मुरली कृष्णन. दुनियाभर में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कई देश की सरकारें लॉकडाउन हटाने के बाद फिर से पाबंदियां लगाने की तैयारी कर रही हैं। बीती 18 जुलाई को एक दिन में सबसे ज्यादा (करीब 2 लाख 60 हजार) मरीज मिले। रिसर्च बताती हैं कि जो लोग स्वस्थ नजर आते हैं वो वायरस फैलाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
संक्रमण के बारे में जानकारी नहीं होना भी हो सकता है बड़ा कारण
लगातार बढ़ रहे मामलों के पीछे का कारण संक्रमण की जानकारी न होना हो सकता है। कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती कि वो वायरस की चपेट में आ गए हैं। चीन में अमेरिका से लौटने वाली एक महिला में कोई लक्षण नजर नहीं आए थे, लेकिन वो सेल्फ क्वारैंटाइन कर रही थी। बाद में यह महिला ही उसकी बिल्डिंग में संक्रमण के 71 मामलों का कारण बनी।
जापान में तोहोकु यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मेडिसिन में वायरोलॉजी के प्रोफेसर हितोशी ओशीतानी कहते हैं "काफी सारा डाटा यह बताता है कि प्रिस्म्प्टोमैटिक ट्रांसमिशन आम बात है, यह वायरस पर नियंत्रण पाने में मुश्किलें पैदा करता है।"
हाल ही में एक स्टडी हुई थी, जिसमें शोधकर्ताओं ने कोरोनावायरस समूहों का पता लगाया, जिसमें ऐसे युवा शामिल थे जो बीमार महसूस नहीं कर रहे थे। ओशीतानी इस स्टडी के को-ऑथर थे। सीडीसी के इमर्जिंग इन्फेक्शियस डिसीज जर्नल में प्रकाशित हुई स्टडी में जापान में 3 हजार से ज्यादा मामलों की जांच की गई थी।
शोधकर्ताओं ने हॉस्पिटल के बाहर कोरोनावायरस क्लस्टर का संभावित कारण बने 22 लोगों को चुना। इनमें से आधे लोगों की उम्र 20 से 39 साल के बीच थी। स्टडी के मुख्य लेखक और क्योटो यूनिवर्सिटी में वायरोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर यूकी फुरुसे ने कहा कि यह खासतौर पर चौंकाने वाला था, क्योंकि उस वक्त जापान में मिलने वाले मरीज 50-60 साल की उम्र के थे।
युवाओं का ज्यादा घूमना भी हो सकता है कारण
लेखकों ने कहा कि अभी तक यह साफ नहीं है कि युवाओं और बुजुर्गों के बीच संक्रमण फैलने का कारण सोशल या जैनेटिक और बायोलॉजिकल फैक्टर्स हैं। ओशीतानी ने कहा कि चूंकि युवा खुद को कम जोखिम में मानते हैं और इसलिए वे ज्यादा घूमते फिरते हैं। इसका मतलब है कि जोखिम भरे माहौल में युवाओं के होने की संभावना ज्यादा है। फुरुसे ने कहा कि या फिर वे बीमारी के हल्के लक्षण ही महसूस कर रहे हैं और उन्हें यह एहसास नहीं है कि वो वायरस फैला रहे हैं।
तेजी से और बड़े स्तर पर हो रही टेस्टिंग में नजर आया है कि युवाओं में कोरोनावायरस के मामले बढ़े हैं। अमेरिका के सिएटल में हुए स्टेट डाटा के एनालिसिस में पता चला है कि नए मामलों में करीब आधे लोगों की उम्र 20 से 30 साल के बीच की है। सीडीसी के डाटा के मुताबिक, अमेरिका में 30 मई के बाद पॉजिटिव पाए गए करीब 70 प्रतिशत लोग 60 साल से कम उम्र के थे।
बिना लक्षणों का मामले बढ़ने का जोखिम
