World Wide Facts

Technology

'15,000 की दवा 28,000 में खरीदने की मजबूरी, नहीं खरीद सकते तो मत लगवाओ'

श्वेता यादव अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ 6 नवंबर को चिरायु हॉस्पिटल में एडमिट हुईं। पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव था। दो दिन बाद परिवार के दो सदस्यों श्वेता और उनके ससुर कमल बाजपेयी को रेमडेसिविर इंजेक्शन का डोज देने की एडवाइज डॉक्टर्स ने दी। उन्हें कहा गया कि आपका इंफेक्शन बढ़ सकता है, इसलिए रेमडेसिविर दे रहे हैं, ताकि बीमारी लंग्स तक न आए।

श्वेता का पूरा परिवार मप्र सरकार की स्कीम के तहत हॉस्पिटल में एडमिट हुआ था। यानी इलाज का पूरा खर्चा सरकार उठा रही थी लेकिन रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्चा मरीज को खुद ही उठाना था। मप्र में सरकार रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्चा नहीं उठा रही।

डॉक्टर्स के कहने के बाद श्वेता के परिजन ने हॉस्पिटल की मेडिकल स्टोर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन का रेट पूछा, तो उन्होंने बताया कि हमारे पास 4800 रुपए वाला इंजेक्शन (100 एमएल) है। छ इंजेक्शन 28,800 रुपए के आएंगे। क्या किसी दूसरे ब्रांड का सस्ता इंजेक्शन भी आता है? ये पूछने पर मेडिकल संचालक ने कहा कि 'हां आता है, लेकिन वो आपको बाजार से लेना होगा। हमारे यहां तो 4800 वाला ही है।'

इसके बाद श्वेता के परिजन ने बाजार में खोजबीन की। तो उन्हें एक दूसरी कंपनी का रेमडेसिविर 2500 रुपए में मिल गया। इसका छ डोज का एक पैक 15,000 रुपए का आ रहा था तो उन्होंने 30,000 रुपए में दो पैक खरीद लिए। वो पैक हॉस्पिटल लेकर गए तो डॉक्टर ने उन्हें लगाने से इनकार कर दिया। बोले, हमारे हॉस्पिटल में बाहर का ड्रग अलाउ नहीं है। आपको हम जो रेमडेसिविर दे रहे हैं, वही खरीदना होगा।

मप्र में कोरोना मरीजों का इलाज प्रदेश सरकार करवा रही है। यह मुफ्त है, लेकिन रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्चा मरीजों को ही उठाना होता है।

इसके बाद श्वेता के परिजन ने हॉस्पिटल के मेडिकल पर ही करीब 60,000 रुपए (बाजार से दोगुना) जमा किए और दोनों मरीजों को रेमडेसिविर लगना शुरू हुए।

उन्होंने हॉस्पिटल डायरेक्टर अजय गोयनका से बात की तो उन्होंने कहा कि 'रेमडेसिविर की पूरी डिटेल हमें मप्र सरकार को देना होती है। मैं बाहर का ड्रग यहां अलाउ नहीं करूंगा।' परिजन ने कहा, 'सर बाहर सस्ता मिल रहा है, आपके यहां महंगा है?' तो उन्होंने जवाब दिया, 'वो सब मैं नहीं जानता। बाहर का ड्रग यहां अलाउ नहीं है।'

हमने डायरेक्टर गोयनका से पूछा कि मरीजों को आप चिरायु से ही इंजेक्शन खरीदने पर मजबूर क्यों कर रहे हैं? इस पर वे बोले, 'मेरे अस्पताल के अंदर रेमडेसिविर मेरी दुकान से ही लेना होगा, क्योंकि मैं उसकी कोल्ड चेन मेंटेन करता हूं। बाहर से आए हुए, पेशेंट के पास पड़े हुए, इंजेक्शन मैं नहीं लगाता, क्योंकि उससे कोल्ड चेन मेंटेन नहीं होती। अब किसी को पांच-दस हजार बचाना है तो सिर्फ चिरायु हॉस्पिटल थोड़ी है, और भी कई हैं।' डॉ. गोयनका ने ये भी कहा कि 'अभी जो पीक आया है उसमें मोर्टेलिटी रेट सिर्फ रेमडेसिविर के चलते ही घटा है और मौका मिला तो मैं यह बात WHO के सामने भी रखूंगा'।

हमने अपर मुख्य सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (मप्र) मोहम्मद सुलेमान से पूछा कि WHO ने रेमडेसिविर को प्रभावी नहीं बताया है और अस्पताल अपनी मर्जी के मुताबिक इसकी बिक्री कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि 'हमारा स्टैंड बिल्कुल क्लियर है। जो आईसीएमआर कहता है, वो हम लिख देते हैं। रेमडेसिविर एक ट्रायल मेडिसिन है और ट्रायल हम अपने खर्चे पर नहीं करवा सकते।' हमने पूछा कि अस्पताल अपनी मर्जी का ब्रांड खरीदने पर मरीजों को मजबूर क्यों कर रहे हैं? इस पर बोले, 'अब मैं किसी इंडिविजुअल केस में बात नहीं कर सकता।'

क्या रेमडेसिविर लगाना जरूरी है?
श्वेता का मामला सिर्फ एक बानगी है। दिल्ली, मुंबई सहित तमाम शहरों में कोरोना मरीजों को रेमडेसिविर दिए जा रहे हैं। इस बारे में हमने सरकारी नियम टटोले तो पता चला कि सरकार ने क्लीनिकल ट्रायल के लिए रेमडेसिविर को अलाउ किया है। इमरजेंसी केस में भी इसे दिया जा सकता है। लेकिन इसे लेकर किसी तरह की गाइडलाइन या नियम जारी नहीं किए गए।

जून माह में एडवोकेट एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रेमडेसिविर के इस्तेमाल पर रोक की मांग की थी। उन्होंने हमसे बात करते हुए कहा कि 'जब यह दवा कोरोना में असरदार ही नहीं है तो इसे धड़ल्ले से बेचा क्यों जा रहा है?

