जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के एक साल बाद सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला और उनके पिता ने साफ किया है कि वे 370 रद्द करने को भूले नहीं हैं, उनका संघर्ष जारी है। हालांकि, ऐसा लगता है कि वे दोनों चाहते हैं कि स्टेट-हुड बहाल हो और आगे राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो सके।
पिछले साल 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो यूनियन टेरेटरीज लद्दाख और जम्मू कश्मीर में बांट दिया था। तब ज्यादातर नेताओं को हिरासत में लिया गया था। उनमें से कई नेताओं की रिहाई भी हो गई है। आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर की राजनीति में बदलाव आया है। लोकल पार्टियां कमजोर हुई हैं, अलगाववादी नेताओं में फूट पड़ गई है।
इसके साथ ही भाजपा आतंकियों के निशाने पर आ गई है। हाल ही में जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकवादियों ने भाजपा नेता वसीम अहमद बारी, उनके पिता और भाई की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके पहले एक और नेता को आतंकियों ने अगवा किया था। भाजपा के कई नेताओं को आतंकियों से धमकी भी मिली हैं।
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती पिछले एक साल से हिरासत में हैं। हाल ही में 31 जुलाई को इसे और तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। मुफ्ती के करीबी सूत्रों का कहना है कि हिरासत के दौरान ज्यादातर समय वह अपने धर्म को दे रही हैं, भविष्य की रणनीति को लेकर उन्होंने अपना कार्ड अभी नहीं खेला है। हालांकि, पार्टी के सीनियर लीडर नईम अख्तर का कहना है कि उनकी पार्टी कश्मीर पर 'हमले' का विरोध करने के लिए सभी लोकतांत्रिक, संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीकों का इस्तेमाल करेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि मुफ्ती अपने स्टैंड को लेकर कोई समझौता नहीं करने वाली हैं। वह अपनी और पार्टी की उस छवि से उबारना चाहती हैं, जिससे 2014 में भाजपा के साथ गठबंधन के चलते नुकसान हुआ था। पीडीपी इस समय मुश्किल दौर से भी गुजर रही है, पार्टी के कई नेता पूर्व पीडीपी नेता और मंत्री अल्ताफ बुखारी की पार्टी जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी(जेकेएपी) में शामिल हो गए हैं। इनका मानना है कि आर्टिकल 370 हटने के बाद भाजपा को समर्थन मिला है।
वहीं, दूसरी तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो सीनियर लीडर फारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की चुप्पी पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि विशेष दर्जे की मांग छोड़कर ये लोग अब जम्मू कश्मीर के लिए स्टेट-हुड की मांग कर रहे हैं।
आर्टिकल 370 हटने से पहले इन दोनों नेताओं ने धमकी दी थी कि अगर इसे हटाया जाता है तो भारत और जम्मू कश्मीर को जोड़ने वाले संविधान का लिंक भी टूट जाएगा, या तो आर्टिकल 370 रहेगा या फिर कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा।
उमर अब्दुल्ला इस समय कश्मीर और उसके बाहर होने वाली घटनाओं को लेकर ट्वीट करते हैं लेकिन 35-ए और आर्टिकल-370 हटाने पर खामोश हैं। हालांकि, उन्होंने 27 जुलाई को अपनी चुप्पी तोड़ी थी और एक नेशनल अखबार में आर्टिकल लिखा। उन्होंने कहा कि जब तक जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा नहीं मिलता है तब तक मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा।
उन्होंने कहा कि 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर के लिए जो कुछ किया गया था, वह संवैधानिक, कानूनी, आर्थिक और सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं था। उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने कथित तौर पर इसे जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ धोखा बताया था।
उन्होंने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 370 हटाकर न्याय करेगा। हालांकि, इसके अगले दिन उमर अब्दुल्ला ने सफाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, 'मैंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर राज्य का सीएम होने के तौर पर मैं केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर के लिए विधानसभा चुनाव नहीं लड़ूंगा। सिर्फ इतना ही कहा था, इससे न कम न ज्यादा। बाहर के लोग हल्ला मचा रहे हैं कि मैं जम्मू-कश्मीर को राज्य बनाने की मांग कर रहा हूं।' उन्होंने कहा कि नफरत करने वाले नफरत करते रहेंगे। मुझे कुछ लोगों से बेहतर की उम्मीद थी, लेकिन निराशा राजनीति का हिस्सा है, इससे सबक सीखते हुए आगे बढ़ना है।