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में मेडिसिन की प्रोफेसर मोनिका गांधी समेत कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोविड 19 के दुनिया में तेजी से फैलने को तभी समझाया जा सकता है, जब यहां ऐसे लोग हों जो संक्रमित नहीं लगते हैं, लेकिन वायरस फैला रहे हैं।
गांधी के मुताबिक, बिना लक्षण वालों से वायरस फैलने के सबूत साफ हैं। उन्होंने कहा "आपको लगता है कि आपने उन्हें पहचान लिया जो सिम्प्टोमैटिक हैं, आपने आइसोलेट किया, आपने क्वारैंटाइन किया, लेकिन स्वस्थ लोगों में इस वायरस का भंडार है।"
स्टडी ने बताया- बिना लक्षण वाले लोग वायरस के आधे फैलने का कारण हो सकते हैं
फरवरी में डायमंड प्रिंसेज क्रूज शिप में मिले 712 पॉजिटिव केस महामारी के दौरान बिना लक्षणों वाले ट्रांसमिशन के पहले शुरुआती उदाहरणों में से एक है। यहां मिले कुल 712 पॉजिटिव मामलों में एक तिहाई लोगों में कोई भी लक्षण नजर नहीं आया था। मई में अमेरिका में सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड ने कहा था कि "संक्रमितों में से 25 प्रतिशत लोगों में लक्षण नजर नहीं सकते हैं।"
हॉन्गकॉन्ग और लंदन में हुई स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि जिन लोगों में लक्षण नजर नहीं आते हैं वो SARS-CoV-2 के आधे फैलने के जिम्मेदार हो सकते हैं। सिंगापुर और चीन में शुरुआती वायरस फैलने से मिला डाटा में पाया गया कि जो लोग शुरुआती दौर में बीमार नहीं लग रहे थे, वे सिंगापुर में 48 प्रतिशत और तियानजिन में 62 प्रतिशत ट्रांसमिशन के जिम्मेदार थे।
गांधी ने कहा कि बिना लक्षणों के वायरस फैलना और युवाओं का पॉजिटिव आना संभावित तौर पर एक-दूसरे से जुड़े हो सकते हैं। क्योंकि ऐसा लग रहा है कि असिम्प्टोमैटिक इंफेक्शन का कारण हेल्दी इम्यून सिस्टम है, जिसके युवाओं में होने की ज्यादा संभावना है।
सफाई और मास्क वायरस को रोकने में सक्षम
यह साफ नहीं है कि बिना लक्षण वाले लोग कितने संक्रामक हो सकते हैं या वे वायरस फैलने के कितने जिम्मेदार हैं। इस बात पर जरूर सहमति है कि हाथ धोना, दूरी बनाए रखना और मास्क पहनने जैसे सफाई के उपाय वायरस के फैलने के खिलाफ असरदार हैं। ओशीतानी के अनुसार, इन उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कुछ जगहों पर सरकार दोबारा लॉकडाउन की पाबंदियां लगाने के लिए मजबूर हो गई हैं। ऑस्ट्रेलिया में स्वास्थ्य अधिकारियों ने हाल ही में लोगों से सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनने की अपील की है। भले ही वे बीमार महसूस करें न करें। यह उन देशों के विपरीत है, जहां मास्क पहनना अप्रैल आखिर से ही जरूरी है। जैसे जर्मनी में एक स्टडी बताती है कि दुकानों, वर्क-प्लेस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में मास्क पहनने से वायरस ट्रांसमिशन रेट में 40 प्रतिशत की कमी आई है।
हालांकि डब्ल्यूएचओ ने शुरुआत में सिम्प्टमलैस ट्रांसमिशन की भूमिका को कम बताया था। इसके एपेडेमियोलॉजिस्ट ने कहा था कि यह दुर्लभ घटना थी। बाद में समूह ने सूट का पालन किया और 5 जून से दुनियाभर में मास्क पहने जाने की अपील की।
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