
बर्लिन.कोरोना ने जर्मनी में भी डर का माहौल बना रखा है। हालात ऐसे हैं कि लोग डॉक्टर के पास जाने से घबरा रहे हैं। ऐसे में लोग अब डॉक्टर से हॉटलाइन और वीडियो कॉल की जरिए इलाज की सलाह ले रहे हैं। कुछ महीने पहले तक जर्मनी मेंडॉक्टरों को सिर्फ 20 फीसदी मामलों में मरीज के साथ वीडियो कॉल पर बातचीत करने की अनुमति थी, लेकिन अब इस रोक को हटा लिया गया है। नतीजा ये हुआ कि मार्च में डॉक्टर मरीज पोर्टल यमेदा पर सलाह लेनेवालों की तादाद एक महीने पहले के मुकाबले 1000% बढ़ गई। वीडियो कंसलटेशन के लिए तैयार डॉक्टरों और फीजियोथेरैपिस्टों की तादाद भी चार गुना बढ़ी है।
दुनिया के अन्य देशों में भी टेलीमेडिसिन में इजाफा
इस समय कोरोना का इलाज करने के लिए भारत में भी टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल हो रहा है। भारत में वीडियो कॉल और फोन कॉलके जरिए हो रहे इलाज में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. स्विट्जरलैंड या स्वीडन जैसे देशों में टेलीमेडिसिन की व्यवस्था पुरानी है, लेकिन कोरोना ने यहां भी उसकी मांग बढ़ा दी है। टेलीमेडिसिन कंपनी मेडगेट को मिलने वाले फोन कॉल्स की संख्या 20 फीसदी बढ़ गई है, जबकि एक दूसरी कंपनी सैंटी24 के डॉक्टर करीब एक चौथाई ज्यादा मरीजों का ऑनलाइन इलाज कर रहे हैं। ऑनलाइन कंसल्टेंसी के समर्थकों का कहना है कि इस सिस्टम से डॉक्टरों की प्रैक्टिस में आने वाले वायरस और कीटाणुओं की संख्या घटेगी। बीमार लोग अपने घरों में रह सकते हैं और दूरदराज के इलाकों में रहने वालों को शहरों में डॉक्टरों के पास आने की जरूरत नहीं रहेगी।
जर्मनी में अस्पतालों और क्लीनिक के हालात-
- यहां जो क्लीनिक खुले हैं, वहां मरीज नहीं आ रहे और बहुत सारे क्लीनिक को डॉक्टर या स्टॉफ में संक्रमण पाए जाने के बाद बंद करना पड़ा है
यहां डॉयचे वेले ऑफिस के पास ही आंखों का एक बहुत ही नामी क्लीनिक है। आम तौर पर चार मंजिला प्राइवेट क्लीनिक हमेशा आंख दिखाने या ऑपरेशन कराने आए मरीजों से खचाखच भरा रहता है, लेकिन कोरोना के समय में हालात बदल गए हैं। लोग डर के कारण क्लीनिक में नहीं आ रहे, बहुत से लोग अपना महीनों से तय एपॉइंटमेंट कैंसिल कर रहे हैं तो कई सारे तो एपॉइंटमेंट के बावजूद नहीं आ रहे हैं। स्पेशिलिस्ट डॉक्टरों का एपॉइंटमेंट मिलना जर्मनी में पिछले सालों में बहुत ही मुश्किल हो गया था। लेकिन कोरोना ने हालत बदल दी है। लोग तीन महीने पर या सालाना चेकअप के लिए भी नहीं आ रहे हैं, उन्हें चेकअप से आश्वस्त होने के बदले डॉक्टर के यहां संक्रमित होने का डर सता रहा है। ये हाल सिर्फ आंखों के डॉक्टर का नहीं है। ऑर्थोपेडी, स्पोर्ट्स मेडिसिन और गायनोकोलॉजी के डॉक्टरों का भी यही हाल है। ये सब ऐसे स्पेशिलिस्ट क्लीनिक हैं जो आम तौर पर भरे होते हैं। एक ओर जो क्लीनिक खुले हैं, वहां मरीज नहीं आ रहे तो दूसरी ओर बहुत सारे क्लीनिक को डॉक्टर या कर्मचारियों के संक्रमण के कारण बंद करना पड़ा है। उन्हें क्वारंटीन में भेज दिया गया है। पिछले हफ्तों में बहुत से डॉक्टरों की प्रैक्टिस को तो इसलिए बंद करना पड़ा था, क्योंकि डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के लिए कोरोनावायरस से बचने के लिए सुरक्षा से जुड़े सामान नहीं थे। देश में मास्क का अभाव हो गया था। बहुत से अस्पतालों में भी पर्याप्त संख्या में मास्क नहीं थे। इस बीच देश की कई कंपनियां मास्क बना रही हैं और विदेशों से भी आयात किया जा रहा है।
