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अमेरिका अपनी कंपनियों के साथ भेदभाव का आरोप लगा रहा, जबकि कई देश डिजिटल टैक्स के जरिए अपनी टैक्स कमाई बढ़ाना चाहते हैं

डिजिटल कंपनियों पर विभिन्न देशों के टैक्स नियमों में समानता लाने के वैश्विक प्रयास से अमेरिका के बाहर निकल जाने पर अब एक नया ट्रेड वार का जोखिम पैदा हो गया है। कई देश डिजिटल टैक्स को अपना राजस्व बढ़ाने के अवसर के तौर पर देख रहे हैं। जबकि, अमेरिका का कहना है कि डिजिटल टैक्स के जरिए उसकी कंपनियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। उसने जवाबी शुल्क लगाने की धमकी दी है। ऐसा होता है, तो कोरोना संकट से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में और ज्यादा गिरावट आ सकती है। समझिए डिजिटल टैक्स की पूरी गुत्थी।

क्या है डिजिटल टैक्स?

सोच यह है कि बड़ी डिजिटल कंपनियों पर उस जगह टैक्स लगाया जाए, जहां ऑनलाइन सेवाओं के उपयोगकर्ता रहते हैं, न कि उस जगह, जहां कंपनी का रीजनल हेडक्वार्टर है या जहां कंपनी अपनी आय का बैलेंसशीट तैयार करती है। साथ ही यह भी कि टैक्स रेवन्यू पर लगे न कि प्रॉफिट पर। सबसे पहले फ्रांस ने जुलाई 2019 में डिजिटल टैक्स लगाया था। फ्रांस ने उन कंपनियों पर 3 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाया था, जिनकी ग्लोबल रेवन्यू कम से कम 75 करोड़ यूरो (करीब 6,420 करोड़ रुपए) हो और फ्रांस में उसका डिजिटल सेल कम से कम 2.5 करोड़ यूरो (करीब 214 करोड़ रुपए) का हो। इस टैक्स के दायरे में करीब 30 कंपनियां आईं। इनमें से अधिकतर अमेरिका की थीं। हालांकि कुछ कंपनियां चीन, जर्मनी, ब्रिटेन और खुद फ्रांस की भी थीं।

डिजिटल टैक्स से सीधे तौर पर कौन-कौन जुड़े हैं?

अमेरिका ने 10 देशों और यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रस्तावित या लागू किए गए डिजिटल टैक्स की जांच शुरू की है। अमेरिका के ट्र्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) के मुताबिक ऑस्ट्र्रिया, ब्राजील, चेक रिपब्लिक, फ्रांस, भारत, इंडोनेशिया, इटली, स्पेन, तुर्की और ब्रिटेन जैसे देशों में या तो डिजिटल टैक्स लग चुका है या इसे लगाने पर विचार किया जा रहा है।

भारत का टैक्स अधिक सख्त

अमेरिका भारत के टैक्स को अधिक सख्त मानता है, क्योंकि इसका दायरा यूरोप में प्रस्तावित दायरे से ज्यादा बड़ा है। अप्रैल में भारत ने 6% इक्वलाइजेशन लेवी (विदेशी ऑनलाइन विज्ञापन प्लेटफॉर्म्स पर लगने वाला विदहोल्डिंग टैक्स) के दायरे को बढ़ाकर इसमें उन डिजिटल कंपनियों को भी शामिल कर लिया, जो भारत में बड़े स्तर पर कारोबार कर रही हैं। भारत में इसे गूगल टैक्स कहा जाता है। यूएसटीआर की मार्च में जारी हुई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय टैक्स में अंतरराष्ट्र्रीय स्थापित नियमों का ध्यान नहीं रखा गया है। क्योंकि इसमें भारत में दी गई सेवाओं के लिए अन्य देशों में भुगतान किए गए टैक्स के लिए क्रेडिट नहीं दिया जाता है।

किस मोड़ पर है विवाद?

फ्रांस ने कहा है कि अमेरिका और अन्य देश यदि आर्गनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक कॉपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के तहत समानता स्थापित करने के लिए की जा रही वैश्विक कोशिश से सहमत हो जाएं, तो वह अपना डिजिटल टैक्स वापस ले लेगा। अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों पर टैक्स लगाने के सही तरीके पर वार्ता असफल हो जाने के बाद जून में अमेरिका के वित्त मंत्री स्टीवेन न्यूचिन ने ईयू से कहा था कि अमेरिका ओईसीडी के डिजिटल टैक्स संबंधी वार्ता से अलग हो रहा है। इसके बाद फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ली मैरे ने कहा था कि उसका देश इस साल यह टैक्स लागू कर देगा, क्योंकि यह न्याय का मुद्दा है।

वैश्विक टेक्नोलॉजी कंपनियां 9.5% टैक्स देती हैं, जबकि पारंपरिक कंपनियां 23.2% टैक्स देती हैं

यूएसटीआर रॉबर्ट लाइटहाजर ने 17 जून को अमेरिका के सांसदों से कहा था कि यदि कोई देश एकतरफा डिजिटल टैक्स लगाएगा, तो वह जवाबी शुल्क लगाएगा। लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि वार्ता के जरिये इसका समाधान निकाला जा सकता है। फ्रांस का तर्क यह है कि आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था डाटा पर आधारित है। ऐसे में 20वीं सदी की टैक्स व्यवस्थापुरानी पड़ गई है। यूरोपीय संघ के 2018 के आंकड़े के मुताबिक वैश्विक टेक्नोलॉजी कंपनियां औसतन 9.5% टैक्स का भुगतान करती हैं। जबकि पारंपरिक कंपनियां औसतन 23.2% टैक्स चुकाती हैं।

रेवन्यूपर क्यों लगे टैक्स, प्रॉफिट पर क्यों नहीं

राजनीतिज्ञों के मुताबिक रेवन्यू पर टैक्स लगाना अधिक आसान है। प्रॉफिट पर टैक्स लगाने के लिए यह तय करना होगा कि आय कहां हुई, जो एक कठिन काम होगा। यह तय करना भी कठिन होगा कि कौन सा रेवन्यू किस देश से जुड़ा हुआ है। इस बारे में फ्रांस के टैक्स अधिकारियों का सुझाव यह है कि किसी इंटरनेट कंपनी के कुल वैश्विक कारोबार में जितना योगदान किसी देश का होगा उसी के हिसाब से कंपनी की आय पर वहां टैक्स लगना चाहिए।



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विवाद नहीं सुलझा तो कोरोना संकट से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में और ज्यादा गिरावट आ सकती है


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