
नई दिल्ली (पवन कुमार).सरकार ने अफसरों की कमी बताकर निजी क्षेत्र से 9 संयुक्त सचिवों की भर्ती की थी। जबकि तब देश में संयुक्त सचिव स्तर के 3056 अफसर एम्पैनल थे। इनमें से 381 केंद्र में काम करने को तैयार थे। केंद्र में उस वक्त संयुक्त सचिवाें के 21 पद खाली थे। यानी हर पद के लिए 18-18 याेग्य अफसर थे। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के एक अफसर ने काॅन्ट्रैक्ट पर नियुक्तियाें के प्रस्ताव पर यह लिखित टिप्पणी की थी। भर्ती किए गए संयुक्त सचिव काम संभाल भी चुके हैं। इनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई है। इसे बढ़ाकर पांच साल भी किया जा सकता है। प्रदर्शन अच्छा रहा तो उन्हें प्रमोशन देकर आईएएस कैडर दिया जा सकता है। सरकारें अलग-अलग समय पर विशेषज्ञों को सीधे प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करती रही हैं। लेकिन, पहली बार 2017 में लेटरल एंट्री की पाॅलिसी बनाकर सीधी भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई। केंद्र सरकार ने इसके लिए अलग-अलग सेक्टर के सचिवों का समूह बनाया।
दलील: 1995-2002 तक हुईं कम भर्तियां
सरकार ने यह कहकर भर्ती शुरू की कि 1995 से 2002 तक आईएएस, आईपीएस और दूसरे ग्रुप ए सेंट्रल सर्विसेज अधिकारियों की भर्ती कम हुई। नई प्रतिभाएं लाकर यह कमी दूर करेंगे। इसके बाद संयुक्त सचिव, डिप्टी सेक्रेटरी, डायरेक्टर की सीधी भर्ती का फैसला लिया गया।
चुनौती: नियुक्तियों पर ट्रिब्यूनल में उठाए सवाल
अखिल भारतीय सेवा के एक अधिकारी ने मामले को सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में चुनौती दी। उन्हाेंने ट्रिब्यूनल से इन नियुक्तियों पर रोक लगाने अाैर प्रस्ताव-भर्ती प्रक्रिया की जांच की मांग की है। इसके अलावा 360 डिग्री अप्रेजल के तरीके को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ बताया है।
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