद्र की सभी योजनाएं लागू नहीं
केंद्र सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं लागू कीं। दिल्ली में ये सभी लागू नहीं हैं। चुनाव से ठीक पहले किसान सम्मान निधि योजना जरूर लागू की गई है। लेकिन, अधिकतर किसानों को इसकी जानकारी नहीं है। एक किसान कहते हैं, “दूसरे राज्यों को देखिए। वहां राज्य सरकार किसानों से सीधे खरीद करती हैं। दिल्ली में केजरीवाल वादे से पलट गए। बेतहाशा दलाली लगती है। पैसा दलाल ही खा जाते हैं। किसानों को कुछ नहीं मिलता।”
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