2 से 17 सितंबर तक पितृपक्ष रहेगा। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि तीर्थों में जाकर श्राद्ध करने का विशेष महत्व है, लेकिन आपातकाल या महामारी के कारण तीर्थ में जाकर श्राद्ध न कर पाएं तो विशेष चीजों के साथ आसान तरीके से घर पर ही श्राद्ध किया जा सकता है।
श्राद्ध में जरूरी चीजें
घर पर ही कर सकते हैं श्राद्ध और तर्पण
- श्राद्ध वाली तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और जब तक श्राद्धकर्म न हो तब तक कुछ न खाएं। सिर्फ पानी पी सकते हैं। दोपहर 12 बजे के आसपास श्राद्ध किया जाता है।
- दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बांए पैर को मोड़कर, बांए घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं।
- इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में जौ, तिल, चावल गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें।
- हाथ में कुशा घास रखें। फिर उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें।-
- महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
- पितरों के लिए अग्नि में खीर अर्पण करें। इसके बाद पंचबलि यानी देवता, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी के लिए भोजन सामग्री अलग से निकाल लें।
- इसके बाद ब्राह्मण भोजन करवाएं और श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें।
श्राद्ध यानी पितृ यज्ञ के 16 दिन
अथर्ववेद में कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में रहता है, तब पितरों को तृप्त करने वाली चीजें देने से स्वर्ग मिलता है। इसके साथ ही याज्ञवल्क्य स्मृति और यम स्मृति में भी बताया गया है कि इन 16 दिनों में पितरों के लिए विशेष पूजा और दान करना चाहिए। इनके अलावा पुराणों की बात करें तो ब्रह्म, विष्णु, नारद, स्कंद और भविष्य पुराण में बताया गया है कि श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों की पूजा कैसे की जाए। ग्रंथों में कहा गया है कि पितृपक्ष शुरू होते ही पितृ मृत्युलोक में अपने वंशजों को देखने के लिए आते हैं और तर्पण ग्रहण करके लौट जाते हैं। इसलिए, इन दिनों में पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और अन्य तरह के दान किए जाते हैं।
किसको श्राद्ध करने का अधिकार
- गौतमधर्मसूत्र का कहना है कि पुत्र न हो तो भाई-भतीजे, माता के कुल के लोग यानी मामा या ममेरा भाई या शिष्य श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। अगर इनमें से कोई भी न हो तो कुल-पुरोहित या आचार्य श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
- पिता के लिए पिण्ड दान और जल-तर्पण पुत्र को करना चाहिए पुत्र न हो तो पत्नी और पत्नी न हो तो सगा भाई भी श्राद्ध कर्म कर सकता है।
- विष्णुपुराण में कहा गया है कि मृत व्यक्ति के पुत्र, पौत्र, भाई की संतति पिण्ड दान करने के अधिकारी होते हैं।
- मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति का पुत्र न हो तो उसकी बेटी का पुत्र भी पिण्ड दान कर सकता है। अगर वो भी न हो तो पत्नी बिना मंत्रों के श्राद्ध-कर्म कर सकती है। पत्नी भी न हो तो कुल के किसी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।
- माता-पिता कुंवारी कन्याओं को पिण्ड दान कर सकते हैं। शादीशुदा बेटी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो तो पिता उसको भी पिण्ड दान कर सकता है।
- बेटी का बेटा और नाना एक-दूसरे को पिण्ड दान कर सकते हैं। इसी तरह दामाद और ससुर भी एक दूसरे के लिए कर सकते हैं। बहु भी अपनी सास को पिण्ड दान कर सकती है।
दिन | तिथि श्राद्ध | विशेष |
2 सितंबर, बुधवार | प्रतिपदा का श्राद्ध | |
3 सितंबर, गुरुवार | द्वितीया का श्राद्ध | |
4 सितंबर, शुक्रवार | तृतीया का श्राद्ध | |
6 सितंबर, रविवार | चतुर्थी का श्राद्ध | |
7 सितंबर, सोमवार | पंचमी का श्राद्ध | इस दिन भरणी नक्षत्र रहेगा। जिसके स्वामी यम हैं। इसलिए इसे महत्वपूर्ण माना जाता है। पंचमी पर अविवाहित मृत आत्माओं का श्राद्ध किया जाता है। |
8 सितंबर, मंगलवार | षष्ठी का श्राद्ध | |
9 सितंबर, बुधवार | सप्तमी का श्राद्ध | |
10 सितंबर, गुरुवार | अष्टमी का श्राद्ध | |
11 सितंबर, शुक्रवार | नवमी का श्राद्ध | इसे मातृ नवमी कहा जाता है। इस तिथि पर माता और अन्य सौभाग्यवती मृत महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। |
12 सितंबर, शनिवार | दशमी का श्राद्ध | |
13 सितंबर, रविवार | एकादशी का श्राद्ध | |
14 सितंबर, सोमवार | द्वादशी का श्राद्ध | इस दिन उन मृत आत्माओं का श्राद्ध होता है जिन्होंने संन्यास ले लिया था। |
15 सितंबर, मंगलवार | त्रयोदशी का श्राद्ध | इस दिन मृत बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। |
16 सितंबर, बुधवार | चतुर्दशी का श्राद्ध | इसे अपमृत्यु श्राद्ध भी कहते है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध होता है जिनकी मृत्यु किसी हथियार, जहर या दुर्घटना से हुई हो। |
17 सितंबर, गुरुवार | सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध | इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध करने का विधान है। |
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