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75 साल पहले अमेरिका ने किया था पहला टेस्ट, उसके पास 1030 न्यूक्लियर वेपन्स; इजराइल ने कोई टेस्ट नहीं किया, फिर भी 80 एटमी हथियार

दो महीने पहले नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने कहा था, “एटमी हथियार देश की सुरक्षा की गारंटी होते हैं।” एक तानाशाह का यह बयान हैरान करने वाला नहीं है। शायद कई देशों की सोच यही हो सकती है। लेकिन, ये भी उतना ही सच है कि एटमी हथियारों ने दुनिया को तबाही के मुहाने पर ला खड़ा किया।
घोषित तौर पर दुनिया के 9 देशों के पास एटमी ताकत है। कुछ देश ऐसे हैं, जिन्होंने ये हथियार या तो हासिल कर लिए हैं या फिर इन्हें पाने की जद्दोजहद में जुटे हैं। एटमी रुतबा हासिल करने के लिए टेस्ट करने होते हैं। दिसंबर 2009 में यूएन के सभी सदस्य देशों ने 29 अगस्त को ‘इंटरनेशनल डे अंगेस्ट न्यूक्लियर टेस्ट’ के तौर पर मनाने का फैसला किया।

यह फोटो 16 जुलाई 1945 को अमेरिका के पहले न्यूक्लियर टेस्ट की है। इस मिशन को ट्रिनटी नाम दिया गया था।

पहली कोशिश नाकाम रही
1996 में भी न्यूक्लियर टेस्ट्स पर रोक लगाने की कोशिश की। या यूं कहें कि एटमी हथियारों की रेस खत्म करने की कोशिश हुई। इसके लिए न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी (सीटीबीटी)
का मसौदा तैयार हुआ। हालांकि, यह कोशिश कामयाब नहीं हुई। कई देश इसके पक्ष में नहीं थे। ज्यादातर का तर्क यह था कि एटमी हथियारों से लैस देश दूसरों को यह ताकत हासिल नहीं करने देना चाहते।

इन देशों ने छोड़ दी कोशिश
कुछ देश एटमी ताकत पाने के काफी करीब पहुंचे। लेकिन, इन्होंने इरादा बदल दिया। 1993 में साउथ अफ्रीका ने एटमी हथियार प्रोग्राम को अलविदा कहा। सोवियत संघ से अलग होकर अलग देश बने यूक्रेन, कजाखस्तान और बेलारूस ने भी यही किया। हालांकि, ईरान अब भी परमाणु शक्ति बनने के लिए मशक्कत कर रहा है।

एटमी हथियारों से बचने की मुहिम
इसकी शुरुआत यूएन की अगुआई में 1962 में ही शुरू हो गई थी, एक कमीशन भी बना। 1970 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का खाका तैयार हुआ। इसमें कहा गया- मौजूदा पांच एटमी ताकतों के अलावा कोई देश न्यूक्लियर पावर हासिल करने की कोशिश नहीं करेगा। 93 देश इस पर दस्तखत कर चुके हैं। भारत ने कभी सिग्नेचर नहीं किए। हालांकि, इसे अपवाद के तौर पर भी देखा जा सकता है। क्योंकि, एनपीटी पर साइन करने वालों की लगभग सभी सुविधाएं भारत को बिना दस्तखत किए मिलती हैं।

जिसने दर्द दिया, उसने दवा देने की भी कोशिश की
जापान ने परमाणु हमले का दर्द और दंश झेला। इसके बावजूद उसके संविधान में आर्टिकल 9 ऐसा है, जो उसे एटमी ताकत बनने से रोकता है। खास बात यह है कि यह आर्टिकल अमेरिका की ही सलाह पर संविधान में जोड़ा गया था। बहरहाल, बदली हुई दुनिया में शक्ति संतुलन के लिहाज से जापान के पीएम शिंजो आबे अब यह ताकत पाने की मंशा जाहिर कर रहे हैं। कुछ लोगों को यह जानकार शायद हैरानी होगी कि 1946 से जापान की सुरक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका ने अपने ऊपर ली है। जापान पर हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा।

यह फोटो परमाणु हमले के बाद जापान के हिरोशिमा शहर की है। यहां 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने परमाणु हमला किया था।

हथियारों का इस्तेमाल नहीं, फिर भी मौतें
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1945 से अब तक करीब 2056 न्यूक्लियर टेस्ट हुए। लाखों लोग विस्थापित किए गए। पर्यावरण को गंभीर नुकसान हुआ। रेडिएशन की वजह से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हुईं और हजारों लोग सिर्फ टेस्ट्स की वजह से ही मारे गए।
यूक्रेन के चेरनोबिल (1986), सुनामी के बाद फुकुशिमा (2011) हादसे हुए। माना जा रहा है कि अब भी यहां रेडिएशन बना हुआ है।

देश का नाम कुल एटमी हथियार कुल टेस्ट पहला टेस्ट आखिरी टेस्ट
नॉर्थ कोरिया 10 से 20 06 अक्टूबर 206 सितंबर 2017
इजराइल 80 कन्फर्म नहीं कन्फर्म नहीं कन्फर्म नहीं
भारत 120 से 130 03 मई 1974 मई 1998
पाकिस्तान 130 से 140 02 मई 1998 मई 1998
ब्रिटेन 215 45 अक्टूबर 1952 नवंबर 1991
चीन 270 45 अक्टूबर 1964 जुलाई 1996
फ्रांस 300 210 फरवरी 1960 जनवरी 1996
अमेरिका 6,550 1030 जुलाई 1945 सितंबर 1992
रूस 6,800 715 अगस्त 1949 अक्टूबर 1990


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