
कोरानावायरस संक्रमण की चेन तोड़ने की कोशिश सभी देश कर रहे हैं। इस प्रयास में आईटी का भी खूब इस्तेमाल हो रहा है। कुछ मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो कहीं पर संक्रमितों की पल-पल ट्रैकिंग की जा रही है। हांगकांग में चीन से आए लोगाें की लोकेशन पर नजर रखने के लिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल हो रहा है। एयरपोर्ट पर ही लाेगों को हिदायत दी जा रही है कि उन्हें अपनी लाेकेशन सेटिंग को हमेशा ऑन रखना है।
ऐसे में ये लोग अगर घर से बाहर निकलते हैं तो प्रशासन को तुरंत प्रशासन को पता चल जाता है। दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया ने व्हाट्सएप जैसा ही एक ऐप बनाया है। अगर संक्रमित व्यक्ति अपनी दिनचर्या से अलग गतिविधियां करते पाया जाता है तो ऐप अलार्म और अलर्ट देता है। यहां बाहर से आए 10600 लोगों में से 42% पर इस एप से नजर रखी जा रही है। द. कोरिया और ताइवान में क्वारेंटाइन तोड़ने, घर पर फोन छोड़कर जाने पर बड़े जुर्माने और जेल भेजने तक की सजा है।
चीन के 200 शहरों में हो रहा ऐप का इस्तेमाल
चीन में भी प्रांतीय सरकारों ने हेल्थ चेक ऐप बनाया है। यह एप कई अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर चल सकता है। लोग कहां आए-गए और क्वारेंटाइन में हर दिन उनकी स्थिति कैसी रही, इसके अनुसार ऐप पर कलर काेड जनरेट होता है। यह कलर कोड सरकारों के पास पहुंचता है। ये सिस्टम कितना सही है, अभी कह पाना मुश्किल है, लेकिन अली पे का मानना है कि चीन के 200 शहरों में लाेग इस एप का इस्तेमाल कर रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ भी बना रहा माय हेल्थ ऐप
डब्ल्यूएचओ भी माय हेल्थ ऐप बना रहा है। फेसबुक, गूगल, टेन्सेंट और बाइट डांस जैसी कंपनियां अपने करोड़ों यूजर्स की गतिविधियों को पहले से ही ट्रैक करती हैं, ऐसे में डब्ल्यूएचओ इन कंपनियों के साथ मिलकर बता पाएगा कि बीमारियां कहां-कहां फैल चुकी हैं और कहां फैलने वाली हैं। इस डेटा की मदद से सरकारें भी यह जान पाएंगी कि जिलों और शहरों के नियम कितने कारगर साबित हो रहे हैं।
गूगल बताएगा किस सड़क या इमारत में कितनी भीड़
मेप्स की मदद से गूगल ऐसी व्यवस्था बना रहा है, जिससे यूजर्स यह जान सकेंगे कि किस सड़क या बिल्डिंग में कितनी भीड़ है। ताकि लोग वहां जाने-न जाने को लेकर निर्णय कर सकें। इसका उपयोग सरकारें यह जानने में कर सकती हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं। ब्रिटिश सरकार के डिजिटल सर्विसेस के पूर्व प्रमुख माइक ब्रेकन का कहना है कि सरकारों के पास लोगों को ट्रैक करने की तकनीक पहले से है। कोराेना से लड़ने में इसका कितना उपयाेग हो रहा है यह अभी कोई खुलकर नहीं बताएगा।
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