हाल ही में जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में नए डोमिसाइल लॉ की घोषणा की थी तब उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर इस कानून से ज्यादा उसकी टाइमिंग को लेकर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि जब हमारा पूरा ध्यान कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगना चाहिए, तब सरकार जम्मू कश्मीर में नया डोमिसाइल लॉ ला रही है। इसमें सुरक्षा को लेकर कोई बात नहीं की गई है। अपने अगले ट्वीट में उन्होंने जम्मू कश्मीर के लिए स्टेट- हुड और चुनाव कराने की मांग की थी।
उनके सलाहकार तनवीर सादिक ने श्रीनगर के एक अखबार में आर्टिकल लिखकर नेताओं की रिहाई, नए डोमिसाइल लॉ पर फिर से विचार करने और इंटरनेट पर लगे बैन को हटाने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि यह समय जम्मू कश्मीर के लोगों से मिलने और उनके साथ सामंजस्य बनाने का है। हालांकि, इस लेख पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक दूसरे नेता और तीन बार के विधायक आगा रुहुल्लाह मेहदी ने नाराजगी जाहिर की थी।
रुहुल्लाह ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि क्या आपकी मांग 4जी इंटरनेट बहाल करने और राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की है, क्या जम्मू कश्मीर में सबकुछ ठीक हो गया। मैं जो कुछ कह रहा हूं उसके लिए जेल जाने के लिए तैयार हूं। लेकिन मैं उनसे कभी नहीं कहूंगा कि चुनाव हो और राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो। अगर आप उनसे यह मांग करते हैं तो स्वाभाविक है कि यह उनकी शर्तों पर होगा।
25 मई को उमर अब्दुल्ला दिल्ली दौरे पर गए थे। जिसको लेकर भी सवाल उठा था। इस पर अब्दुल्ला ने कहा था कि जो लोग बोर हो रहे हैं, उनके लिए यह टाइम पास है। हमारी पार्टी कानूनी तरीके से पिछले साल अगस्त में जो हुआ, उसे चुनौती देने के लिए कमिटेड है। उन्होंने कहा कि सादिक और मेहदी ने जो कुछ कहा वह उनकी व्यक्तिगत राय नहीं है, 5 अगस्त की घटना को लेकर हमारी पार्टी का सुप्रीम कोर्ट में और उसके बाहर जो स्टैंड है, उसे बदलने की जरूरत है। इसके बाद मेहदी ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) ने सबसे पहले जनवरी में जम्मू में स्टेट-हुड और डेमोक्रेसी बहाल करने की मांग की थी। उधर भाजपा को विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद पश्चिमी पाकिस्तान के रिफ्यूजी, गोरखा और वाल्मिकी वर्ग के लोगों से सपोर्ट की उम्मीद है, जिन्हें आर्टिकल 370 हटने के बाद फायदा हुआ है। इसके साथ ही भाजपा नए डोमिसाइल लॉ के जरिए चिनाब घाटी और पीर पंजाल क्षेत्र में मुस्लिम बहुल इलाके को साधने की तैयारी कर रही है।
अभी ईद से एक दिन पहले जेकेपीसी चीफ सजाद लोन को रिहा किया गया। हालांकि, मीडिया से बात करने पर रोक जारी है। लोन ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने लिखा कि आखिरकार एक साल पूरा होने के 5 दिन पहले मुझे रिहा किया गया, अब मैं फ्री हूं। इतने दिनों में बहुत कुछ बदल गया है। जेल मेरे लिए कोई नई चीज नहीं थी, पहले फिजिकल टॉर्चर किया जाता था। इस बार मनोवैज्ञानिक रूप से किया गया। इसके बारे में शेयर करने को बहुत है, जल्द शेयर करुंगा।
जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाकर भाजपा ने अलगाववादियों में भी दो फाड़ कर दिया है। 29 जून को, कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कांफ्रेंस (जी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। गिलानी ने कहा कि उनकी विचारधारा में कोई बदलाव नहीं आया है और वह "लड़ाई जारी रखेंगे"। किसी का नाम लिए बगैर, उन्होंने हुर्रियत के लीडरशिप पर जम्मू कश्मीर के बंटवारे का जिम्मेदार ठहराया। गिलानी ने अपने पत्र में कहा कि कड़े प्रतिबंध और हिरासत के बाद भी, मैंने लोगों से मिलने की कोशिश की, लेकिन मुझसे कोई नहीं मिला।
जम्मू कश्मीर में पिछले साल 5 अगस्त से पहले ही अलगाववादी राजनीति कमजोर होना शुरू हो गई थी। जनता के सामने उनके आंतरिक कलह की खबरें सामने आने लगी थीं। भाजपा सरकार ने एनआईए के जरिए अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई की और गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक के हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों को करारा झटका दिया।
हुर्रियत नेताओं द्वारा मेडिकल कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों को सीटें बेचने से जुड़े घोटाले भी सामने आए। गिलानी के कई समर्थक उनके इस्तीफे को धोखा के रूप में देखते हैं। 12 जुलाई को, गिलानी के बाद सबसे सीनियर अलगाववादी नेता मुहम्मद अशरफ सेहरी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
गिलानी ज्वाइंट रेजिस्टेंस फोरम(जेआरएफ) का हिस्सा थे, जिसमें यासीन मलिक और मीरवाइज उमर फारूक भी थे। यासीन पिछले साल अप्रैल से एनआईए की हिरासत में हैं। वे1990 में एक इंडियन एयरफोर्स अधिकारी की हत्या के मुकदमे का भी सामना कर रहे हैं। मीरवाइज भी ज्यादातर नेताओं की तरह पिछले साल अगस्त से ही खामोश हैं।
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