आज जिन ताैर-तरीकों से दुनिया चल रही है, उस हिसाब से दुनिया को अपनी साल भर की जरूरतें पूरी करने में कम से कम 1.75 धरती की जरूरत है। ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, विकसित देशों और भारत जैसे विकासशील देशों में काफी फर्क है। अगर दुनिया के तौर-तरीके अमेरिका जैसे हो जाएं, तो दुनिया को अपनी जरूरतों के लिए हर साल कम से कम 5 धरती चाहिए होगी। खास बात यह है कि अगर दुनिया भारत की तरह जीने लगे, तो मात्र 0.7 धरती में ही सबका काम चल जाएगा।
इंसान की जरूरतों के लिए धरती काफी नहीं है
हर साल धरती पर जल और वनस्पति का पुनर्निर्माण होता है। लेकिन पिछले 100 सालों से हर साल प्राकृतिक संपदा का जितना पुनर्निर्माण होता है, इंसान उससे ज्यादा की खपत कर लेता है। अब विशेषज्ञ अनुमान लगाने लगे हैं कि साल भर में एकत्र संपदा काे इंसान साल की किस तारीख को खत्म कर रहा है। इसी तारीख को ओवरशूट-डे कहा जाता है। 2019 में इंसान ने सालभर के लिए मिली संपदा का उपभोग 29 जुलाई को ही कर लियाथा।
अगर दुनिया अपना ले भारत के ये तौर-तरीके
- बचत की भावना और किसी भी चीज का जरूरत से कम इस्तेमाल, भारत की संस्कृति का हिस्सा रहा है। यही संस्कृति अगर दुनिया अपना ले, तो सबके लिए एक धरती पर्याप्त होगी। उदाहरण के तौर पर-अमेरिका की तुलना में भारत की जनसंख्या चार गुना से भी ज्यादा है लेकिन फिर भी अमेरिका में ईंधन का खपत भारत से 16 गुना ज्यादा है। अमेरिका में भारत की तुलना में 19 गुना ज्यादा बिजली खपत होती है। अगर कच्चे तेल की ही बात करें, अमेरिका में भारत की तुलना में इसकी खपत 29 गुना ज्यादा है।
- वहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उपभोक्ता अपने पर्यावरण को लेकर सबसे अधिक जागरूक हैं।
- नेशनल जियोग्राफिक की ग्रीनडेस्क रिपोर्ट कहती है कि भारतीय लोग अपने लिए चार पहिया वाहनों का इस्तेमाल कम करते हैं। अधिकतर भारतीय दो पहिया वाहन या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं।
- 35% भारतीय खुद के उगाए हुए अनाज और सब्जियां भोजन में लेते हैं। यह दुनिया के किसी भी देश की तुलना में ज्यादा है।
- भारतीयों में खराब गैजेट्स को ठीक करवाने की प्रवृत्ति भी दुनिया में सबसे ज्यादा है। बड़ी संख्या में भारतीय यूज्ड चीजों का उपयोग किफायत से करते हैं। 76% भारतीय अपने पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं।
लेकिन भारत की दिक्कत यहां की आबादी है
बड़ी आबादी, भारत की समस्या है। यहां प्रत्येक व्यक्ति के पास 0.4 ग्लोबल हेक्टेयर जमीन के बराबर प्राकृतिक संपदा है, लेकिन प्रति व्यक्ति जरूरत एक ग्लोबल हेक्टेयर की है। इतनी जमीन भारत के पास नहीं है। भारत को जनसंख्या के पोषण के लिए हर साल 2.7 भारत के बराबर प्राकृतिक संपदा चाहिए।
भास्कर एक्सपर्टः सीमा जावेद, पर्यावरणविद्
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