केंद्र ने इसे सिर्फ टेस्टिंग के लिए अलाउ किया है, लेकिन देशभर में खुलेआम इसे मरीजों पर लगाया जा रहा है। कुछ माह पहले तो कालाबाजारी की स्थिति आ गई थी। जमकर पैसों की वसूली हो रही थी।' शर्मा की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। लेकिन अभी तक केंद्र की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया।

क्या यह दवा इफेक्टिव है?
'कोरोनावायरस पेशेंट्स को रेमडेसिविर नहीं दिया जाना चाहिए, भले ही वो कितने भी बीमार हों'। यह चेतावनी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 20 नवंबर को जारी की है। WHO का कहना है कि ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं, जो यह साबित करते हों कि यह ड्रग कोरोनावायरस को खत्म करने में कारगर है या मरीजों को मौत से बचा सकता है।

WHO के वैज्ञानिकों ने यह बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 7 हजार पेशेंट्स पर हुए ट्रायल्स के बाद कही। उन्होंने चेतावनी दी है कि यह कुछ मरीजों की किडनी और लिवर को डैमेज कर सकता है।

डॉक्टर बोले, यह सिर्फ मॉडरेट केस में असरकारक

हमने मप्र के कोविड स्टेट एडवाइजर डॉ. लोकेंद्र दवे से पूछा कि यह दवा इफेक्टिव नहीं है तो मरीजों को क्यों लगाई जा रही है? तो उन्होंने कहा कि 'हमारा अनुभव है कि मॉडरेट केस में बीमारी को कंट्रोल करने में यह असरकारक है।' मॉडरेट केस वो होते हैं, जिनमें मरीज खुद भी ठीक होते हैं, लेकिन इसमें दो से तीन हफ्ते लग जाते हैं, जबकि रेमडेसिविर लगता है तो एक हफ्ते में ही मरीज ठीक हो जाता है।

हालांकि यह ड्रग गंभीर मामलों में असर नहीं करता। संक्रमण बढ़ गया हो तो तब भी यह कारगर नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि इसे लगाने के बाद मरीज में बीमारी बढ़ेगी नहीं या खत्म हो जाएगी। यह सिर्फ मॉडरेट लेवल पर बीमारी को जल्दी कंट्रोल करने का काम करता है।

क्या केंद्र सरकार ने इसके लिए कोई गाइडलाइन जारी की है? इस पर दवे ने कहा, सरकार ने कोई गाइडलाइन या रिकमंडेशन तो नहीं दीं लेकिन इस्तेमाल पर रोक भी नहीं लगाई।

हमने सीएमएचओ (भोपाल) डॉ. प्रभाकर तिवारी से पूछा कि अस्पताल रेमडेसिविर के नाम पर मनमानी कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि 'प्रदेश सरकार ने ऐसी कोई अनुशंसा नहीं की है कि मरीजों को रेमडेसिविर लगाया जाए। इसलिए सरकार इसे खरीद भी नहीं रही। कोई भी अस्पताल मरीज को इसे लगाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। अस्पताल तो अपनी मर्जी के मुताबिक, ब्रांड खरीदने पर मरीज को मजबूर कर रहे हैं? इस पर बोले, ऐसा करना बिल्कुल गलत है। मरीज अपनी मर्जी के मुताबिक, कहीं से भी ड्रग खरीद सकता है। यदि कोई ऐसा कर रहा है तो सीएमएचओ ऑफिस में इसकी शिकायत की जा सकती है।

आखिर क्या है रेमडेसिविर
यह एक एंटी वायरल ड्रग है, जिसे अमेरिकी कंपनी गिलियड साइंसेज इंक ने बनाया है। इस ड्रग को इबोला के इलाज के लिए डेवलप किया गया था। कोरोनावायरस आने के बाद अमेरिकी कंपनी ने फिर इसे यह कहकर पेश किया कि यह कोरोना में प्रभावकारी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी जब कोरोना का शिकार हुए थे तो उन्हें रेमडेसिविर के डोज दिए गए थे। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने 1 मई को इसके इमरजेंसी यूज के लिए अनुमति दी। यूके के एनएचएस ने भी इसी दौरान इसके इस्तेमाल को ग्रीन सिग्नल दिया। अब WHO ने अपने ताजा अध्ययन के बाद इसे इस्तेमाल न करने की सलाह दी है।

ड्रग एक ही, फिर रेट में अंतर क्यों
हर कंपनी अपनी मार्केटिंग स्ट्रेटजी के हिसाब से इस ड्रग को बेच रही है। ब्रांड कितना बड़ा है और उसका पेनिट्रेशन कितना है, इस हिसाब से कीमतें तय की गई हैं। सरकारें कोरोना का मुफ्त इलाज तो उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन उन्होंने रेमडेसिविर को लेकर कोई गाइडलाइन जारी नहीं की है। जैसे मप्र में ही कोरोना का इलाज सरकार करवा रही है, लेकिन रेमडेसिविर को लेकर सरकार की तरफ से कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं। अब ऐसे में अस्पताल मनमर्जी कर रहे हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
श्वेता अपने पूरे परिवार के साथ दस दिनों तक चिरायु हॉस्पिटल में एडमिट रही थीं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/37cMFgq
Share:

0 Comments:

Post a Comment

Blog Archive

Definition List

header ads

Unordered List

3/Sports/post-list

Support

3/random/post-list