जेसिका लाल मर्डर केस में मनु शर्मा को हुई सजा को तीन साल कम कर दिया गया। उसे 2023 में जेल से बाहर आना था लेकिन वह सोमवार को तिहाड़ जेल से रिहा हो गया। मनु ने 16 साल 11 महीने जेल में बिताए हैं। जबकि 2017 से वह ओपन जेल में है। वैसे, अप्रैल के पहले हफ्ते से मनु यूं भी कैदियों को सोशल डिस्टेंसिंग देने के इरादे से पैरोल पर जेल से बाहर है।
जिस अच्छेकाम का हवाला देकर मनु को जल्दी रिहा किया गया है, उसमें ज्यादातर जेल को आर्थिक फायदा पहुंचाने वाले आइडिया शामिल हैं। जेल में सजा काटने के दौरान ही मनु शर्मा ने अपना कारोबार चलाया, शादी की और उसका एक बेटा भी है।
22 अप्रैल 2015 को जेसिका की हत्या के 16 साल बाद मनु ने मुंबई की एक मॉडल और अपनी पुरानी दोस्त प्रीती से शादी कर ली। इस दौरान वह पैरोल पर छूटा था। एक बार मनु अपनी मां की बीमारी का बहाना बनाकर पैरोल पर छूटा था। लेकिन बाद में मनु की मां चंडीगढ़ में पार्टी करती पाई गईं थीं।
अच्छे व्यवहार का हवाला देकर ही मनु को ओपन जेल में रहने की छूट मिली थी। मनु शर्मा 2017 से ही ओपन जेल में रह रहा था। ओपन जेल यानी काम धंधा करने जेल से बाहर जाने की इजाजत। उसे ओपन जेल में सुबह 8 से शाम 8 बजे तक जेल से बाहर जाने की इजाजत थी। इस दौरान मनु नेहरू प्लेस स्थित अपने दफ्तर जाता था। जेल में रहते मनु ने बेधड़क अपना बिजनस चलाया जिसमें अखबार, टीवी चैनल और होटल शामिल हैं।
यही नहीं जेल में रहते मनु को 2012-13 के आसपास हर साल 7 हफ्ते की सरकारी छुट्टी भी मिलने लगी थी। फर्लो की ये छुटि्टयां उसे तीन, दो और फिर दो हफ्ते की किश्तों में मिलती थी। ये छुटि्टयां भी उसे अच्छे व्यवहार का हवाला देकर ही मिलीं थीं। ऐसी ही एक छुट्टी के दौरान मनु की कमिश्नर के बेटे के साथ झड़प हो गई थी। मनु दिल्ली के सम्राट होटल में शराब पी रहा था और उसकी लड़ाई हो गई।
2016 तक तिहाड़ जेल के लॉ ऑफिसर रहे सुनील गुप्ता के मुताबिक, 2015 में अच्छे व्यवहार की वजह से ही उसे पहले सेमी ओपन जेल में भेजा गया था, जिसमें जेल कॉम्प्लेक्स के अंदर काम करना होता है। मनु के जिम्मे जेल की दुकानों का हिसाब किताब देखना होता था।
तिहाड़ जेल केबिजनेस को बढ़ाने के लिए मनु ने आउटलेट बाहर खोलने का सुझाव दिया था। जेल प्रशासनने इसके बाद ही दिल्ली के छह कोर्ट कॉम्पलेक्स में दुकान खोलीं थीं। मनु ने मसाले बनाने और बाकी फैक्ट्री लगाने की स्ट्रैटेजी भी बनाई थी। उसने अपने गुनाहों को धोने के लिए एक चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया था, जिसके जरिए वह कैदियों के बच्चों की पढ़ाई फीस भरता था।
दिल्ली के स्कूलों में जितनी भी लकड़ी की डेस्क इस्तेमाल होती है, वह तिहाड़ में बनती हैं। उससे ही जेल को सबसे ज्यादा रेवेन्यू मिलता है। ये सुझाव सरकार को देने का आइडिया मनु का ही था। जिसके बाद से दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूलों के लिए ये नियम बना दिया किवह लकड़ी की डेस्क सिर्फ तिहाड़ से खरीदेंगे।
2008-09 में यह नियम लागू होने के कुछ साल के भीतर दिल्ली तिहाड़ का रेवेन्यू 4-5 करोड़ से करीब 17 करोड़ रु. हो गया था। तिहाड़ जेल का सालाना टर्नओवर लगभग 30 करोड़ रु. का है। जिसमें बेकरी से 5 करोड़, लकड़ी की डेस्क से 12-13 करोड़ और बाकी कैमिकल, फैब्रिक, मसाले, तेल, साबुन से है।
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