- डॉक्टरों को संक्रमण से बचाने के लिए उनका यूनियन दे रहा ट्रेनिंग, ताकि इटली जैसे हालात न हों
जैसे-जैसे कोरोना से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है। उनकी भूमिका कोरोना संक्रमण के शिकार कम गंभीर मरीजों का इलाज कर उन्हें अस्पताल जाने से रोकने की है। अगर वे अपने मरीजों को सही समय पर सही सलाह न दे सकें तो अस्पतालों पर बोझ और बढ़ जाएगा। इस समय सारी कोशिश ये है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की मदद से संक्रमण की गति को धीमा किया जा सके। अस्पतालों तथा डॉक्टरों पर बोझ को कम किया जा सके, ताकि इटली या अमेरिका जैसी नौबत न आए। सरकारी बीमा कंपनियों से जुड़े डॉक्टरों का संघ मरीजों और अस्पतालों के बीच दीवार का काम करना चाहता है। इसलिए वह एक ओर अपने डॉक्टरों को भी ट्रेनिंग दे रहा है, ताकि वे खुद सुरक्षित रहें और अपने मरीजों को भी सही सलाह देकर सुरक्षित रहने में मदद करें।
- 400 डिस्ट्रिक्ट हेल्थ ऑफिस, लेकिन डॉक्टरों और नर्सिंग स्टॉफ के बारे में पूरी जानकारी नहीं
जर्मनी में संक्रमित डॉक्टरों और नर्सों के बारे में अभी तक कोई नेशनल रिपोर्ट नहीं आई है। जर्मनी में कुल 400 डिस्ट्रिक्ट हेल्थ ऑफिस हैं। सरकारी टेलिविजन चैनलों द्वारा पूछे जाने पर सिर्फ 150 दफ्तरों ने संक्रमित चिकित्साकर्मियों के बारे में जानकारी दी है। बहुत से दफ्तर काम के बोझ के कारण जवाब देने की हालत में नहीं हैं तो कई दफ्तरों में इस तरह की सूचना इकट्ठा ही नहीं जा रही है। केंद्रीय स्तर पर भी चिकित्साकर्मियों के संक्रमण से संबंधित कोई जानकारी नहीं है। कई राज्यों में तो इस तरह के आंकड़े जमा ही नहीं किए जा रहे हैं। महामारी की रोकथाम में जुटी रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट के अनुसार दो हफ्ते पहले तक जर्मनी में करीब 2,300 चिकित्साकर्मी संक्रमण का शिकार थे।
- कोरोना संदिग्ध अपने निजी डॉक्टर के अलावा सरकारी हॉटलाइन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं
जर्मनी में डॉक्टरों के पास इलाज के लिए पहुंचने वाले लोगों को पहले सैनेटाइजर से डिसइंफेक्टेंट किया जाता है। अब मरीजों का बॉडी टेंपरेचर मापना भी अनिवार्य कर दिया गया है। कोविड-19 का शक हो तो मरीज के क्लीनिक आने की इजाजत ही नहीं होती, सीधे टेस्ट के लिए भेज दिया जाता है या फिर घर पर इंतजार करने के लिए कहा जाता है। कई डॉक्टरों ने तो सामान्य मरीजों और संदेह वाले मरीजों से बातचीत के लिए अलग अलग वेटिंग रूम और कंसल्टेंसी वाले कमरे बनाए हैं। इस समय कोरोना संदिग्ध अपने निजी डॉक्टर से सलाह के लिए हॉटलाइन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। बीमा कंपनियों से जुड़े डॉक्टरों के संघ के प्रमुख आंद्रेयास गासेन के अनुसार रोजाना कई हजार टेलीफोन आ रहे हैं। हालांकि हॉटलाइन पर मरीजों को सलाह तो मिल जाती है, लेकिन घर बैठे डॉक्टर से सलाह लेना, दवा लिखवाना और जरूरत पड़ने पर सिकनेस सर्टिफिकेट लेना अभी आम नहीं है। पर कोरोना संकट के चलते डॉक्टर के साथ वीडियो कंसल्टेशन आम होता जा रहा है।
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