World Wide Facts

Technology

बिल गेट्स बोले- कोरोना वैक्सीन 80-90% लोगों को लगाने की जरूरत नहीं, 30-60% टीकाकरण भी संक्रमण रोक देगा

दुनिया के सबसे अमीरों में से एक बिल गेट्स का कहना है कि ‘काेविड-19 महामारी आने के पहले ही हम फेल हो चुके थे। यही वजह है कि संक्रमण के आगे हम टिक नहीं पाए।’ द इकोनॉमिस्ट की एडिटर इन चीफ जैनी मिंटोन बिडोस के साथ मंगलवार को वेबिनार में गेट्स ने कहा कि हम महामारी की प्रकृति को पूरी तरह समझ नहीं सके। उनसे बातचीत के संपादित अंश...

काेरोना से लड़ाई में द. कोरिया और वियतनाम जैसे देशों ने मुस्तैदी का परिचय दिया। वहीं, चीन, जहां से महामारी पनपी, उसने शुरू में ही गलती कर दी। एशिया ने यूरोप-अमेरिका की तुलना में संक्रमण पर जल्द काबू पा लिया। हालांकि, भारत और पाकिस्तान अभी खतरे मेंं हैं।

लाखों करोड़ों रुपए की बर्बादी रोकने के लिए अभी खर्च करना होगा

जहां तक वैक्सीन का सवाल है- 6 स्तर पर कार्य प्रगति पर है। 75 से 90 हजार करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं। लाखों करोड़ रुपए की बर्बादी रोकने के लिए यह खर्च जरूरी है। शुरुआती सफलता के बाद ह्यूमन ट्रायल तीसरे चरण में चला जाएगा। अनुमान है कि 2021 की पहली तिमाही में वैक्सीन तैयार हो जाएगी। कुछ स्तरों पर टेस्टिंग में थोड़ा और समय लग सकता है। 2021 मध्य तक अमीर देशों के लिए वैक्सीन तैयार हो जाएंगी। गरीब देशों के लिए यह 2022 के शुरुआती दौर में उपलब्ध हो जाएगी।

कई कंपनियां प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली वैक्सीन पर काम कर रहीं

जॉनसन एंड जॉनसन और सनोफी जैसी कंपनियां ऐसे वैक्सीन पर भी काम कर रही हैं, जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सके। चुनौती यह है कि देश अमीर हों या गरीब, संक्रमण रोकने के लिए भारी मात्रा में ऐसे वैक्सीन बनाने होंगे जिनकी कीमत 250 रुपए तक हो। कुल मिलाकर 3 स्तर पर समस्या अभी भी है। पहला- उस स्थिति में क्या हो जब लोग वैक्सीन का बहिष्कार करने लगें।

संयोग से खसरे की तरह 80-90% लोगों को टीका लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कोरोना में 30 से 60% आबादी को टीका लगाने से भी संक्रमण पर काबू पाया जा सकता है। दूसरा- विकासशील देशों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है। चूंकि यूरोप और अमेरिका अपने में ही व्यस्त हैं और बहुपक्षीय भावनाएं कमजोर पड़ रही हैं इसलिए विकासशील और गरीब देशों पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है।

परेशानी यह है कि इन देशों से आंकड़े जुटाने में ही 3-4 साल लग जाते हैं और उसके बाद विश्लेषण में भी और समय लग जाता है। तीसरी सबसे बड़ी समस्या आर्थिक पक्ष है। विकासशील और गरीब देश की आमदनी उधार और विदेश से भेजे जाने वाले पैसों पर टिकी होती हैं। ये करेंसी छाप कर सप्लाई बढ़ा नहीं सकते।

एक ओर जहां पहले ही इनके स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता पर इंवेस्टमेंट कम था, वहीं कोरोना की वजह से यह और सिकुड़ सकता है जिससे संक्रमण से लड़ने की इनकी ताकत और कमजोर होगी। ऐसे हालात में दुनिया के पास साथ मिलकर चलने के अलावा कोई चारा नहीं है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
बिल गेट्स के मुताबिक, चुनौती यह है कि देश अमीर हों या गरीब, संक्रमण रोकने के लिए भारी मात्रा में ऐसे वैक्सीन बनाने होंगे जिनकी कीमत 250 रुपए तक हो। -फाइल फोटो


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34hEb84
Share:

Related Posts:

0 Comments:

Post a Comment

Definition List

header ads

Unordered List

3/Sports/post-list

Support

3/random/post-list